सन 1871 की यात्रा (हरिद्वार) के बाद भारतेन्दु ने हरिद्वार के एक पण्डे को पत्र में लिखा था-(Haridwar Travelogue by Bhartendu Harishchandra) सम्वत बसु युग ग्रहससो, पूनो रात असाढ़।रविवासर हरिद्... Read more
हाथी के बदले गधा खरीदने वाले को नमस्कार
Posted By: Kafal Treeon:
भारतेंदु हरिश्चन्द्र के कालजयी नाटक अन्धेर नगरी की शुरुआत में लिखी गई हैं ये पंक्तियां – छेदश्चंदनचूतचम्पकवने रक्षा करोरद्रुमेः हिंसा हंसमयूरकोकिलकुले काकेषुलीलारतिः। मातंगेन खरक्रयः स... Read more
“भारतवर्ष की उन्नति ऐसे हो सकती है” – भारतेंदु हरिश्चंद्र का ददरी मेला व्याख्यान
Posted By: Kafal Treeon:
“इस साल बलिया में ददरी मेला बड़ी धूम-धाम से हुआ. श्री मुंशी बिहारीलाल, मुंशी गणपति राय, मुंशी चतुरभुज सहाय सरीखे उद्योगी और उत्साही अफसरों के प्रबंध से इस वर्ष मेले में कई नई बातें ऐसी हुईं,... Read more
Popular Posts
- उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ
- जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया
- कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी
- पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद
- चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी
- माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम
- धर्मेन्द्र, मुमताज और उत्तराखंड की ये झील
- घुटनों का दर्द और हिमालय की पुकार
- लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम-कदम पर अन्याय हो रहा है !
- पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप
- डुंगरी गरासिया-कवा और कवी: महाप्रलय की कथा
- नेहरू और पहाड़: ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में हिमालय का दर्शन
- साधारण जीवन जीने वाले लोग ही असाधारण उदाहरण बनते हैं : झंझावात
- महान सिदुवा-बिदुवा और खैंट पर्वत की परियाँ
- उत्तराखंड में वित्तीय अनुशासन की नई दिशा
- राज्य की संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में महिलाओं का योगदान
- उत्तराखण्ड 25 वर्ष: उपलब्धियाँ और भविष्य की रूपरेखा
- आजादी से पहले ही उठ चुकी थी अलग पर्वतीय राज्य की मांग
- मां, हम हँस क्यों नहीं सकते?
- कुमाउनी भाषा आर्य व अनार्य भाषाओं का मिश्रण मानी गई
- नीब करौरी धाम को क्यों कहते हैं ‘कैंची धाम’?
- “घात” या दैवीय हस्तक्षेप : उत्तराखंड की रहस्यमयी परंपराएँ
- अद्भुत है राजा ब्रह्मदेव और उनकी सात बेटियों के शौर्य की गाथा
- कैंची धाम का प्रसाद: क्यों खास हैं बाबा नीम करौली महाराज के मालपुए?
- जादुई बकरी की कहानी
