नैनीताल जिले के भीमताल (Bhimtal) ब्लॉक में एक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है शिव मंदिर (Shiv Temple) छोटा कैलाश (Chota Kailash.) यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको हल्द्वानी से सड़क मार्ग पर अमृतपुर, भौर्सा होते हुए पिनरों गाँव तक पहुंचना होता है. पिनरों गाँव से 3-4 किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद आप उस पहाड़ी के शीर्ष पर पहुँच जाते हैं जहाँ भगवान शिव का एक पुरातन मंदिर है.
यहाँ तक पहुँचने का रास्ता भी बेहद शांत और सुन्दर है. रानीबाग में पुष्पभद्रा और गगरांचल नदी के संगम पर बने पुल को पार करते ही रास्ता पहाड़ के साथ-साथ चलने लगता हैं. थोड़ा आगे चलने पर अमृतपुर से भीमताल की तरफ जाने वाला रास्ता इस सड़क को विदा कर देती है. यहाँ से गार्गी नदी कुछ दूर तक इस छोटी सी सड़क के साथ-साथ चलती है. अमृतपुर गाँव के बीचों-बीच पहुंचकर बायीं तरफ जाने वाले सुनसान पहाड़ी रास्ते को पकड़कर पिनरों पहुंचा जाता है. रामनगर का गार्जिया माता मंदिर
अमृतपुर से जंगलियागाँव (भीमताल) को जोड़ने वाला यह रास्ता प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है. जंगल की नीरवता में पक्षियों का कलरव सुनना बेहद उम्दा अनुभव प्रदान करता है. रास्ते में पड़ने वाले गाँव ठेठ पहाड़ के परिवेश को रच देते हैं. पहाड़ी ढलानों पर बहुत मेहनत के साथ तैयार किये गए सीढ़ीदार खेत वातावरण को और दिलकश बना देते हैं. जैसे-जैसे आप पहाड़ी रास्ते के घुमावों पर चलते हुए ऊँचाई की तरफ बढ़ते जाते है वैसे-वैसे आँखों को दिखाई देने वाली पर्वत श्रृंखलाओं का दायरा विस्तृत होता जाता है.
पिनरों से आगे यह सड़क बानना गाँव होते हुए जंगलियागाँव के लिए जाती है. पिनरों से तीखी चढ़ाई वाली पहाड़ी पगडण्डी छोटा कैलाश के लिए ले जाती है. पिनरों भी पहाड़ी वास्तुशिल्प वाले घरों से बना एक गाँव है. यहाँ मौजूद इकलौती दुकान से आगे के पैदल सफर के लिए खाने-पीने का सामान लिया जा सकता है. इसी दुकान में चाय-मैगी भी मिलती है.
पिनरों आखिरी बसासत है और इसके बाद पीने का पानी भी रास्ते के बीचों-बीच सिर्फ एक जगह पर मिला है. पैदल रास्ता भी फेफड़ों का अच्छा इम्तहान लेने वाला है. मंदिर परिसर में भी पेयजल दूर से लाकर संग्रहित किया जाता है.
छोटा कैलाश मंदिर पहाड़ की जिस चोटी पर बना है वह इर्द-गिर्द के पहाड़ों में सबसे ऊंची चोटी है. पिनरों से चलने के कुछ देर बाद इस रास्ते से पर्वतश्रृंखलाओं का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. कैलसा और गार्गी नदी की हसीन घाटियाँ भी लगातार दिखाई देती हैं. रास्ता इतना मनमोहक है कि आप तीखी चढ़ाई की थकान को बिसराते चलते हैं. बैजनाथ का शिव मंदिर
छोटा कैलाश के बारे में मान्यता है कि सतयुग में भगवान महादेव एक बार यहाँ आये थे. अपने हिमालय भ्रमण के दौरान भगवान शिव तथा पार्वती ने इस पहाड़ी पर विश्राम किया था. महादेव के यहाँ पर धूनी रमाने के कारण ही तभी से यहाँ अखण्ड धूनी जलायी जा रही है. मान्यता है कि यहाँ पहुंचकर शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु यहाँ पर घंटी और चांदी का छत्र चढ़ाते हैं.
18 साल से मंदिर में तपस्यारत कर्नाटक कैलाशी बाबा बताते हैं कि जब शिव ने यहाँ वास किया तो उन्होंने दिव्य शक्तियों से यहाँ पर एक कुंड का भी निर्माण किया. जिसे पार्वती कुंड कहा जाता था. बाद के वर्षों में किसी भक्त द्वारा उसे अपवित्र कर देने के कारण उसका जल सूख गया. उस कुंड तक पहुँचने वाली तीन सतत जलधाराएँ विभक्त होकर पहाड़ी के तीन छोरों पर थम गयी.
आजकल यहाँ पर पार्वती कुंड को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. मनरेगा के तहत 8 लाख रुपये की लागत से यहाँ पर इस कुंड का निर्माण किया जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि इस महाशिवरात्रि तक पार्वती कुंड बनकर तैयार हो जायेगा. इस शिवरात्रि भक्त पार्वती कुंड के दर्शन कर सकेंगे.
कर्नाटकी बाबा बताते हैं कि सावन और माघ के महीने में यहाँ भक्तों की आवाजाही काफी बढ़ जाति है. शिवरात्रि के दिन यहाँ विशाल मेला लगता है. इस दिन दूर-दूर से हजारों भक्त यहाँ आकर पूजा-अर्चना करते हैं. महाशिवरात्रि की रात यहाँ पर हजारों लोग रात भर रूककर अनुष्ठान करते हैं. वे बताते हैं कि भक्तों के कुछ दल यहाँ हर महीने आते हैं और रात भर पूजा करके सुबह वापसी करते हैं.
शिवरात्रि के दिन कुछ भक्त अपने हाथ बंधवाकर रात भर धूनी के आगे खड़े होकर मन्नत मांगते हैं. इनमें से अगर किसी का हाथ स्वयं खुल जाये तो उसे धूनी के आगे से हटा दिया जाता है.
मंदिर का जो स्वरूप आज दिखाई पड़ता है यह 20 साल पुराना है. उससे पहले यहाँ शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान था. मंदिर में तीन पुजारी हैं जो विशेष आयोजनों के मौकों पर ही यहाँ आते हैं. बाकि समय में कर्नाटक बाबा ही इस मंदिर की देखभाल और रखरखाव करते हैं.
(सभी फोटो: Kafal Tree )
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