औपनिवेशिक मूल्यों की तलछट पर बिछा एक लाचार समाज भारत को आज़ादी तो 1947 में मिल चुकी थी; मगर आज लगता है, आम आदमी तक पहुँचने में उसे पूरे सात दशक लग गए – 1950 से लेकर 2020 तक. दो-चार साल इधर य... Read more
‘गहन है यह अन्धकारा’ में दूर कहीं उजास दिखता है
पुलिस के पास ढेरों कहानियां होती हैं. हर तबके की, हर तरह की. कहानी बनाना भी आ जाता है और वक्त-जरूरत पर मैदानी सड़क को पहाड़ी-मोड़ देना भी. एक कमी रह जाती है कि अपनी रामकहानी नहीं सुना पाते क... Read more
हिन्दी में लिख रहे नौजवान लेखक ‘गहन है यह अन्धकारा’ से खूब सारे सबक सीख सकते हैं
पुलिस को खबर मिलती है कि एक जली हुई सिर कटी लाश मिली है. पुलिस तफ्तीश करती है और कई तरह की पूछताछों, शिनाख्तों और अनुसन्धानों के बाद अपराधी का पता लगा लेती है. (Gahan Hai Yah Andhkara Review... Read more
साहित्यकार अमित श्रीवास्तव का बहुप्रतीक्षित उपन्यास ‘गहन है यह अंधकारा’ आखिर छपकर आ ही गया. आजादी के बाद से पुलिस-सुधार की बातें जोर-शोर से चलती रहीं. पुलिस- कमीशन की कई रिपोर्ट्... Read more
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