भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में रास बिहारी बोस सर्वाधिक समय तक सक्रिय रहने वाले क्रांतिकारी हैं. रास बिहारी बोस से जुड़ी पहली सबसे बड़ी घटना है – हार्डिंग बम काण्ड.
हार्डिंग बम काण्ड को ‘दिल्ली षडयंत्र’ नाम दिया गया था. वायसराय हार्डिंग के समय 1911 में भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थान्तरित करने की घोषणा की गई. 1912 में इसी से जुड़ी एक शोभा यात्रा दिल्ली में निकाली गयी.
वायसराय हार्डिंग अपनी पत्नी लेडी हार्डिंग के साथ पूरी शानो-शौकत और ठाट-बाट के साथ चांदनी चौक से लाल किले की ओर बढ़ रहा था. 23 दिसंबर 1912 की सुबह 11 बजकर 45 मिनट पर जब वायसराय का हाथी पंजाब नेशनल बैंक की इमारत के सामने गुजरा, एक बम धमाका हुआ.
इस बम काण्ड में वायसराय हार्डिंग को मामूली चोट आई, महावत की मौके पर ही मौत हो गई. कोई भी यूरोपीय हमले का शिकार नहीं हुआ हालांकि घटना ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी.
हार्डिंग बम विस्फोट को अंजाम देने की साजिश में शामिल तकरीबन सभी लोग 1914 में गिरफ्तार किये गए. बंगाल में अपने गांव गए बसंत कुमार बिश्वास,भाई बालमुकन्द, मास्टर अमीर चंद और मास्टर अवध बिहारी सभी गिरफ्तार हो गये लेकिन एक व्यक्ति जो गिरफ्तार न हुआ वह थे – रास बिहारी बोस.
पटना की सरकारी प्रेस में काम करने वाले बिनोद बिहारी के चार पुत्रों में सबसे बड़े बेटे का नाम था रास बिहारी बोस. छोटी उम्र से ही रास बिहारी बोस युगांतर नामक क्रांतिकारी संगठन के लिये काम कर रहे थे.
युगांतर जैसे क्रांतिकारी संगठन के गुप्त कार्यक्रमों में भाग लेने का प्रभाव यह रहा की हाईस्कूल की परीक्षा देने से पहले ही रास बिहारी बोस ने बम बनाना सीख लिया था.
1906 में उन्हें देहरादून एक गुप्त मिशन के लिये भेजा गया था. मिशन के तहत उन्हें सेना में भर्ती होकर अन्य सैनिकों को क्रांतिकारी मार्ग से जोड़ना था लेकिन वह सेना में भर्ती न हो सके.
इसके बाद उन्होंने वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में नौकरी की. यहां से उन्होंने गुप्त रुप से क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया.
हार्डिंग बम काण्ड और गद्दर क्रांति के प्रमुख संयोजक रहे, रास बिहारी बोस ने देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान से ही काम किया.
1912 में उन्होंने हार्डिंग बम काण्ड की योजना के लिये 37 छुट्टियां ली. वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में उन्हें प्रोन्नति भी मिली. उन्होंने वन अनुसंधान संस्थान में आठ वर्षों तक नौकरी की. अपनी नौकरी के दौरान उन्हें हेड क्लर्क के पद पर 65 रूपये प्रतिमाह तनख्वाह मिलती थी.
2006 में वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने रास बिहारी बोस से जुड़े कुछ दस्तावेज जारी किये. इन दस्तावेजों में उनका नियुक्ति पत्र, छुट्टी के लिये आवेदन आदि थे. इन दस्तावेजों के अनुसार 1914 में लम्बी छुट्टी के कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था.
ऐसा कहा जाता है कि आठ सालों तक देहरादून में रहने वाले रास बिहारी बोस देहरादून में पलटन बाजार के पास घोसी गली में रहा करते थे. हार्डिंग बम काण्ड के दिन रास बिहारी बोस दिल्ली में मौजूद थे. असफलता के बाद वह उन्होंने फौरन रात की ट्रेन देहरादून के लिए ली और सुबह अपना ऑफिस भी ज्वॉइन कर लिया.
न्यूज 18 में छपे विष्णु शर्मा के ब्लॉग में यह दावा किया गया है कि हार्डिंग बम काण्ड के कुछ महीने बादजब लॉर्ड हॉर्डिंग छुट्टियां मनाने देहरादून पहुंचा तो रास बिहारी बोस ने उसके स्वागत में एक कार्यक्रम आयोजित किया. वहां उन्होंने हार्डिंग के दिल्ली बम काण्ड से बचने की बहादुरी का बखान भी किया.
जब हार्डिंग बम काण्ड के आरोपियों को ब्रिटिश सरकार पकड़ने लगी तो भेष बदलने में माहिर रास बिहारी बोस जापान चले गये.
-गिरीश लोहनी
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