Featured

तब मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ होते हैं : विद्रोही की कविता

दो बाघों की कथा

-रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’

मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं
बताऊंगा तो तुम डर जाओगे
कि मेरी सामने वाली जेब में
एक बाघ सो रहा है
लेकिन तुम डरो नहीं
बाघ को इस कदर ट्रेंड कर रखा है मैंने
कि अब तुम देखो-
मेरे सामने वाली जेब में
बाघ सो रहा है
लेकिन तुमको पता नहीं चल सकत
की बाघ है
सामने वाली जेब में एकाध बाघ पड़े हो
तो कविता सुनाने में सुभीता रहता है
लेकिन एक बात बताऊं
कि आज जब मैं तुम दोस्तों के बीच
कविता सुना रहा हूं
इसलिए मेरी जेब में एक ही बाघ है
लेकिन जब मैं कविता सुनाता हूं
उधर
जिधर रहते हैं मेरे दुश्मन
अकेले अपने ही बूते पर
तब मेरी जेब में एक नहीं
दो बाघ होते हैं
और तब मैं
अपनी वह लाल वाली कमीज पहनता हूं
जिसकी कि आप दोस्त लोग
बड़ी तारीफ कर चुके हैं
जिसमें सामने दो जेब हैं
मैं कविता पड़ता जाता हूं
और मेरे बाघ सोते नहीं
बीड़ी पीते होते हैं
और बीच-बीच में
धुएं के छल्ले छोड़ते रहते हैं.

रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ (3 दिसम्बर 1957 – 8 दिसंबर 2015) हिंदी के लोकप्रिय जनकवि रहे. वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से जुड़े. यह जुड़ाव आजीवन बना रहा. उनका निधन 8 दिसंबर 2015 को 58 वर्ष की अवस्था में हुआ. जन्म 3 दिसंबर, 1957 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के अंतर्गत आहिरी फिरोजपुर गांव में हुआ. आरंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई. सुल्तानपुर में उन्होंने स्नातक किया. इसके बाद उन्होंने कमला नेहरू इंस्टीट्यूट में वकालत में दाखिला लिया. वे इसे पूरा नहीं कर सके. उन्होंने 1980 में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर में प्रवेश लिया. 1983 में छात्र-आंदोलन के बाद उन्हें जेएनयू से निकाल दिया गया. इसके बावजूद वे आजीवन जेएनयू में ही रहे. वही उनकी कर्मस्थली और कार्यस्थली बना रहा.

अंतिम समय में उन्होंने ऑक्युपाई यूजीसी में जेएनयू के छात्रों के साथ हिस्सेदारी की. इसी दौरान उनका निधन हो गया.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago