“उत्तरायण” कार्यक्रम में एक–दो बार उन्हें देखा होगा जब कभी वे लोक वार्ता बांचने आतीं लेकिन ठीक से मुलाकात की याद “आंखर” संस्था का गठन होने के बाद की है- 1977-78 के आस-पास. हम कुमाऊंनी नाटकों की रिहर्सल की जगह के लिए मारे-मारे फिरते थे. गोविंद बल्लभ प... Read more