भले ही देश आर्थिक उदारीकरण के लिए सरदार मनमोहन सिहं और नब्बे के दशक को याद रखता हो लेकिन मेरे पिताजी परिवार के हित में ऐसी कोशिश उससे भी पाँच बरस पहले भैंस खरीदकर कर चुके थे. पिताजी जब भैंस... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -44 पिछली क़िस्त : पहाड़ों में पैदल चलने के बिना जिंदगी का जायका ही क्या जो लोग पिथौरागढ़ से जुड़े हैं और जिनकी पत्रकारिता में थोड़ी बहुत दिलचस्पी है, वे बद्रीदत्त कसनियाल... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -43 पिछली क़िस्त : हल चलाना, नौले से फौले में पानी भरकर लाना और घोघे की रोटी मक्खन, नून के साथ खाना मेरे पिताजी ने पिथौरागढ़ के मिशन इंटर कॉलेज से दसवीं पास की थी और उसके त... Read more
हल चलाना, नौले से फौले में पानी भरकर लाना और घोघे की रोटी मक्खन, नून के साथ खाना
पहाड़ और मेरा जीवन – 42 पिछली कड़ी: एक कमरा, दो भाई और उनके बीच कभी-कभार होती हाथापाई हम सबकी जड़ें गांवों में हैं, लेकिन सबने वहां का जीवन नहीं देखा. मैं अपने गांव के बहुत करीब रहा, ल... Read more
एक कमरा, दो भाई और उनके बीच कभी-कभार होती हाथापाई
पहाड़ और मेरा जीवन – 41 पिछली कड़ी: आपकी एक छोटी-सी पहल कैसे आपका मुकद्दर संवार सकती है आज कुछ लोग इस बात पर शायद यकीन न करें, पर सच यही है कि मैं कक्षा नौ से लेकर बारहवीं करने तक अपनी मां स... Read more
जब संपादकीय टिप्पणी के साथ ‘जनजागर’ के मुखपृष्ठ पर मेरी कविता प्रकाशित हुई
पहाड़ और मेरा जीवन – 38 (पिछली कड़ी: एक शराबी की लाश पर महिलाओं के विलाप ने लिखवाई मुझसे पहली कविता ) आठवीं से नवीं में आने के सफर के दौरान मुझे खुद में दो बदलाव साफ दिखाई दिए- पहला तो मैं छ... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 37 (पिछली कड़ी: पहाड़ और मेरा जीवन – 36 :पहाड़ ने पुकारा तो मैं सहरा से लौट आया) पिथौरागढ़ में डिग्री कॉलेज के बगल में सदगुरु निवास मेरे लिए चार साल तक निवास रहा। हमारे प... Read more
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