डॉ शिवप्रसाद डबराल : जिन्होंने अपनी जमीन बेचकर भी उत्तराखंड का इतिहास लिखा
छः वर्षों तक सूरदास बने रहने के कारण लेखन कार्य रुक गया था. प्रकाशन कार्य में निरंतर घाटा पड़ने से प्रेस बेच देना पड़ा. ऑपरेशन से ज्योति पुन: आने पर पता चला कि दर्जनों फाइलें, जिसमें महत्वपूर्... Read more
उत्तराखंड का तामता (टम्टा) समुदाय उत्तराखंड का प्राचीन ऐतिहासिक नगर अल्मोड़ा कला व संस्कृति के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखता है. इस नगर की पहचान बुद्धिजीवियों के नगर के रूप में की जाती है.... Read more
ई. शर्मन ओकले ने अपनी किताब ‘होली हिमालयाज’ में लिखा है कि चंद राजाओं के समय राजा ने आत्मरक्षा के लिये जो नियम बनाये वह रूस के जार के नियमों से भी कठोर थे. दरसल ओकले जिन नियमों क... Read more
चंद शासकों ने अपनी खस प्रजा को नियंत्रित करने हेतु हिमांचल से योद्धा बुलाये थे. हिमांचल से बुलाये इन योद्धाओं को चंद शासकों ने अपनी सेना में सैनिक और ऊंचे पदों पर रखा. कुमाऊं में कांगड़ा और अ... Read more
गढ़वाली राजा जिसके आदेश पर प्रजा अंग्रेजों की मुर्गियां और कुत्ते पालकी में ढ़ोती थी
गढ़वाली राजा सुदर्शन शाह की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति शुरुआत में बहुत खराब थी. कनखल के युद्ध के बाद एक बात वह समझ गया था कि उसकी भलाई अंग्रेजों की भक्ति में ही है. भारत के अधिकांश छोटे राजाओं... Read more
एक फायर के तीन शिकार कुली, मुर्गी और ‘अल्मोड़ा अख़बार’ यह टिप्पणी गढ़वाल समाचार पत्र की है. गढ़वाल समाचार पत्र ने यह टिप्पणी तब की थी जब ब्रिटिश सरकार ने अल्मोड़ा अखबार को बंद करवा दि... Read more
आजादी से पहले उत्तराखण्ड में वन आन्दोलन
वन आन्दोलन 1920-21 तक बेगार आन्दोलन का पूरक हो गया था. इन आन्दोलनों के व्यापक सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक परिणाम हुए. इनसे प्रान्तीय प्रशासन, राजनीति और स्वयं राष्... Read more
कुली बेगार आन्दोलन
11 जनवरी 1921 की शक्ति में बदरी दत्त पाण्डे का ‘बेगार उठा लो’ का आह्वान इसी क्रम में था. 1921 के आरम्भ में कुमाऊँ का सामाजिक-राजनैतिक तापमान अपनी पराकाष्ठा पर था. गाँवों- विशेष रूप से समस्त... Read more
भारत सरकार ने 1994 में उनकी फोटू वाला एक डाक टिकट जारी किया और नामकरण किये जाने से छूट गईं एकाध सड़कों के नाम उनके नाम पर रख दिए. उत्तराखंड बनने के बाद जब राज्य सरकार को अपने स्थानीय नायकों... Read more
इतिहास को क्यों पढ़ा जाये?
उत्तराखंड का इतिहास – भाग 1 -गिरीश लोहनी इतिहास को पढ़ने से पूर्व दो महत्त्वपूर्ण सवाल यह आते हैं कि इतिहास क्या है और इतिहास को पढ़ा क्यों जाये? इतिहास प्रत्येक पल में घटी महत्त्वपूर्... Read more
Popular Posts
- पहाड़ से निकलकर बास्केटबॉल में देश का नाम रोशन करने कैप्टन हरि दत्त कापड़ी का निधन
- डी एस बी के अतीत में ‘मैं’
- शराब की बहस ने कौसानी को दो ध्रुवों में तब्दील किया
- अब मानव निर्मित आपदाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं : प्रोफ़ेसर शेखर पाठक
- शराब से मोहब्बत, शराबी से घृणा?
- वीर गढ़ू सुम्याल और सती सरू कुमैण की गाथा
- देश के लिये पदक लाने वाली रेखा मेहता की प्रेरणादायी कहानी
- चंद राजाओं का शासन : कुमाऊँ की अनोखी व्यवस्था
- उत्तराखंड में भूकम्प का साया, म्यांमार ने दिखाया आईना
- हरियाली के पर्याय चाय बागान
- हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा
- हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल