न जाने पहाड़ के कितने परिवारों की हकीकत है क्षितिज शर्मा की कहानी झोल खाई बल्ली
सर्दी ने थोड़ी राहत दे दी थी. चार दिन से रुक-रुककर बर्फ गिरने के बाद आज कुछ देर को धूप निकल आई थी. एकदम मरियल, पीली-पीली. उसमें हल्की-सी तपन तो थी, पर बर्फ पिघलाने की ताकत बिलकुल नहीं थी.(Jh... Read more
पहाड़ की लड़कियों का पहाड़ सा जीवन
आंगन की भीढ़ी में बैठे-बैठे हरूवा सुबह से पांच बीड़ी फूंक चुका था. बेटी की शादी में महज 10 दिन रह गए थे. पहाड़ियों का एक अलग ही लॉजिक होता है, टेंशन के समय में बीड़ी फूकने से काम करने की थोड... Read more
कहानी: भागने वाली लड़कियां
लड़कियों के लिए सड़क की ओर की चढ़ाई चढ़ना किसी यातना से गुजरने जैसा रहा. खड़ी चढ़ाई उनके ही नहीं अच्छे-अच्छों के होश ठिकाने लगा देती थी. दोनों किसी से मिले तथा कुछ कहे बगैर चुपचाप गांव से चल... Read more
Popular Posts
- पहाड़ से निकलकर बास्केटबॉल में देश का नाम रोशन करने कैप्टन हरि दत्त कापड़ी का निधन
- डी एस बी के अतीत में ‘मैं’
- शराब की बहस ने कौसानी को दो ध्रुवों में तब्दील किया
- अब मानव निर्मित आपदाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं : प्रोफ़ेसर शेखर पाठक
- शराब से मोहब्बत, शराबी से घृणा?
- वीर गढ़ू सुम्याल और सती सरू कुमैण की गाथा
- देश के लिये पदक लाने वाली रेखा मेहता की प्रेरणादायी कहानी
- चंद राजाओं का शासन : कुमाऊँ की अनोखी व्यवस्था
- उत्तराखंड में भूकम्प का साया, म्यांमार ने दिखाया आईना
- हरियाली के पर्याय चाय बागान
- हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा
- हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल