मां नंदादेवी जितना अपनी करुणा और ममता के लिये जानी जाती हैं उतना ही अपने क्रोध के लिये भी विख्यात हैं. मां नंदा के क्रोध को लेकर कुमाऊं गढ़वाल अंचल में अनेक किवदंती लोकप्रिय हैं. बागेश्वर में मां नंदा देवी और भगवान बागनाथ के संघर्ष की एक ऐसी ही किवंदती लोकप्रिय है.
मां नंदा अपने भाई के बालक मूल नारायण को लेकर हिमालय की ओर लौट रही थी. अल्मोड़ा पार करने के बाद मां नंदा देवी बागेश्वर पहुंचती हैं. यहां भगवान बागनाथ का राज था. दसों दिशाओं में भगवान बागनाथ का प्रताप फैला था.
मां नंदादेवी बागेश्वर में अपने दल-बल के लिये विश्राम हेतु भगवान बागनाथ से गर्वपूर्ण आग्रह करती हैं. प्रार्थना के स्थान पर इस गर्वपूर्ण आग्रह से भगवान बागनाथ को क्रोध आ जाता है और वह देवी से कहते हैं कि
अगर आपने मुसाफ़िर की तरह प्रार्थना कर स्थान मांगा होता तो में ख़ुशी-ख़ुशी आपको स्थान दे देता लेकिन अधिकार जैसा दिखाकर बोलने से मेरे मन में आता है कि आपको पैर रखने भर की जगह न दी जाय.
भगवान बागनाथ के मना करने पर मां नंदा बहुत अधिक क्रोधित हो गयी और विकराल रुप धारण कर लिया. मां नंदा ने अपने बालों को बिखरा दिया और अपने अष्टगणों को आदेश देने लगी. मां नंदा के इस अवतार को देख भगवान बागनाथ अत्यंत भयभीत हो गये.
देखते ही देखते मां नंदा ने क्रोध में एक मंत्र फूंका और बागेश्वर की दोनों नदियों के पानी के बहाव को बंद कर दिया. भगवान बागनाथ की आंखों के सामने जब बागेश्वर डूबने लगा तो उन्होंने मां नंदा से हाथ जोड़कर मांफी मांगना शुरु कर दिया.
भगवान बागनाथ की प्रार्थना के जवाब में मां नंदादेवी ने कहा यदि तुझमें शक्ति है तो बहाव को फिर से शुरू कर दिखा. भगवान बागनाथ के बार-बार अपनी हार स्वीकारने के बाद मां नंदा देवी के क्रोध में कुछ कमी आयी. उन्होंने भगवान बागनाथ से कहा कि
हे बागनाथ, अगर नदियों के प्रवाह को फिर से शुरू करने में असमर्थ हो तो जाओ और मछली के जाल में पानी भरकर लाओ. मुझे बहुत प्यास लगी है.
भगवान बागनाथ देवी के प्रति अपने व्यवहार पर बहुत लज्जित हुये और वे देवी के पास गये प्रार्थना करने लगे कि उनकी हार स्वीकार करें. तब मां नंदादेवी ने शांत होकर गोमती और सरयू का प्रवाह शुरू करवाया और बागेश्वर डूबने से बच गया. इसके बाद भगवान बागनाथ ने नंदा देवी को खूब धूमधाम से विदाई दी.
– काफल ट्री डेस्क
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बागेश्वर के बाघनाथ मंदिर की कथा
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