गले में पाटी लटकाकर स्कूल जाने की याद
लोग अपने कालेज के दिन याद करते हैं. जवानी के दिनों पर चर्चा करते हैं पर मुझे लगता है पहाड़ी लोग अपने स्कूल के समय को याद करते हैं. उसमें भी हमारी कलम-दवात और पाटी (तख्ती) वाली पीढी. अगर दिन... Read more
विरासत है ‘खन्तोली गांव’ की समृद्ध होली परम्परा
मुझे पहला मंच मेंरे गांव खन्तोली की होली में मिला. गांव के लोगों के प्रोत्साहन और शाबासी ने ही कुछ लिखने की प्रेरणा दी. मेंरे गुरु वास्तव में मेंरे गांव के लोग हैं, गाँव की होली है. क्या शान... Read more
‘ह्यून’ पहाड़ों में सर्दी का मौसम
ह्यून यानि कि सर्दी का मौसम. पहाड़ों के मुख्य तीन मौसम – रूड़, चौमास, ह्यून में सबसे अच्छा मौसम ह्यून का ही होता है. हालांकि इस मौसम में कुछ जटिलतायें भी हैं. मंगसीर, पूस और माघ का महि... Read more
ताकुला की आमा का होटल और पहाड़ियों की बस यात्रा
शहरों से पहाड़ को लौटने पर हल्द्वानी से ही एक अलग उर्जा का संचार होने लगता है. लम्बे सफ़र की थकावट के बाद जब काठगोदाम पहुंचते हैं तो लगता है जैसे अपने घर की देली में पहुंच गये हों और अब बस भ... Read more
पहाड़ में कौतिक की बेमिसाल यादें
कौतिक का मतलब होता है मेला. मेले तो हर जगह लगते हैं और हर मेले का अपना सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और व्यापारिक महत्व रहा है. कुमाऊं गढ़वाल के कई मेले प्रसिद्ध हैं. इन मेलों पर शिरकत करके पहाड़ के... Read more
ठेठ पहाड़ी खेलों की याद
खेल के मैदान में आजकल भारत के कई खिलाड़ी कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं. पढाई के साथ खेलकूद को भी प्रोत्साहन मिल रहा है और हमारे समय की कहावत- पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब... Read more
Popular Posts
- हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा
- हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल
- चेरी ब्लॉसम और वसंत
- वैश्वीकरण के युग में अस्तित्व खोते पश्चिमी रामगंगा घाटी के परम्परागत आभूषण
- ऐपण बनाकर लोक संस्कृति को जीवित किया
- हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’