कका-काखी वाली मिठास अंकल-आंटी में नहीं आ सकती
भाषा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी व्यक्ति के बारे में जान सकते हैं, उसे समझ सकते हैं, उससे जुड़ पाते हैं. यूँ तो दुनिया में कई भाषाएं हैं उन सभी का अपना-2 महत्व है, किंतु एक भाषा... Read more
पहाड़ी तकिया कलाम नहीं वाणी की चतुरता की नायाब मिसाल है ठैरा और बल का इस्तेमाल
आम पहाड़ियों में ठैरा और बल शब्द जाने-अनजाने उनका पीछा नहीं छोड़ते. सुदूर महानगरों में रहने वाले लोग भी जो पैदायशी उत्तराखण्डी हों हिन्दी बोलते वक्त भी इन शब्दों के यदा कदा प्रयोग करने पर उ... Read more
घाम दीदी इथकै आ, बादल भिना उथकै जा
अब ऐसे नज़ारे कम दिखाई देते हैं, मगर हमारे छुटपन में जब पहाड़ों का आकाश हर वक़्त बादलों से घिरा रहता, हम बच्चे अपने गाँव की सबसे ऊँची चोटी पर दोनों हाथ फैलाए आकाश की ओर देखकर वहाँ बैठे देवता... Read more
भले कुमांउनी भाषा न होकर अभी तक बोली ही मानी जायेगी, क्योंकि न तो इस का मानकीकरण हुआ है और न व्याकरण. लेकिन लिपिबद्धता की सीमितता के बावजूद वाचिक परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित इस का... Read more
कम लोग ही जानते हैं कि मडुवा मूल रूप से इथोपिया और युगांडा देश का एक मोटा अनाज है जिसे आज विश्व में भारत समेत केन्या, जायरे, जाम्बिया, जिम्बाब्वे, तंजानिया, सूडान, नाइजीरिया, मोजम्बीक, नेपा... Read more
आज भले हम इस जद्दोजहद में फंसे हैं कि कुमाऊनी को एक हम एक बोली के रूप में कैसे बचा सकें. कैसे हम आने वाली पीढ़ी तक अपनी बोली को किसी तरह पहुंचा सकें? एक ऐसे समय में जब हमारी शिक्षा व्यवस्था स... Read more
जब कभी पर्वतीय संस्कृति की चर्चा होती है, विशेषकर कुमाउंनी संस्कृति की तो स्वतः ही यहां की बैठकी होली (Kumaon Baithki Holi) गायन का सन्दर्भ मानस पटल पर उभरने लगता है. होली गायन की परम्परा कु... Read more
कुमाऊं की रंगीली होलियां -चारू चन्द्र पांडे कुमाऊँ में होलियों का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है, होली की एकादशी को रंग-भरे सफेद वस्त्र धारण किये जाते हैं एक डंडे पर नये कपड़े की धारियाँ या... Read more
‘उत्तराखण्ड होली के लोक रंग’ शेखर तिवारी द्वारा संपादित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है. चंद्रशेखर तिवारी काफल ट्री के नियमित सहयोगकर्ता हैं. उत्तराखण्ड की होली परम्परा (Traditional Hol... Read more
मडुआ: एक पहाड़ी अनाज का फर्श से अर्श तक का सफर
मडुआ, मंडुआ, क्वादु और कोदा नाम से पहचाने जाने वाले अनाज को लम्बे समय तक उत्तराखण्ड में वह सम्मान नहीं मिल पाया है जिसका कि वह हकदार था. मडुआ को हमेशा से निचली समझी जाने वाली जातियों और गरीब... Read more
Popular Posts
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना
- कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा
- कहानी : फर्क
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा