दुखी रहना कहीं आपकी आदत तो नहीं बन गया है
थोड़ा-सा अटपटा तो लग सकता है, पर सच यही है कि हम अपनी मर्जी से ही दुखी होते हैं. कोई हमें दुखी होने को कहता नहीं. और असल में दुखी होने की कोई वजह भी नहीं होती, क्योंकि दुख तो आपके सोचन... Read more
सुन्दर चन्द ठाकुर के कॉलम पहाड़ और मेरा जीवन – अंतिम क़िस्त (पिछली क़िस्त: मैं बना चौबीस रोटियों का डिनर करने वाला भिंडी पहलवान) हमारे समय में बीएससी दो साल का होता था. 1989 में जिस वर्ष मैं... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 66 (पिछली क़िस्त: और यूं एक-एक कर बुराइयां मुझे बाहुपाश में लेती गईं जिम शब्द का इतना अधिक इस्तेमाल होता है कि अब हिंदी का ही शब्द लगता है. इस्तेमाल इसलिए होता है क्योंक... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 66 (पिछली क़िस्त: वो शेर ओ शायरी, वो कविता और वो बाबा नागार्जुन का शहर में आना एक बहुत ही लंबा बेवकूफी भरा और ईगो से संचालित जीवन जी लेने के बाद अब जाकर मैं हर तरह के नश... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 65 (पिछली क़िस्त: वो मेरा ‘काटो तो खून नहीं’ मुहावरे से जिंदा गुजर जाना तेरी बज्म से उठते हुए डर लगता है, ये शहर मुझे अपना घर लगता हैहरेक उसकी आंख में डूबने को है आतुर,... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 62 (पिछली क़िस्त: और मैं जुल्फ को हवा देता हुआ स्कूल से कॉलेज पहुंचा) मैंने ऐसा फैसला क्यों लिया इसकी अब तो ठीक-ठीक वजह बताना मुश्किल है, लेकिन बीएससी फर्स्ट इयर में जब... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 57 (पिछली क़िस्त: बारहवीं में दसवीं के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा यूं कमाए मैंने पैसे) मुझे जैसी याद दसवीं की बोर्ड परीक्षाओं की है, वैसी बारहवीं की परीक्षाओं की नहीं है. बोर... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन- 56 मैं विद्यार्थी जीवन के दौरान और बाद में भी कई बार पैसों को लेकर थोड़ी तंगी में जरूर रहा, पर मैंने कभी पैसों की बहुत ज्यादा परवाह की हो, मुझे याद नहीं. उस लिहाज से देख... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन- 55 पिथौरागढ़ में अखबारों, किताबों और स्टेशनरी की अब तो बहुत-सी दुकानें खुल गई हैं, पर हमारे स्कूल के दिनों में पुनेठा बुक स्टोर और उसी के सौ मीटर के दायरे पर जूपिटर पैलेस... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन- 54 (पिछली क़िस्त: उसकी पलकों का क्षितिज न मिला, फूल मेरी नफीस मुहब्बत का न खिला) पहाड़ और हरियाली एकदूसरे के पर्याय हैं. दो साल पहले जब उन्मुक्त गर्मियों में क्रिकेट खेलन... Read more
Popular Posts
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना
- कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा
- कहानी : फर्क
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा