कालकोठरी से सुल्ताना ने फ्रेडी को मिलने का संदेशा भिजवाया. इस मुलाकात में सुल्ताना ने फ्रेडी से नजीबाबाद किले में नजरबंद अपने परिवार का ख़याल रखने को कहा. इस परिवार में सुल्ताना का प्यारा कुत्ता ‘राय बहादुर’ भी था. इस कुत्ते को फ्रेडी ने खुद पाल लिया. फ्रेडी तब यह नहीं जानता था कि यह कुत्ता उसके लिए बहुत फायदेमंद साबित होने वाला है. (Story of Sultana Dacoit’s Dog)
इतिहास का लोकप्रिय पात्र बन चुके सुल्ताना डाकू के चाहने वालों में सिर्फ गरीब जनता ही नहीं थी. एक गोरी मेम की सुल्ताना के लिए दीवानगी भी दस्तेवेजों में दर्ज है. सुल्ताना को पकड़ने वाली टीम का नेतृत्व करने वाला पुलिस अफसर फ्रेडी यंग भी उनसे मिलने के बाद से दोस्ताना भाव रखने लगे. सुल्ताना के पकड़े जाने के बाद फ्रेडी से उनकी दोस्ती और गाढ़ी हो गयी.
जैसा कि हमने बताया था कि सुल्ताना के दो ख़ास सिपहसालार ‘बाबू’ और ‘पहलवान’ गोलियों की बौछार के बीच भी सुल्ताना के अड्डे से फरार होने में कामयाब हुए थे. जाहिर है ये कभी भी सरकार के लिए नयी चुनौती पेश कर सकते थे.
घटना के बाद नजीबाबाद के एक अस्पताल में एक आदमी जख्मी नाक के साथ पहुंचा. उसने बताया कि कुत्ते के काटने से यह घाव हुआ है. कम्पाउंडर का ठीक-ठीक अंदाजा था कि यह बारह बोर की गोली के छर्रे का घाव था, उसने यह सूचना पुलिस को दी. अब पूरे सूबे में नाक पर घाव वाले आदमी को तलाशा जाने लगा.
कुछ महीनों बाद फ्रेडी के अर्दली को मुरादाबाद स्टेशन में दो आदमी दिखाई दिए. इनमें से एक आदमी के चेहरा ढंकने से पहले ही अर्दली ने उसकी नाक पर चिपका हुआ रुई का फाहा देख लिया था. फ्रेडी और उसका अर्दली इस दौरान पुलिस के सालाना जलसे में मुरादाबाद हुए हुए थे. अर्दली इक्का पकड़कर फ्रेडी के पास पहुंचा और फ्रेडी कार से तूफानी रफ़्तार में रेलवे स्टेशन.
स्टेशन पहुंचकर फ्रेडी ने सभी मुसफिखानों के रास्तों पर पहरा लगा दिया. तलाश करने पर वे दोनों आदमी मुसाफिरखाने के भीतर ही मिल गए. दोनों ने खुद को बरेली से पंजाब जा रहे व्यापारी बताया. उन्होंने बताया कि जब वे बरेली स्टेशन पहुंचे तो प्लेटफ़ॉर्म पर दो गाड़ियाँ खाड़ी थीं किसी ने उन्हें गलत गाड़ी पकड़वा दी. अगली ट्रेन अब दूसरे दिन थी. लिहाजा पूछताछ करने की गरज से फ्रेडी उन दोनों को साथ लेता आया. फ्रेडी जानता था कि बिना वारंट के वह ऐसा नहीं कर सकता तो उसने दोनों को रात का भोजन करने के लिए ले जाने का बहाना बनाया. ख़ास तौर से तब भारी मुसीबत हो सकती थी जब जेल में बंद सुल्ताना के साथी उन दोनों को पहचानने से इनकार कर दें. इन्हीं ख्यालों की उमड़-घुमड़ के बीच फ्रेडी बंगले पर पहुंच गया.
फ्रेडी के बंगले में कई कुत्ते थे और इनके साथ सुल्ताना का कुत्ता भी. इन महीनों में देसी पाही और टेरियर की मिलीजुली नस्ल का यह कुत्ता अपनी वफादारी फ्रेडी के नाम कर चुका था. जैसे ही कार बंगले के गेट पर लगी और मुसाफिर उतरे, सुल्ताना का कुत्ता रॉकेट की तरह बाहर आया. कुछ देर ठिठककर वह दोनों अजनबी मुसाफिरों के क़दमों में लोट गया. भारत के रॉबिनहुड सुल्ताना डाकू की कहानी
फ्रेडी और मुसाफिरों के बीच एक लम्बी ख़ामोशी पसर गयी. सब एक-दूसरे को देखने लगे. आखिरकार ख़ामोशी को ‘पहलवान’ ने ख़त्म किया और झुककर कुत्ते के सर पर हाथ फेरते हुए कहा “इस ईमानदार गवाह के सामने हमारे यह कहने का कोई फायदा नहीं है कि हम वो नहीं है जो आप समझ रहे हैं कि हम हैं.” इस तरह सुल्ताना के कुत्ते की वफ़ादारी से दोनों डकैत पहचाने गए. (Story of Sultana Dacoit’s Dog)
(जिम कॉर्बेट की किताब माइ इंडिया के अध्याय सुल्ताना : इंडियाज रॉबिनहुड के आधार पर)
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