मेरा पहाड़ दिन भर मक्का के खेतों में या प्रयोगशाला में और कभी-कभार साहित्य की दुनिया में, यही दिनचर्या बन गई थी. पहाड़ शिद्दत से याद आता था. घर की नराई लगती थी. मन गुनगुनाता ही रहता था- पंछी हुनौं उड़ी औनों, मैं तेरी तरफ…”. लेकिन, मैं पंछी नहीं था... Read more