दशहरा त्यौहार के दौरान नगर-नगर ग्राम-ग्राम में दबा कर द्यूतक्रीड़ा होती है. इस क्रीड़ा का पहाड़ों में विशेष महात्म्य माना गया है और दहलपकड़ का नाम इसके प्रतिनिधि प्रारूप के रूप में सैकड़ों वर्षों से स्थापित है. आज आपको बताते हैं इस खेल के कुछ नियम.
खेल के नियम:
1. आपको कहीं जाने की जल्दी नहीं होनी चाहिए
2. ताश की गड्डी एक हज़ार साल पुरानी होनी चाहिए
3. चाय-पकौड़ी-समोसा इत्यादि की निर्बाध सप्लाई का इंतज़ाम पुख़्ता होना चाहिए
खिलाड़ियों की संख्या: चार
दर्शकों व सलाहकारों की संख्या: कोई सीमा नहीं
खेलने का तरीका:
आमने सामने बैठे खिलाड़ी आपस में एक-एक (यानी कुल जमा दो) टीमों का निर्माण करते हैं.
पहले गुलाम-पीस की जानी चाहिए. गुलाम-पीस क्या होती है, अगर आपको यह ज्ञान नहीं है तो आप स्वाभाविक रूप से इस खेल को खेलने हेतु पर्याप्त अर्हतारहित हैं और यह खेल आप के वास्ते नहीं है. पोस्ट को आगे न पढ़ें. पत्तों को एक बार पुनः गिन लें, वर्ना मज़ा किरकिरा हो सकता है.
तेरह-तेरह पत्ते बांटें. जिसे सबसे पहले पत्ता मिला हो वह पहली चाल देने का अधिकारी होता है. आपके सामने दो उद्देश्य होते हैं. पहला गड्डी के चारों दहले अपनी टीम के कब्ज़े में करने की कोशिश करना. दूसरा अपने पत्तों में से किसी एक रंग को जल्दी-जल्दी ख़त्म करने की कोशिश करना ताकि आप ट्रम्प (यानी तुरुप) खोलने का लुत्फ़ उठा सकें.
यदि आपको कोटपीस खेलनी नहीं आती तो इस पोस्ट को पढ़ने का कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि दहल पकड़ का आविष्कार कोटपीस खेलने वालों को ताश की तहजीब सिखाने के उद्देश्य से किया गया था.
हार-जीत तय करने के तरीके:
1. अधिक यानी तीन अथवा चार दहल पकड़ने वाली टीम विजेता मानी जाएगी.
2. यदि दोनों टीमों के पास दो-दो दहल हैं तो अधिक यानी सात या अधिक हाथ बनाने वाली टीम जीती मानी जाएगी.
खेल पुरुस्कार:
कोट : चारों दहल पकड़ने वाली टीम को दिया जाने वाला सम्मान.
असाधारण खेल पुरुस्कार:
गू-कोट: चारों दहल के साथ सभी तेरह हाथ पकड़ लेने वाली टीम द्वारा पराजित टीम को दिया जाने वाला सम्मान.
– अशोक पाण्डे
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
View Comments
गू कोट ...?? जिसने ये गेम नही खेला .. समझो वो पहाड़ में जन्मया ही नही ???? बहुत खेला है घर मे बचपन मे ..... पर अब कही कोई खेलता नजर नही आता कम से कम शहर मे ..... अब किसके पास समय है मोबाइल से ही फुरसत नही