पहाड़ के युवाओं में हिमालय की यात्राओं के लिए जिस तरह का नैसर्गिक उत्साह पाया जाता रहा है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है. बागेश्वर में रहने वाले हमारे पत्रकार-लेखक साथी केशव भट्ट, जिन्हें आप पहले भी पढ़ते आये हैं, ने काफल ट्री के पाठकों के लिए अपनी पहली... Read more
20 मई 1900 को जन्मे इस सुकुमार कवि के बचपन का नाम गुसांई दत्त था. स्लेटी छतों वाले पहाड़ी घर, आंगन के सामने आड़ू खुबानी के पेड़, पक्षियों का कलरव, सर्पिल पगडण्डियां, बांज, बुरांश व चीड़ के पेड़ों की बयार व नीचे दूर दूर तक मखमली कालीन सी पसरी कत्यूर घाटी व... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 41 पिछली कड़ी- कहो देबी, कथा कहो – 40 कई बार सोचता था कि समय आखिर कितनी परीक्षा लेगा? लखनऊ में ही तनाव से इतना तंग आ चुका था कि इस्तीफा लिख कर सदा जेब में रखता था, यह सोच कर कि अगर हद से गुजर जाएगी तो नौकरी से […] Read more
कहो देबी, कथा कहो – 40 पिछली कड़ी- कहो देबी, कथा कहो – 39 वह दौर और वे दिन! कितना कुछ याद आता है. गांव से आने वाली बाज्यू की वे चिट्ठियां जो बड़े-बड़े अक्षरों में वे अपने हाथ से लिख कर भेजते थे, कुछ इस तरह: प्रिय देबी, तहां की कुशल ठीक ही होगी. [... Read more
फरवरी 2014 में, जब उस वक़्त के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के त्यागपत्र के बाद हरीश रावत को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई थी, खतरनाक सियासती उठापटक का सिलसिला तभी से शुरू हुआ था. जैसा कि होना ही था, इसके बाद यह षड्यंत्र राजनीति के दो विरोधी ध्रुवान्तों के... Read more
नैनीताल के फांसी गधेरे से जुड़ी अनेक किंवदंतियों-कहावतों-किस्सों के पसमंजर में गूंथकर रचा गया है इस अद्भुत कथा को. इतिहास, समाजशास्त्र और फंतासी के बीच तैरती-उतराती यह कथा एक से अधिक बार पढ़े जाने की दरकार रखती है. लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही... Read more
अल्मोड़े में कांग्रेस का जन्म 1921 में हुआ. इससे पहले जब 1905 में बंग भंग आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ, उससे कुछ बच्चों और नवयुवकों के सुकुमार मन में अंग्रेजी राज के प्रति घृणा के भाव उत्पन्न हो गए. लोकमान्य तिलक बहुत पहले से शिक्षा दे रहे थे कि अपना राज्... Read more
कतिपय कारणों से हमारे प्रिय लेखक देवेन मेवाड़ी की सीरीज कहो देबी, कथा कहो इस सप्ताह प्रकाशित नहीं की जा सकी है. सीरीज का अगला हिस्सा अगले सप्ताह नियत दिन प्रकाशित किया जायेगा. इस सप्ताह देवेन मेवाड़ी का भेजा यह आलेख यादों के गलियारे से पढ़िये. – स... Read more
एक समय था जब दुनिया भर में मलेरिया जानलेवा बीमारी मानी जाती थी और असंख्य लोग इसकी चपेट में आकर असमय काल कवलित हो जाया करते थे. मलेरिया के चलते ही उत्तराखंड के पहाड़ों से मैदानी भागों यानी तराई और भाबर में जाने वाले लोगों को लेकर यह मान लिया जाता था कि... Read more
शमशेर सिंह बिष्ट ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन को किसी नारे या मुहावरे की तरह नहीं बल्कि एक प्रखर सच्चाई की तरह जीता हुआ. शमशेर सिंह बिष्ट इसलिए भी याद आते रहेंगे कि उन्होंने... Read more