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आज मैन ऑफ़ ट्रीज का जन्मदिन है

यूं तो भारत सहित दुनिया की अधिकांश प्राचीनतम सभ्यताएं चीन, मिश्र,  यूनान तथा आदिवासी अफ्रीकी समाज में पर्यावरण चेतना का स्तर प्राचीन समय में बहुत ऊंचा था. सभी सभ्यताओं ने प्रकृति को विभिन्न देवताओं के रूप में पूजा और संरक्षित किया लेकिन आधुनिक युग में कथित विकास की  अवधारणा ने पर्यावरण को संकट में ला दिया है.                  

आधुनिक विश्व के समक्ष सबसे पहले जंगल और पेड़ का महत्व जिस व्यक्ति ने स्थापित किया. उसे दुनिया  वृक्ष मानव सेंट रिचर्ड बार्ब बेकर  के  नाम से जानती है. उनका जन्म 9 अक्टूबर 18 89 को पश्चिमी इंग्लैंड में हुआ. आज उनके जन्म के 130 वर्ष पूरे हुए हैं.

रिचर्ड बार्ब बेकर के जन्म का  130 वां वर्ष पर्यावरण की दृष्टि से बेहद उथल-पुथल और विरोधभा सो  का वर्ष रहा है.इस वर्ष जहां दुनिया के फेफड़े कहे जाने वाले ब्राजील में अमेजन के जंगल जानबूझकर आग के हवाले कर दिए गए, जिन्हें ब्राजील के राष्ट्रपति बुल शिनारो विकास के लिए जरूरी बताते हैं. वही संयुक्त राष्ट्र संघ की 74 वी आमसभा में स्वीडन की 16 वर्षीय बच्ची ग्रेता थुनबर्ग पूरी दुनिया को कटघरे में खड़ा कर तीखे सवाल पूछती है कि  “तुम्हारी यह हिम्मत कैसे हुई कि तुमने मेरा बचपन छिन लिया, मेरा भविष्य छिन लिया ” साथ ही प्रत्येक  शुक्रवार को ग्रेता  थुनवर्ग पर्यावरण के सवाल पर अलग-अलग स्थानों पर सार्वजनिक हड़ताल करती है. उनकी इस हड़ताल का असर पूरी दुनिया में देखा गया है .

मैन आफ ट्रीज रिचर्ड बार्ब ब्रेकर ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल कर, ब्रिटिश अंपायर में कीनिया  में ए.सी. एफ का पद धारण किया,  सरकारी नौकरी की संस्कृति के बिपरीत बार्ब बेकर ने सही अर्थों में जंगल के लिए काम प्रारंभ कर दिया,  उनके इस मिशनरी कार्य पद्यति से उनका अपने सहयोगियों के हितो से टकराकर होने लगी.  उन्होंने देखा की बन महकमे के अधिकारी बनों के हितों का ध्यान कम और सहायक हितों का ध्यान ज्यादा रख रहे हैं.  वह स्थानीय नागरिक जो परंपरा से वनों के संरक्षक हैं से दुर्व्यवहार पर आमादा हैं तो बार्ब बेकर ने वनों के संरक्षण के लिए ए.सी.एफ का  सरकारी पद त्याग दिया और 1922 में कीनिया के स्थानीय नागरिकों के साथ मिलकर “जंगल व माटी “नाम का संगठन बनाया जिसे 1924 में इंग्लैंड में  “मैन ऑफ ट्रीज” में बदल दिया.जिसने आगे चलकर अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का स्वरुप धारण किया.

यह वह वक्त था जब दुनिया में रेल के आने के बाद आधुनिक विकास और रेल के विस्तार के नाम पर पूरी दुनिया  मे बड़ी संख्या में वनों का अवैज्ञानिक कटान हो रहा था, तब  रिचर्ड बार्बो बेकर ने आने वाले कल के लिए पेड़ों के महत्व को समझाना शुरू किया. बार्बो बेकर ने ही सबसे पहले दुनिया को यह बताया कि खनिज, जंगल, जल और मनुष्य इन सब के सह -अस्तित्व  में  ही बेहतर दुनिया का भविष्य  है. उन्होंने न केवल पेड़ों का महत्व बल्कि परिस्थितिकी संतुलन के विचार से भी सबसे पहले दुनिया को परिचित कराया. 1936 से पेड़ों का जर्नल छापना प्रारंभ किया, 1949 जैविक खेती का प्रयोग प्रारम्भ किया.

1924 में आपके द्वारा स्थापित मैन ऑफ ट्रीज संस्था ने पूरी दुनिया में पेड़ों को लगाने और बचाने का काम किया, यह संस्था दुनिया के 100 से अधिक देशों में आज भी काम कर रही है और 26 बिलियन पेड़ लगाने का रिकॉर्ड भी इस संस्था के नाम है.

पर्यावरण और विकास एक दूसरे के दुश्मन नहीं है. उसमें संतुलन की दरकार है प्रकृति जहां खूबसूरत है वही मनुष्य के लिए उपयोगी भी है  “उपयोगिता और खूबसूरती का संतुलन”  बैलेंस ऑफ ब्यूटीफुल एंड यूजफुल विकास की सही नीति हो सकती है . यह विचार उन्होंने विकासवादियो को दिया.

दक्षिण अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में 25 हजार मील में बार्बो बेकर की संस्था ने 1952 -53 में प्लांटेशन किया, पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन किया, पेड़ों के सवाल को और इनके महत्व को घूम घूम कर पूरी दुनिया को बताया, वर्ष 1977 में जब रिचर्ड बार्ब बेकर  केरल की शांत घाटी में आए थे तो चिपको सत्याग्रह  की सफलता का उन्हें पता लगा,  वह उत्तराखंड आए चिपको के वैज्ञानिक पहलू को समझ कर, चिपको कार्यकर्ताओं की पीठ थपथपाई. दुनिया के मध्य  चिपको की मुहिम को पहुंचाया. हैंवल घाटी में चिपको की सफलता का समाचार सुनकर 88 वर्ष की उम्र में वह फिर टिहरी गढ़वाल आए और अदवाणी के जंगल में धूम सिंह नेगी और उनके साथियों के साथ इस सफलता का जश्न मनाया.

1978 में एलिजाबेथ द्वितीय ने इन्हें ऑफिसर ऑफ ब्रिटिश एंपायर का सम्मान दिया. 2 जून 1982 को एक प्रार्थना सभा के बाद इस संत ने लोगों से खुद विदा लेकर अपनी देह त्याग दी.

पर्यावरण के सुलगते सवालो के बीच, आधुनिक विश्व में  पर्यावरण  की चेतना जागृत करने वाले महान संत रिचर्ड बार्ब बेकर को उनके जन्म दिन पर विनम्र श्रद्धान्जली.

प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

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Girish Lohani

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