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हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 67

हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 67

पिछली कड़ी का लिंक: हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने- 66

यह अप्रत्याशित दुर्घटना केवल हल्द्वानी (Haldwani) के ही हिस्से आयी हो ऐसी बात तो नहीं अलबत्ता इस सौहार्दपूर्ण शहर में भी घट गई, यह महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या पूरे देशवासियों को हतप्रभ कर देने वाली थी. इस हत्या के दूसरे ही दिन बहुत से शहरों में सिखों के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए. इस जुनूनी भीड़ ने जो कुछ आवेश में कर डाला उसका पछतावा भी उसे शायद उसी शाम को हो गया होगा. यह 1 नवम्बर 1984 (Communal riots Haldwani) की घटना है. हल्द्वानी में उस दिन जो घटा, वह सब क्या था? एक पागलपन, एक वहशीपन जिसने थोड़ी देर के लिए सड़कों पर उमड़ आयी भीड़ को अपने कब्जे पर कर लिया और वह सब कुछ कर दिया जो नहीं किया जाना चाहिए था.

वह सब कुछ हो गया जो नहीं होना चाहिए था. थाने के आस-पास एकत्रित हुई भीड़ भद्दे-भद्दे वाक्यांशों के साथ गुरुद्वारे की ओर बढ़ चली और गुरुदारे में तोड-फोड़ की पहली कार्रवाई शुरू हुई. गुरुदारे का सारा सामान रामलीला मैदान में पटक कर आग के हवाले कर दिया गया. रामलीला मैदान से उठता यह धुंआ भीड़ को हिंसक बनाता पूरे शहर में छा गया. यहां से भीड़ रोडवेज बस स्टेशन की ओर बढ़ी और कई टोलियों में बट कर आगजनी व लूटपाट करती अराजकता की हदें पार कर गयी. तिकोनिया लाईन जहां सिखों की स्पेयर पार्ट्स की दुकानें व वर्कशाप थे पूरी तरह ध्वस्त कर दिए. मंगलपड़ाव तक सिखों की सारी दुकानें भी लूटपाट व आगजनी का शिकार होती चली गयीं.

लूटपाट और आगजनी का शर्मनाक दौर

चार घंटे तक निर्द्वंद रूप से हुई इस लूटपाट में लगभग 125 दुकानें, 50 ट्रक, पांच बसें, दो मैटाडोर, दो आरामशीनें, कई स्कूटर और एक मुर्गीफार्म क्षतिग्रस्त कर दिए गए. मंगल पड़ाव में जिस वक्त क्राकरी, साइकिल, ऊन घड़ी आदि की दुकानें तोड़ी गई, तब यों लग रहा था कि टिड्डियों का जैसा दल, जो कि मैंने बचपन में देखा था, छा गया है. बच्चे और निकटवर्ती इलाके की महिलायें तक उस लूट में शामिल थीं. सांय चार बजे के बाद यों लगा जैसे कुछ हुआ ही न हो. धुएं में सारे शहर के नहाते ही कोलाहल शांत हो गया. चीखते हुए पुलिस के सायरनों और देखते ही गोली मारने के आदेश ने सबकों अपने घरों की ओर धकेल दिया.

क्या हो यह सब, इसका कोई उत्तर नहीं. क्यों हो गया यह सब, इसका भी कोई उत्तर नहीं. प्रजातंत्र में नागरिकों के जानमाल की गारंटी कितना बड़ा धोखा है यह! गुरुदारे में तोड़-फोड़ के दौरान परगनाधिकारी पुलिस बल लेके आये और तमाशा देख कर चले गए. समूचे बाजार में पुलिस दस्तों की तैनाती के बावजूद लूट-पाट चल रही थी. कई पुलिस कर्मी भी उनका साथ देते देखे गए थे. संविधान की खुल्लमखुल्ला हत्या इस पूरी घटना को कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा. सबसे बड़ा आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि चार बजे तक जो प्रशासन मुर्दा पड़ा था, चार बजे के बाद कर्फ्यू लागू होते ही अचानक आक्रामकता के साथ जिन्दा हो गया. तीन दिन तक लगातार बिना ढील दिए कर्फ्यू चालू रहा. इस तरह की यह घटना केवल हल्द्वानी में ही हुई हो ऐसी बात नहीं है, लेकिन 1984 की इस दुखद घटना का दंश हमेशा सालता रहेगा.

किन्तु यहां दो उल्लेखनीय बातें सामने आयी है, पहली यह कि पंजाब के बाद खालिस्तान समर्थकों का मुख्य गढ़ और सुविधाजनक ऐशगाह यहां का तराई-भाबरी क्षेत्र ही रहा है. तराई क्षेत्र में भिंडरवाला का मुख्य सहायक सुबेग सिंह बहुत समय तक रह चुका था. प्रताप सिंह कैरो हत्याकांड का अपराधी इसी क्षेत्र में पकड़ा गया. खालिस्तान समर्थक और अतंकवादी इसके बाद भी यहां शरण पाते रहे हैं. ये आतंकवादी सम्पन्न सिखों से चन्दे के रूप में काफी धन की वसूली करते रहे, गुरुदारों व घरों में छिपे रहे और शरण पाते रहे. इसमें कुछ सिख तो वास्तव में खालिस्तान समर्थक थे और वे दिन से उनका समर्थन व सहयोग करते थे किन्तु अधिकांश सिख परिवार मजबूरी और भय के कारण उन्हें धन और सहयोग देते थे.

सिखों का पलायन

उन्हें अलगाववादियों से कोई सरोकार नहीं था किन्तु मात्र सिख होना उन्हें अकारण संदेह के घेरे में खड़ा करता रहा जब कि सिख कौम हमेशा से ही देश के लिए वफादार और समर्पित रही. बहुत से सिख परिवार तो इस दोतरफा मार के कारण यहां से पलायन भी कर गये. यहां इन्दिरा गांधी की हत्या में सिख सुरक्षा कर्मियों का होना एक संयोग है और यह साबित नहीं करता है कि यह कौम ही गद्दार है किन्तु उच्चस्तर पर रची गई कुछ साजिशों ने ऐसा कुछ कर दिखाया. खालिस्तानियों का इस क्षेत्र में प्रवेश, उनके द्वारा की गई वारदातों और उनमें से कइयों के माने जाने की घटनायें अलग विषय हैं. सिखों के खिलाफ भड़के दंगों का सवाल भी एक बहुत बड़ा सवाल है.

रुद्रपुर में 16 अक्टूबर 1991 को रात्रि में रामलीला देख रहे लोगों के बीच फटे बम से 50 से अधिक लोगों की जानें चली गई और कई घायल हो गए. छोई के पास पुलिस कर्मियों की जीप को बम से उड़ा दिया गया, हल्द्वानी लक्ष्मी सिनेमा हाल में बम विस्फोट हुआ, चकलुवा-प्रतापपुर में तीन बच्चों का अपहरण कर लिया गया इसी बीच बिन्दा, बस्सन जैसे कई खूंखार आतंकवादी पुलिस द्वारा भी मार गिराए गए. घटनायें एक नहीं अनेक हैं. यहां तो सिर्फ इस शान्त और सौहार्दपूर्ण जीवन जी रहे नगर में घटी एक दुखद घटना का हवाला मात्र दिया जा रहा है.

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Sudhir Kumar

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