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अलविदा सलीम साहब

दिसंबर 2019 में हुई उस मुलाक़ात के पहले उनसे अठ्ठाइस बरस पहले मिला था जब वे पंतनगर विश्वविद्यालय में सेवारत थे. उन्होंने अपनी अनेक पेन्टिंग्स दिखाई थीं जिनमें से एक को मैं कभी न भूल सका. उस में उन्होंने कुमाऊँ के एक पारम्परिक घर में आई हुई बारात के आगमन के दृश्य को कैद किया था. लकड़ी से बने नक्काशीदार दरवाज़ों-खिड़कियों में उभरे कंगूरों-छज्जों, सीढ़ियों पर बैठी, पीले-लाल रंगों के पिछौड़े पहनी स्त्रियों और पार्श्व के हिमालय की चोटियों को एक ऐसा ज्यामितीय संयोजन दिया गया था कि दूर से देखने पर वह चित्र किसी पहाड़ी स्त्री के खूबसूरत परिधान जैसा दिखाई देता था.
(Painter Mohammad Salim Almora)

उस बहुत ठोस स्मृति को मन में संजोये जब उनसे मिला तो उनमें कला और जीवन को लेकर वैसा ही उत्साह मिला. व्यवहार में वैसी ही विनम्रता से भरपूर सादगी और विचारों-बातों में एक बेहद साफ़-शफ्फाफ निगाह.

उनके हुनरमन्द वालिद साल 1907 में मुरादाबाद से अल्मोड़ा आ बसे थे जहाँ उन्होंने घड़ियों की मरम्मत के अलावा नकली दांत बनाने का काम शुरू किया. इसी अल्मोड़ा के कचहरी बाजार के एक घर में1939 में मोहम्मद सलीम का जन्म हुआ.

पिता की वर्कशॉप में दांतसाजी के लिए प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का इस्तेमाल होता था. उसके बचे-खुचे टुकड़ों को देर तक कोयले पर पकाया जाता तो वे चॉक में बदल जाया करते. घर पर बनाई जाने वाली इसी चॉक से नन्हे बालक सलीम ने अल्मोड़ा बाजार में बिछी पहाड़ी पत्थर की पटालों पर शेर-भालू के चित्र बनाना सीखा. पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और लखनऊ के आर्ट कॉलेज में दाख़िला दिला दिया. यहां उन्होंने रंगों को साधा और पेन्टिंग की अपनी एक विशिष्ट शैली विकसित की. जीवनयापन के उन्होंने पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में नौकरी की और 1997 में वापस अपने जन्मस्थान लौट आए.
(Painter Mohammad Salim Almora)

मोहम्मद सलीम का समूचा काम अन्तर्रष्ट्रीय स्तर का है जिसकी आत्मा में दो थीम्स लगातार देखी जा सकती हैं –  हिमालय का भव्य वैराट्य और पहाड़ के जीवन की साधारणता. कुमाऊँ के मेहनतकश जन और उनका लोक अपने जादुई वैभव के साथ जिस तरह उनकी पेन्टिंग्स में आया है, वैसा न निकोलाई रोरिख के चित्रों में देखने को मिलता है न अर्ल ब्रूस्टर के. यह और बात है कि रोरिख और ब्रूस्टर अंतर्राष्ट्रीय नाम हैं जबकि ख्याति और बाजार से सदा दूर रहे, अपने एकांत में साठ सालों से अधिक समय तक तपस्यारत रहे इस मनीषी चित्रकार के बारे में आधे से अधिक अल्मोड़ा तक को नहीं मालूम होगा.

इस बाबत मेरी जिज्ञासा पर उनका जवाब था –  “मैंने जीवन भर सीखा. आज भी सीख रहा हूँ. इस सीखने ने मुझे ज्ञान दिया. ज्ञान ने मुझे आनंद दिया. और अब जब मैं जीवन के आख़िरी पड़ाव पर हूँ तो कोई गिला नहीं है बल्कि इस बात का भरपूर सुख है कि दुनिया को बनाने वाले ने इस धरती पर मोहम्मद सलीम को एक ऐसा आदमी बना कर भेजा जो अपनी तरह का अकेला था, अद्वितीय था!”

बीते हुए कल वे नहीं रहे. अलविदा सलीम साहब!
(Painter Mohammad Salim Almora)

अशोक पाण्डे

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  • आदरणीय सलीम साहब को भावपूर्ण श्रद्धांजली । सलीम साहब न केवल उम्दा आर्टिस्ट थे बहुत श्रेष्ठ इंसान भी थे । सहज थे, ईमानदार थे । कम मिलते हैं उनकी कोटि के लोग ।

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