आस-पास जुड़ आए औरत-मर्दों की उपस्थिति में ही गंडामल ने अपनी चारखानी लुंगी उतारकर परे फेंक दी और एकदम गहरे लाल रंग के लँगोट के अगले सिरे को नागफनी के पत्ते की तरह फैला लिया तो चारों ओर सनसनी फैल गई.
(Shailesh Matiyani Story Haara Hua)
यह खबर तो पहले ही फैल चुकी थी कि दुखहरन मोची ने गंडामल पहलवान के खास चेले दुलीचंद के मुँह पर यों कह दिया था कि- ‘कह देना अपने बाप गंडामल से, आगे से मेरे घर की तरफ मुँह किया तो उसकी बेहया आँखों को कटन्नी से खींचकर बाहर निकाल दूँगा और जबान में ठोंक दूंगा जूते की नाल! पता चल जाएगा हरामजादे को कि किसी की बेटी को बुरी नजर से देखना क्या होता है!’
सारी बस्ती में यह सनसनी फैली हुई थी कि दुखहरन मोची की न जाने क्या दुर्गति करे गंडामल पहलवान औरत-मर्दों का जो रेला गंडामल पहलवान के इर्द गिर्द जुड़ आया था, उसमें से प्रत्येक की आँखों में एकदम चटख लाल रंग के लंगोट को अपनी जाँघों के बीच ऐंठ-ऐंठकर कसते गंडामल पहलवान के साथ-ही-साथ दुखहरन मोची की सूरत भी साफ-साफ उभर रही थी.
दुखहरन वहाँ पर नहीं था, मगर लोगों को लग रहा था कि गुस्से से किसी क्रुद्ध जंगली गैंडे की तरह बिफर-बिफरकर लँगोट को खोलते-कसते हुए गंडामल पहलवान के आस-पास ही कहीं दुखहरन मोची भी जरूर खड़ा है. हर समय पानी छूते रहने से चिमियाती और गड्ढों में धंसी हुई आँखों और न जाने सिर की कमजोरी के कारण या कि अपनी जिंदगी के प्रति वितृष्णा के कारण लगातार नाक से रिसती रेंट और पंख उतारे गए बीमार मुरगे जैसा झिल्लीदार जिस्म. लोगों को लग रहा था, अगर भयंकरता में गंडामल पहलवान का जोड़ नहीं है तो दयनीयता में दुखहरन मोची भी पूरी बस्ती में अपनी नस्ल का अकेला ही है. और ऐसा लगने के कारण ही लोगों को गंडामल पहलवान की अपनी ही जगह पर खड़े-खड़े पैंतरेबाजी करने की बात कुछ अजीब सी लग रही थी अजीब ही नहीं, अप्रत्याशित भी|
लोगों की धारणा थी कि अब तक तो दुखहरन मोची की कमजोर गरदन पकड़कर मरोड़ भी चुका होता गंडामल पहलवान दुखहरन मोची जैसे दयनीय और बगैर आड़-सहारे के आदमी से अपने अपमान का बदला चुकाने के लिए गंडामल पहलवान को दुविधा से निबटना हो, लोगों को यह सब अजूबा सा लग रहा था.
और खुद गंडामल पहलवान की स्थिति भी अजीब हो रही थी. लगातार सोलह-सत्रह वर्षों से आस-पास के पूरे इलाके में जिस किसी भी बस्ती में वह रहा था, पूरी निरंकुशता के साथ रहा था. कई जगह कई बार उसे दूसरे पहलवानों और गुंडों की चुनौतियों से भी निबटना पड़ा था, मगर ऐसा अवसर पहली बार ही उसकी जिंदगी में आया था, जब कि गंडामल पहलवान सीधे आगे बढ़कर टकरा जाने की जगह, अपने ही पाँवों पर खड़ा-खड़ा पैंतरेबाजी करता रह गया हो.
दुखहरन मोची जैसा हर तरह से गया-बीता आदमी गंडामल पहलवान के मुँह पर चमरौधा मारने, धूक देने तथा कटनी से आँखें बाहर खींच लेने की बातें करे और गंडामल पहलवान बड़ी देर तक यों अपनी ही जगह पर खड़ा सिर्फ चारखानी लुँगी को उतारता और लाल लँगोट को खोलता कसता रह जाए, यह स्थिति जितनी आस-पास जुड़ आए लोगों के लिए आकस्मिक थी, उससे कहीं ज्यादा खुद गंडामल पहलवान के लिए.
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इस बार लँगोट के पिछले सिरे को कसकर नीचे दबाते में सिर को टाँगों के बीच में झुकाए झुकाए ही गंडामल पहलवान कई बातें सोच गया.
पहले तो वह यही सोच रहा था कि दुखहरन मोची जैसे दीन और पलीत आदमी की ओर से इतनी बड़ी चुनौती आने का यह अवसर चूँकि उसकी जिंदगी में पहली-पहली बार आया है, इसी से वह कुछ असमंजस और अनिर्णय की सी स्थिति में फँस गया है. मगर इस बार उसने महसूस किया, अगर अनिर्णय की स्थिति होती तो उससे निबटने के लिए वह तेजी से दुखहरन मोची के झोंपड़े तक पहुँच सकता था और उसी की आँखों के सामने उसकी विधवा बेटी कैलासो की अस्मत लूटकर दिखा सकता था कि गंडामल पहलवान से उलझने का नतीजा क्या होता है. मगर उसे अंदर-ही-अंदर महसूस हो रहा है कि किसी बिल्कुल अमूर्त से स्तर पर यह सारी स्थिति कहीं अंदर ही अंदर निर्णीत हो चुकी है. कोई एक फैसला है, जो बिल्कुल नामालूम से तरीके से उसकी चेतना पर कुंडली मारकर बैठ गया है और इसीलिए वह जब भी आक्रामक बनने की कोशिश करना चाहता है, सिर्फ अपनी ही जगह पर सिकुड़कर रह जाता है तथा सिर्फ इसीलिए उसका जंगली गैंडे जैसा खूंख्वार जिस्म अपनी जगह पर कीलित-सा हो गया है.
उसे लगा, दुखहरन मोची की ओर से आनेवाली चुनौती उसकी जिंदगी में पहली पहली बार नहीं आई है, बल्कि यह किसी बहुत पहले आ चुकी चुनौती की पुनरावृत्ति मात्र है. किसी ऐसी चुनौती की पुनरावृत्ति, जिसे गंडामल पहलवान तब झेल नहीं सका हो और अपने ही पैरों पर खड़ा ठीक इसी तरह जमीन ख़ूदता रह गया हो.
लँगोट का पिछला छोर कसते कसते गंडामल पहलवान की अंगुलियों के सिरों में सूजन आने लग गई थी और वह चाह रहा था कि जब वह अपनी टाँगों के बीच से सिर उठाकर अपने चारों ओर देखे तो उसे दूर-दूर तक कोई भी आदमी या औरत दिखाई न पड़े: सिर्फ एक छोर पर अकेला वह खड़ा हो और दूर निपट अकेली खड़ी हो दुखहरन की चुनौती- उसकी विधवा बेटी कैलासो, ताकि वह एक बार अपने ही अंदर गड़े उस मजबूत खेटे को ठीक से टटोल सके, जिसके कारण उसका जंगली गैंडे जैसा जिस्म अपने ही पाँवों पर खड़े-खड़े अपने ही अस्तित्व को रौंदने के अलावा और कुछ भी कर पाने में असमर्थ हो गया है.
मगर सिर उठाते ही गंडामल पहलवान ने देखा, उसके आस-पास तमाशाई लोगों की भीड़ और ज्यादा हो गई है. इतना ही नहीं, खबर फैलते-फैलते उसके सारे चेले भी वहाँ एकत्र हो गए हैं और हाथ में लाठी थामे इस प्रकार खड़े हैं, जैसे इसी प्रतीक्षा में हों कि उस्ताद गंडामल पहलवान आदेश दे तो सीधे दुखहरन मोची पर टूट पड़ें.
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गंडामल पहलवान ने एक बार पूरी आँखें उघाड़कर अपने आस-पास खड़ी भीड़ को देखा. सहमी-सहमी सी आँखों में कौतूहल और गोद में बकरियों के जैसे थन झिंझोड़ते बच्चों को लिए औरतों को देखकर उबकाई-सी आने लगी. ढेर सारे मर्दों के चेहरों पर अपनी असमंजस की स्थिति के प्रति कौतूहलपूर्वक सिमटती फैलती झिल्लियों को देख-देखकर उसे ऐसा लगा, जैसे किसी ऐसे तालाब को देख रहा हो, जिसमें सिर्फ कीचड़ ही कीचड़ हो गया हो और उसमें मेढकों का झुंड खदबदा रहा हो.
ऐसे अवसरों पर लोगों के चेहरे कितने क्रूर और नंगे हो आते हैं? उन तमाम लोगों के प्रति घृणा अनुभव करते हुए गंडामल पहलवान ने एक नजर अपने छे खड़े शामिदों पर भी डाली और फिर फिर उसे लगा, उसकी दृष्टि कहीं उस झोंपड़े तक भी पहुँच रही है, जहाँ कटनी और चमरौधा हाथ में लिये निपट अकेला दुखहरन मोची खड़ा है. और उसके पीठ पीछे खड़ी है सिर्फ उसकी चुनौती- कह देना गंडामल पहलवान से कि कटनी से सुसरे की आँखें बाहर खींच लूँगा.
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एक और निपट अकेला दुखहरन मोची और उसके पीठ पीछे खड़ी सिर्फ उसकी अपनी ही चुनौती-साल भर के बच्चे को गोद में लिये विधवा कैलासो! और दूसरी और गंडामल पहलावन, उसके खूंख्वार शागिर्द और पचासों औरत-मदों का रेला ! गंडामल पहलवान को लगा कि दुखहरन मोची की तुलना में कहीं उसका पलड़ा बहुत हलका पड़ गया है और सिर्फ इसीलिए उसकी मदद को उसके शागिर्दों और तमाशाई औरत-मर्दों का इतना बड़ा रेला उमड़ता चला आया और एकाएक गंडामल पहलवान तेजी से अपने शागिदों की ओर पलट गया, “क्यों रे चुगदो! अखाड़ा लग रहा है यहाँ पर, जो सुसरे लठैत बने खड़े हो गए हो? जिससे निबटना होगा, गंडामल अकेले निबट लेगा. तुम तमाशबीनों की कोई जरूरत नहीं है.”
जल्दी में शागिर्दों या किसी दूसरे की ओर से कोई जवाब नहीं आया, मगर जुगल पनवाड़ी के हिलते हुए होंठों को गंडामल पहलवान ने देख लिया. उसे लगा अपने मुँह से अपना नाम लेते हुए आज पहली बार सिर्फ गंडामल ही उसके मुँह से निकल पाया है, ‘गंडामल पहलवान’ नहीं. उसे यह भी लगा, जिस तरह सारी बातें दुखहरन मोची को बचा करके उसने कही हैं, उससे सिर्फ जुगल पनवाड़ी की ही नहीं, बल्कि दूसरे लोगों की आँखों में भी कौतूहल उमड़ आया है. अपने असमंजस के कारण वह लोगों की दृष्टि में दुखहरन मोची से हारता चला जा रहा है, ऐसा आभास होते ही गंडामल पहलवान फिर बिफर गया. पहले उसने जोर-जोर से दुखहरन मोची को भद्दी-भद्दी गालियाँ दीं. फिर कैलासो से अपने अश्लील संबंध कायम किए और फिर मन-ही-मन जुगल पनबाड़ी और भीड़ को गंदी-गंदी गालियाँ देते हुए उसने परे फेंकी चारखानी लुंगी उठाकर कंधे पर डाल ली.
भीड़ से बाहर निकलते हुए गंडामल पहलवान ने जिंदगी में पहली बार यह जाना कि जो आदमी खुद अपने ही अंदर से कमजोर पड़ जाता है, उसे मददगारों की भीड़ और ज्यादा कमजोर बना डालती है.
उसे लगा, अंदर से कमजोर और असमंजस में पड़े हुए आदमी को निपट अकेलापन ही सहारा दे सकता है, भीड़ तो उसे और भी बेकाबू बना डालती है और फिर वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पाता, जिसे वह खुद करना चाहता है. तब वह उस काम को करने को बाध्य होता चला जाता है, जो भीड़ का सामूहिक निष्कर्ष और दबाव उससे करवाना चाहता है. अपने ही निर्णय के आगे कमजोर पड़े हुए आदमी पर भीड़ की सामूहिकता अपने निर्णयों को थोपती चली जाती है, ऐसा गंडामल पहलवान को पहली बार अहसास हुआ. वह इस बात को अब समझ गया था कि वह चाहे असमंजस और अनिर्णय की स्थिति में फँसा हुआ है, मगर उसकी पीठ पीछे छूटी हुई लोगों की भीड़ निर्णय ले चुकी है.
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इस निर्णय पर भीड़ एकदम आरंभ में ही पहुँच चुकी थी कि अब गंडामल पहलवान दुखहरन मोची की गरदन मरोड़ देगा और मार-मारकर उसका कचूमर निकाल देगा और फिर उसी के सामने उसकी विधवा बेटी कैलासो को पकड़कर, उसकी अस्मत पर हाथ डालकर अपने अपमान का बदला चुकाएगा! और जब तक वह ऐसा कर नहीं डालेगा, तब तक भीड़ की आँखों में तपती हुई पिपासा भी नहीं बुझेगी.
दुखहरन मोची की झोंपड़ी बस्ती के आखिरी सिरे पर थी, लेकिन जहाँ से गंडामल पहलवान आगे बढ़ा, वहाँ से बिल्कुल आँखों की सीध में.
गंडामल यह चाहता था कि इस समय वह सीधे दुखहरन मोची के झोंपड़े की तरफ न जाकर कहीं एकांत की ओर चल दे. पश्चिम की तरफ पड़ने वाला बड़ा पोखर और उसके किनारे का बड़ा पीपल का पेड़ उसे याद आ रहा था. वह चाहता था, घंटे-दो घंटे के लिए वह उसी के नीचे अपनी चारखानी तहमद बिछाकर लेट जाए और फिर अपने अंदर एकाएक उमड़ आए उस अतीत को शांत मन से टटोले, जिसने उसे दुखहरन मोची की तुलना में कमजोर बनाकर छोड़ दिया है. मगर पीछे मुड़कर न देखते हुए भी उसे लगता रहा कि भीड़ भले ही पीछे छूट गई है, मगर भीड़ में से हरेक औरत और मर्द की आँखें उसी की पीठ पर टिकी हुई हैं.
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कभी-कभी अपनी प्रसिद्धि और बड़प्पन की स्थिति खुद अपने लिए ही कितनी घातक बन जाती है और अपनी ही दृष्टि में अपने को कितना असहाय, निरुपाय बना देती है, यह सोचकर गंडामल पहलवान की आँखों में थोड़ी सी नमी फैल गई. वह अपनी आँखों को पोंछ लेना चाहता था, ताकि कहाँ दुखहरन मोची के सामने आँसू न निकल पड़ें. मगर उसे लगा, इस समय वह जरा सा भी रुका और आँखें पोंछने में लगा तो भीड़ की आँखों में और भी ज्यादा शंकाएँ उभर आएँगी.”
लगातार सोलह-सत्रह वर्षों से अपने शारीरिक बल और खूंख्वार स्वभाव के चलते खुद गंडामल पहलवान ने अपनी स्थिति ऐसी बना ली कि आस-पास के इलाके में उसके नाम का आतंक छाया हुआ है. उसका शागिर्द कहलाने में उभरते हुए पहलवान गर्व से सीना फुला लेते हैं. जिस बस्ती को कांग्रेस सरकार ने शरणार्थियों के लिए बसाकर ‘पुरुषार्थी बस्ती’ नाम रख दिया था, वह ‘बस्ती गंडामल’ के नाम से ज्यादा जानी जाती है. अपने और अपने दिलेर पट्टों के बल पर गंडामल पहलवान ने हर आड़े आनेवाले को पराजित करके रख दिया. जिस औरत पर नजर पड़ गई, उसको अपने बाजुओं में बाँधकर ही दम लिया. आज पैंतालीस-छियालीस की उम्र में भी जिस्म पर कहीं भी तेल का हाथ ठहर नहीं सकता. यही बनारसी जुगल पनवाड़ी जब पिछले साल इस बस्ती में आया था तो अपनी साढ़े तीन इंची मूँछों को ऐसे उमेठता फिरता था, जैसे गंडामल पहलवान की उसके लिए कोई अहमियत ही नहीं हो. बनारस के बजरंग बली अखाड़े का निकाला हुआ पट्टा था जो गंडामल पहलवान के भैंसे जैसे जिस्म को देखकर हँस पड़ता था कि ‘तो यही हैं गंडामल पहलवान साहेब ?”
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तब जुगल पहलवान को यह पता नहीं था कि गंडामल पहलवान ने धाक सिर्फ अपनी जिस्मानी ताकत के बूते पर नहीं जमा रखी है, बल्कि जीवट के कारण जमा रखी है. कुश्ती में हार जाने पर अखाड़े से हट जाने की स्थिति गंडामल के सामने आ सकती है, मगर किसी से दुश्मनी के अखाड़े में तो वह जान लेकर ही पीछे हट सकता है. और वह भी यों कि लाश का ही पता न चले कि दफन कहाँ हुई. पिछले ही साल की बात है, गंडामल पहलवान के लिए पान लगाते हुए जुगल पनवाड़ी ने छेड़ दिया था, “क्यों, पहलवान ? आपके जरा चुना ज्यादा लगा देवें तो कैसा रहे?”
और सिर्फ इतनी सी बात पर ही गंडामल पहलवान ने चूना लगाने की डंडी पूरी की पूरी जुगल पनवाड़ी के मुँह से घुसेड़ दी थी और जब तक जुगल पनवाड़ी कुछ समझे, गद्दी पर से नीचे गिराकर उसकी साढ़े तीन इंची मूँछों को अपने रामपुरी जूते की नौक के नीचे दबा दिया था. और आज वही जुगल पनवाड़ी देखता रहा है कि गंडामल पहलवान दुखहरन मोची जैसे गए-गुजरे से बदला लेने के लिए कितनी पैंतरेबाजी कर रहा है.
गंडामल पहलवान को लगा, उसकी नंगी पीठ पर जुगल पनवाड़ी की लंबी मूँछें चुभती चली जा रही हैं. एकदम चौंककर उसने पीछे को देखा तो पाया कि बहुत पीछे छूटे हुए लोग आगे बढ़ते-बढ़ते, अब उससे थोड़े ही फासले पर रह गए हैं और अगर वह तेजी से दुखहरन मोची के झोंपड़े की ओर नहीं बढ़ा तो फिर रास्ते में ही घेरकर खड़े हो जाएँगे.
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गंडामल ने अनुभव किया कि अगर वह गंडामल पहलवान के रूप में मशहूर न होकर दुखहरन मोची की तरह गया-गुजरा होता तो उसे यों भीड़ से घिरना नहीं पड़ता. इस मनःस्थिति से छुटकारा पाने के लिए वह तेजी से आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा तो उसे लगा, उसके भारी जिस्म का सारा का सारा वजन पाँवों की नसों पर उतर आया है और जल्दी-जल्दी चल पाने में वह असमर्थ है.
अपने भारी-भरकम जिस्म के पीछे आती हुई भीड़ उसे ऐसी लगी, जैसे गिद्धों का झुंड उसके पीछे-पीछे उड़ता चला आ रहा हो. गंडामल पहलवान का मन हुआ, वह शौच के बहाने नाले की तरफ चला जाए और वहाँ कुछ सुस्ताकर वापस लौटे तो दुखहरन मोची और उसकी बेटी कैलासो, दोनों को जान से मार डालने की धमकियों भीड़ के सामने-सामने दे. ऐसे में शायद भीड़ में से कई ऐसे लोग भी निकल आएँगे, जो हाथ जोड़ते हुए यह कहें कि वह दुखहरन मोची और उसकी विधवा बेटी कैलासो पर रहम कर दे. और दुखहरन मोची तथा कैलासो से माफी माँगने को कह दें.
इस कल्पना से गंडामल पहलवान को सहारा मिला और वह शौच जाने की बात भूल गया. कुछ तमतमाया हुआ सा वह भीड़ की प्रतीक्षा में रुक गया. ज्यों ही जुगल पनवाड़ी के आगे-आगे चलता हुआ दुलीचंद पहलवान दिखा, वह जोर से चिल्लाकर बोला, “दुलीचंद आगे से अपनी बिरादरी की उस्तादी तू खुद संभाल लेना बेटे! मैंने तो आज दोनों ससुरों को कत्ल कर देना है.”
गंडामल पहलवान कहना सिर्फ इतना ही चाहता था, ताकि दुलीचंद आगे बढ़कर उससे हाथ जोड़ने लगे कि ‘उस्ताद, इतना बड़ा जोखिम उठाने की कोई जरूरत नहीं हैं. हुक्म हो तो मैं दुखहरन मोची और उसकी बेटी कैलासो को आपके नीचे लिंटवाकर दिखा दूँ, मगर जरूरत जरा ठंडे दिमाग से काम लेने की है.’ मगर जुगल पनवाड़ी को देखते-देखते इतना और भी गंडामल पहलवान के मुँह से निकल पड़ा, “और जो कोई सुसरा बीच में पड़ने की कोशिश करेगा, उसकी भी टोंगे ‘चर्र से’ चीरकर अलग रख दूंगा!”
‘चीरकर रख दूंगा’ कहते-कहते, गंडामल पहलवान ने अपनी चारखानी ग को चोरकर दो टुकड़े कर लिये. और फिर खुद ही उसने यह भी अनुभव कर लिया कि अपने आवेश की अति में उसने लोगों के बीच-बचाव करने को आने की संभावना को भी खत्म कर दिया है.
गंडामल पहलवान ने देखा, दुलीचंद पहलवान सहमकर अपनी ही जगह पर खड़ा रह गया है और उसके पीछे-पीछे आती भीड़ भी थम गई है. अपने आप पर ही झुंझलाते हुए गंडामल पहलवान इस बार तेजी से दुखहरन मोची के झोंपड़े की ओर बढ़ गया. उसने तय कर लिया कि इस प्रकार की मानसिक यंत्रणाओं से उबरने का रास्ता उसके पास सिर्फ अब यही रह गया है कि दुखरन मोची और कैलासो को जान से भले ही न मारे, मगर पीटे जरूर.
गंडामल पहलवान ने अपना नोकदार रामपुरी जूता निकालकर हाथ में ले लिया मगर तभी उसे अचानक याद आया कि आज से सत्रह वर्ष पहले भी उसने इसी तरह अपना पेशाबरी जूता पाँव से निकाला था और अपने ही मुँह पर दे मारा था.
इस बार वह अतीत बिल्कुल साफ-साफ गंडामल पहलवान की आँखों में उभर आया, जिसके एकाएक अवचेतन में उमड़ आने से गंडामल पहलवान असमंजस में पड़ गया था. जमीन का एक काफी बड़ा टुकड़ा है, जो गंडामल पहलवान के हिंदुस्तान पहुँचने से भी पहले ही पाकिस्तान में छूट गया है. और काफी बड़े परिवार में से बाकी रह गए हैं, सिर्फ अट्ठाइस वर्षों का गंडामल पहलवान तथा उसकी आठ-नौ वर्षों की लड़की कँवली.
खूनी और वहशी लोगों का एक बड़ा सा झुंड अपनी जमीन के आखिरी टुकड़े को छोड़ने की कोशिश में तेजी से भागते हुए गंडामल पहलवान को घेर लेता है. “पेशावर लाहौर और रावलपिंडी के आस-पास के अखाड़े के बड़े-बड़े रुस्तमों को उखाड़ फेंकनेवाला गंडामल उनकी खूनी आँखों को झेल नहीं पाता है. भय से उसकी आँखें चुंधिया जाती हैं. वहशियों का झुंड उसके पहलवानी जिस्म को हिकारत भरी आँखों से देखता है और उसकी चुधियाई हुई आँखों के सामने ही फूल सी बच्ची कँवली को पकड़ लेता है और अस्मत का बोध होने से भी पहले ही केवली की अस्मत लूट जाती है और गंडामल पहलवान उन गुंडों के खुरों की चमक से चुधियाया सा एक और खड़ा रह जाता है.
फिर सामने निपट अकेली, दम तोड़ती चली छूट जाती है और निपट अकेला गंडामल पहलवान. और अपने ही पाँच का पेशावरी जूता निकालकर अपने मुँह पर चमरौधा भारता है गंडामल पहलवान के मुँह पर गंडामल पहलवान ही जूता मारता है मगर वह बेटी की अस्मत न बचा सकने या कि बेटी की अस्मत के लिए अपनी जान न दे सकनेवाले गंडामल पहलवान के मुँह पर जूता मारनेवाला गंडामल पिछले सोलह-सत्रह वर्षों में कहीं अपने ही अंदर की गहराइयों में दब चुका है.
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आज जैसे अचानक फिर गंडामल पहलवान का भारी-भरकम जिस्म पथरा गया है. गंडामल पहलवान की आँखें फिर चुँधियाती चली जा रही हैं और उसे लग रहा है कि चारों ओर गहरा धुंधलका छाया हुआ है तथा उस धुंधलके में दुखहरन मोची के झोंपड़े के बाहर सिर्फ कमजोर व दयनीय दुखहरन मोची नहीं खड़ा है, बल्कि खुद गंडामल भी खड़ा है और उसके पीछे वह कैलासो नहीं खड़ी है, गंडामल पहलवान ने गेहूँ साफ करवाते में जिसके गालों पर चुटकी काट ली थी, वही सत्रह साल पहले की कँवली खड़ी है.
गंडामल पहलवान के कानों में इस बार दुलीचंद पहलवान की कही हुई बातें फिर गूँज उठीं कि दुखहरन मोची ने कैसे चमरौधा दिखा-दिखाकर कहा था कि ‘कह देना अपने बाप गंडामल से कि उसने अभी दुखहरन मोची का कमजोर जिस्म ही देखा है, कैलासो के बाप का दिल नहीं देखा!’
दुखहरन मोची का झोंपड़ा अब कुछ ही फासले पर रह गया था. पहलवान ने कल्पना की कि उसको अपने झोंपड़े की ओर आते हुए देखते ही दुखरन मोची आगे बढ़ आता है और ठीक वैसे ही अपने पाँव का चमरौधा गंडामल पहलवान के मुँह पर दे मारता है, जैसे कभी गंडामल पहलवान ने खुद अपने मुँह पर मारा था और गंडामल पहलवान एकदम मुर्दे की तरह जड़ होकर अपनी ही जगह पर खड़ा रह जाता है. उसे साफ-साफ लगता है कि उसके मुकाबले में सिर्फ विधवा कैलासो का बाप दुखहरन मोची ही नहीं हैं, बल्कि खुद उसके ही अंदर का वह बाप भी खड़ा है, जो इस आत्मा प्रताड़ना में अपने ही सीने के अंदर दबा हुआ रह गया कि अपनी बेटी की अस्मत के लिए वह अपनी जान की बाजी नहीं लगा सका.”
गंडामल पहलवान को लगा कि बस इसी मुद्दे पर वह दुखहरन मोची के सामने बेबस पड़ा हुआ है. उसे लगा कि अपने अंदर का वह खूँटा मिल गया है, जिससे बँधे बँधे उसका जंगली गैंडे जैसा विफरा हुआ पहलवानी जिस्म कमजोर पड़ गया है.
गंडामल पहलवान की आँखों की नसें तनाव से टूटने टूटने को हो आईं. उसे लगा कि दुखरन मोची ने अपनी कटन्नी उसकी आँखों की पुतलियों में चुभो दी है और उन्हें ऐसे बाहर खींच रहा है, जैसे कोई धींवर तड़पती हुई मछलियों को पानी से बाहर खींचता है. फिर उसे लगा, उसकी नंगी पीठ पर जुगल पनवाड़ी की साढ़े तीन इंची मूँछें लोहे की गरम कीलों की तरह ठुकती चली जा रही हैं. दुखहरन मोची के हाथ का चमरौधा अपने मुँह पर झेलकर गंडामल पहलवान एकदम चुंधियाया-सा चुपचाप खड़ा है और जुगल पनवाड़ी अपने मोटे ओठों के नीचे दबी हुई सुरती को गंडामल पहलवान की ओर उछालते हुए कह रहा है—’क्यों बे, पहलवान! मैंने तो जरा सा चूना ही लगाने की बात की थी, उतने पर ही छाती पर चढ़ बैठा था. अब कहाँ गई तेरी मर्दानगी व पहलवानी, जो मुँह पर शुकवाकर और चमरौधा खाकर भी चुपचाप ही खड़ा है.” गंडामल पहलवान कहना चाहता है कि मुझको जूता मारने का हकदार दुखहरन मोची ही हो सकता है. “गंडामल पहलवान कहना चाहता है. कि अपने मुँह पर चमरौधा मारने का हकदार सिर्फ खुद मैं ही हो सकता हूँ” मगर उसकी जबान एकदम कुंद हो जाती है.
गंडामल पहलवान को लगा कि जब भी जुगल पनवाड़ी की बातें सोचता है, एक अजीब सी उत्तेजना उसको बौखलाने लगती है और अपनी इस तरह की चरम उत्तेजना के क्षणों में वह अपनी अनिश्चयात्मकता को और ज्यादा साफ-साफ पहचानने लगता है तथा अपने आप को इस तरह पहचानने लगना ही शायद इस बात को पहचानने लगना भी है कि ज्यादातर लोगों की पूरी-पूरी जिंदगी कैसे उन्हों फ़ैसलों के अनुसार आचरण करते हुए व्यतीत हो जाती है, जो उन पर दूसरों के द्वारा लाद दिए जाते हैं. उसको साफ-साफ लगा कि भीड़ में अपने आपको एक बार गंडामल पहलवान के रूप में स्थापित कर चुकने के बाद अपना निर्णय खुद ले सकने की संभावना वह खो चुका है.
गंडामल पहलवान ने अत्यंत गहराई से अपनी कमजोरी को अनुभव किया कि इस समय वह दुखहरन मोची से नहीं, बल्कि सिर्फ अपने आप से ही लड़ सकने की स्थिति में है और अपने आप से ही लड़ता हुआ आदमी हर स्थिति में सिर्फ हारता ही है, चाहे फिर अकेले के हाथों हारे या भीड़ के हाथों.
उसने यह भी महसूस किया कि सत्रह साल पहले उसी के हाथों हारा हुआ गंडामल अब दुबारा हारने के लिए तैयार नहीं. वह महसूस कर रहा था कि इनसान हमेशा अपने ही हाथों पराजित होता है- अपनी ही आत्मग्लानि और अपनी ही आत्मवंचना के हाथों और उसके सामने भी अब खुद अपने ही हाथों पराजित होने की स्थितियाँ शेष रह गई हैं. अब चाहे वह भीड़ के सामने हारे या दुखहरन मोची के सामने.
इसके अलावा गंडामल पहलवान पहली बार एक बात यह भी सोचने लगा कि दुखहरन मोची और कैलासो से बदला लेने या न लेने का फैसला करने का हकदार अब सिर्फ खुद गंडामल पहलवान ही हो सकता है और दूसरा कोई नहीं और इस सिर्फ इसी मुद्दे पर हार-जीत का दारोमदार टिका हुआ है कि वह खुद अपने फैसले पर अमल कर पाता है या नहीं.
इस बार गंडामल पहलवान ने अपनी आँखों का पानी पोंछकर अंगुली से परे छिटका दिया. और जब तक भीड़ गंडामल पहलवान और गंडामल पहलवान दुखहरन मोची व कैलासो तक पहुँचे, कुछ कदम के फासले पर से ही अपनी चारखानी लुँगी के दोनों टुकड़ों को कमर से लपेटता गंडामल पहलवान सामनेवाले नाले की ओर बढ़ गया.
(Shailesh Matiyani Story Haara Hua)
हिन्दी के मूर्धन्य कथाकार-उपन्यासकार शैलेश मटियानी (Shailesh Matiyani) अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना में 14 अक्टूबर 1931 को जन्मे थे. सतत संघर्ष से भरा उनका प्रेरक जीवन भैंसियाछाना, अल्मोड़ा, इलाहाबाद और बंबई जैसे पड़ावों से गुजरता हुआ अंततः हल्द्वानी में थमा जहाँ 24 अप्रैल 2001 को उनका देहांत हुआ. शैलेश मटियानी का रचनाकर्म बहुत बड़ा है. उन्होंने तीस से अधिक उपन्यास लिखे और लगभग दो दर्ज़न कहानी संग्रह प्रकशित किये. आंचलिक रंगों में पगी विषयवस्तु की विविधता उनकी रचनाओं में अटी पड़ी है. वे सही मायनों में पहाड़ के प्रतिनिधि रचनाकार हैं.
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(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…