Featured

लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम-कदम पर अन्याय हो रहा है !

“.. बहुत हुआ हे इष्ट देबो, जिन्होंने मेरे परिवार के साथ अन्याय किया, उनको अब तू ही समझना… गोल्ज्यू मेरा इंसाफ़ करना, तुम्हारे मंदिर में अर्ज़ी लगाने आ रही हूँ मैं…”

माथे पर चमकती बड़ी सी लाल बिंदी, छाती पर दाएं से बांये कस कर कमर में खोंस लिया गया आँचल, ग़ुस्से और रंज से भरी थी छोटी बहू.

भाइयों के बीच जायदाद का झगड़ा हदें पार कर गया था. समझौते की सारी कोशिशें बेकार हुईं. पिता के गुज़रने के बाद परिवार में आपसी प्यार और अदब जैसे छूमंतर हो गया. घर-बंटवारा हुआ, चूल्हे अलग हुए पर झगड़ा बना रहा. आख़िरकार, खेतों के बंटवारे का विवाद कोर्ट ही पहुंच गया. तारीख़ पर तारीख़ के बाद, दो साल में मुक़द्दमा दो इंच भी नहीं सरका तो मुद्दई, जो भाइयों में सबसे छोटा था बेहद तनाव में रहने लगा. तमाम झंझट झेल रही छोटी बहू के लिए जब स्थितियां असह्य हो गई तो आँगन में आकर गोलज्यू मंदिर में अर्ज़ी लगाने का ऐलान किया था उसने.

आँगन से जुड़े तीन दरवाज़ों के भीतर कोई हरक़त नहीं हुई, न कोई प्रतिवाद न आक्रोश, कोई घर से बाहर भी नहीं निकला. मगर आश्चर्यजनक रूप से हफ़्ते भर में भाइयों के बीच सुलह हो गई.

इलाक़े की यह चर्चित कहानी उसने भी सुनी है. कुछ अक्खड़ किसम का आदमी है हिम्मत, झुकता-झुकाता नहीं, सामने रिश्तेदार हों या ग्राहक या भगवान ही क्यों न हो ! राह चलते मंदिर दिखा तो हाथ जोड़ दिए, पूजा-पाठ के नाम पर इतना ही करता है वह पर हाँ, गोल्ज्यू उनके इष्ट हैं, न्याय के देवता माने जाते हैं तो उनके प्रति मन में एक विश्वास दुबका बैठा है. शायद इसीलिए गोलू देवता के मंदिर में ख़ुद भी अर्ज़ी लगाना तय किया था उसने.

हिम्मत को शायद एहसास न हो पर भाइयों की कहानी और उसके केस में एक बारीक़ अंतर था. पीड़िता द्वारा मंदिर में अर्ज़ी लगाने की चेतावनी मुख़ालिफ़ पार्टी के कानों तक सीधी पहुंच गई थी, जबकि हिम्मत की कहानी के तमाम क़िरदारों को उसके मूव की कोई ख़बर नहीं थी. वह तो दिल में अन्याय और अपमान की सुलगती आग को ज़ब्त किए कुड़कुड़ाता हुआ अपनी दरख़्वास्त लगाने मंदिर चला आया था.

मंदिर में अर्ज़ियों के लिए कोई ख़ास जगह मुक़र्रर है नहीं, लोग घंटियों के बीच तारों या कीलों पर अपनी शिकायत नत्थी कर जाते हैं. यहां लिखित फ़रियाद करने से इंसाफ़ मिलता है, ऐसा लोगों का विश्वास है. फ़रियादी मुख़्तलिफ़ जाति, धर्म, और तबक़ों से हैं, उनके मसले भी भांति-भांति के हैं; चोरी, अमानत में ख़यानत, प्रताड़ना, धोखा, मार-पीट से लेकर हत्या तक के मामले. कोर्ट-कचहरी, पुलिस-पटवारी, नेता-अफ़सर जब हाथ खड़े कर दें तो गोलू देवता ही आमजन का सहारा हैं. कोई फ़ीस नहीं देनी, न ही विशेष पूजा करवानी है, अर्ज़ी लग गई तो समझो इंसाफ़ होगा. इंसाफ़ किसी तय ढर्रे के बजाय निराले, ग़ैर रस्मी अंदाज़ में मिल सकता है, मसलन उनके भय से चुराया हुआ सामान या उधार चुपचाप लौटा दिया जाता है, झूठे मुक़द्दमे वापस ले लिये जाते है. बड़े से बड़े रसूखदार, डरावने सपनों से लेकर कुदरती क़हर, अप्रत्याशित नुक़सान जैसे संकेत पाकर पीड़ित से समझौता करते देखे गये हैं. लोगों का मानना है कि एक जघन्य अपराधी, कोर्ट से बरी हो सकता है पर मजलूम की लिखित फ़रियाद पर गोल्ज्यू के कोप से नहीं बच सकता.

उसने तीखी-सर्द हवाओं और कड़कती बिजली के बीच दीवार पर संतुलन बनाते हुए ऊंची टंगी घंटियों के बीच अपनी तहरीर गूंथ दी. हवा के एक ताज़ा झोंके से आस्था के बहुत से पन्ने फड़फड़ाये और कुछ घंटियां सहसा घनघना उठीं.

“पुलिस वाले ने चार सौ रुपए ले लिए और धमका कर भगा दिया वकील साब.” हिम्मत सिंह ने लगभग शिकायत के लहज़े में अपना पक्ष रखा.

”तेरे पास कोई सुबूत या गवाह है? कोई साथ में था तेरे?”

“नहीं.. सबूत तो पुलिस के ही पास है… मेरी जेब में कुछ था ही नहीं, जाने कहाँ से उसने अत्तर की गट्टी जैसी पैदा कर दी…” वह कंधों को झटका देते बोला.

“वह छोड़, चार सौ लूटने का कोई सबूत है? एफ.आई.आर. कराई तूने?”

“मैं दरोगा से दो बार मिलने गया थाने, पर वो मिलके नहीं दिया.”

“ख़र्चा लगेगा.. दो हज़ार एडवांस ले आ, नोटिस भेजकर देख लेते हैं…” वक़ील को जैसे उसका मामला मुक़द्दमे लायक नहीं लगा या हिम्मत को उसके व्यवहार से ऐसा लगा.

“मगर चरस वाली बात तो झूठ…”

“अगर-मगर बाद में, अभी बस झपटमारी का नोटिस जाएगा.” वक़ील ने बात काटी, वह जल्दी में था.

”पर मेरे पास अभी दो हज़ार तो नहीं हैं…” उसने सुना था वक़ील लोग फ़ीस बाद में ले लेते हैं.

”एक बात नोट कर ले तेरी लड़ाई पुलिस से है, उन्होंने तुझे धर लिया तो मुश्किल हो जाएगी, चरस पकड़ी जाने पर एन.डी.पी.एस. लगता है, उसमें ज़मानत भी नहीं होती। या तो तू सब भूल जा…”

”भूल कैसे जाऊं वकील साब, तुम भी हद्द करते हो. तुम्हारे साथ अन्याय होगा तो तुम भूल जाओगे क्या? ये कोर्ट-कछेरी किसलिए बने हैं? तुम्हारे पास टैम नहीं है तो वैसा बोलो, वकीलों की कमी हो री क्या यहाँ…” हिम्मत सिंह लगभग तैश में आ गया.

वक़ील इस हमले के लिए तैयार नहीं था…

“अरे मुंशी जी… कोई इसे समझाओ यार ! न्याय कोई तारीख़ होता तो मैं इसे पकड़ा देता.”

“मुझसे बात करो, मुझसे, वकील साब, मैं पैसे का इंतजाम करके लाता हूं तुम मुकदमे की तैयारी करो…” सोचा बाखड़ी भैंस बेच देगा.

आसमान पर सूरज और बादलों की आंखमिचौनी से घाटी की ठंडक बढ़ गई थी, हवा के बर्फ़ीले झोंके जैसे कानों से घुसकर उसके दिमाग़ को सुन्न कर गए, पेट के भीतर कुछ घुमड़ने लगा. कोर्ट का भरम टूट रहा था. कोर्ट से बाज़ार का रास्ता जैसे पलक झपकते कट गया. ठेके से कॉन्टेसा रम का पव्वा ख़रीदा उसने और फ़िर एक बार मंदिर की चढ़ाई चढ़ गया. जगह याद थी तो मामूली मशक्कत से काग़ज़ों के बंडल में अपनी पुरानी अर्ज़ी ढूंढ निकाली जिसमें पेशकार, उसकी औरत और पुलिस वाले की शिकायत की थी. वक़ील का नाम जोड़ते हुए उसने लिखा, ‘पूजनीय गोलू देबता महराज, पेशकार और पुलिस वाले तो थे ही लेकिन जब मैं मुकदमा करने कछेरी गया तो वकील ने भी मेरी नहीं सुनी. वह काम होने से पहले पैसे मांगता था, उसने सीधे मुंह बात तक नहीं की. इष्ट देब, पेशकार की औरत और पुलिस वाले जितना ही वकील भी मेरा गुनेगार है. अब तुम ही मेरा न्याय करना, मुझे इन लोगों से कोई उमेद नहीं है.’ रात घिर रही थी.

सीढ़ियों के पास लगे नल की आड़ में उसने जेब से पव्वा निकाला, ढक्कन भर रम माथे से लगाकर मंदिर की दिशा में उंडेल दी और बाक़ी एक सांस में पी गया. चलते-चलते, मुराद पूरी होने पर मंदिर में बकरा चढ़ाने का करार भी कर दिया उसने.

मेरी भेंट अचानक ही हुई हिम्मत सिंह से. मैं ज़िलाधिकारी के दफ़्तर के ठीक बाहर, प्रेस कॉन्फ्रेंस में खींचे फ़ोटो पर साथी पत्रकार से बहसबाज़ी में मशगूल था. आवाज़ थोड़ी ऊंची थी, शायद यही कारण रहा कि हिम्मत सिंह मेरी ओर आकर्षित हुआ. उसने दूर से ही सवाल दाग दिया, “साब थोड़ा टाइम निकाल के मेरी अरज भी सुन लेते?” मेरे पीछे चार-पांच फीट की दूरी पर खड़ा था वह. छोटा कद, इकहरे तंदुरुस्त बदन पर खाकी बुश्शर्ट, अंदर से झांकता बेमेल सा नारंगी ऊनी स्वेटर, काली पैंट और सिर पर काली पहाड़ी टोपी. ऊपर उमेठी पतली, काली मूछें, 30-32 इंच की कमर बेल्ट से क़तई कसी हुई. आंखें हटतीं उससे पहले, थोड़ा क़रीब आकर, उसने पूरी कहानी एक सांस में बयान कर डाली: “जज साब के पेशकार के घर दूध लगा था, साब मेरा. कोई तीन-चार साल से दूध ले रहे थे. हाल में उसकी बीवी से मेरी कुछ कहा सुनी हो पड़ी, बोली तुम्हारा दूध पानी मिला हुआ आ रहा है. मैंने कहा मैडम जी दूध तो पहले जैसा ही है. तुमने जो, साल भर से रेट नहीं बढ़ाये हैं. इस बात से वह बहुत ही नाराज हो गई.. दफ़्तर वाला सिपाही वहीं खड़ा था, उससे बोली कि देखो इस दो कौड़ी के दूधिये की ये मजाल, मेरे मुंह लग रहा है. अब्भी इसके दूध का सैंपल भरवाओ, अंदर जाएगा तब पता चलेगा इसे. उन्होंने सैंपल भरवा के दूध तोड़ दिया और एक हफ्ते बाद आकर अपना हिसाब ले जाने को बोला. जब मैं हिसाब लेने गया तो आधे पैसे काट लिए. मैंने कहा कितने पैसे दे रहे हो ये, इसे भी तुमी रख लो… पुलिस वाला मुझे मौक्या कर कैंटीन के पीछे ले गया. आगे उसने मेरी जेब में हाथ डाला और मदारी के जैसे, जेब से काली-काली अत्तर की गट्टी जैसी निकाल कर दिखा दी. साब, मुझे मेरे बच्चों की कसम है, मैं बीड़ी सिगरेट, अत्तर को हाथ तक नहीं लगाता… कहने लगा बेटा तेरी जेब से यह चरस बरामद हुई है, थाने में जमा करा दी न, तेरी जमानत भी नहीं होगी. फिर उसने मेरे पैसों से सौ-सौ के चार नोट निकाल लिए और बाकी मुझे थमाकर बोला अब यहां से सटक ले, आज के बाद यहां नहीं दिखाई देना… अब देख लो साब ऐसा जुलम हुआ है मेरे साथ. किसी ने कहा दरोगा से शिकायत कर, मैं दो-तीन बार थाने गया, वो मिला नहीं. मैं वकील के पास गया पर उसने भी टरका दिया …” भावातिरेक में वह रुआँसा हो गया था.

“तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं भाई?” उसकी कहानी सुनकर मुझे थोड़ी हमदर्दी सी हो गई.

“तुम पहले तो यह बताओ कि मेरे साथ अन्याय हुआ है कि नहीं?” उसका चेहरा तमतमा गया.

“ठीक है, तेरे साथ अन्याय हुआ है पर मैं कोई अधिकारी तो हूं नहीं, मैं क्या कर सकता हूं?”

“अरे साब कैसी बात कर रहे हो, मेरी कहानी अपने अखबार में लिखो, लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम कदम पर अन्याय हो रहा है. उसमें मेरा फ़ोटो भी लगाओ… नहीं तो किसके काम का है तुमारा पेपर.” मुझे उसकी साफ़गोई भा रही थी.

“अरे यार ऐसी न्यूज़ कहाँ छपेगी? अगर तूने एफ.आई.आर. लिखाई होती तो मैं कुछ सोच सकता था…”

“तो फिर मेरी एफ.आई.आर. ही करवा दो, वकील भी जरूरी बता रहा था.” वह अड़ रहा था.

“वो तो मैं नहीं करवा पाऊंगा, हाँ पेशकार से बात कर सकता हूँ, हो सकता है वह दूध की कम्पलेंट वापिस ले ले…”

“और वो पुलिस वाला… जो झूठा केस बनाने की धमकी दे रहा था?” वह धैर्य खो रहा था.

“शान्ति-शान्ति हिम्मत सिंह, तू मुझे उसके पास ले चलना, देखते हैं क्या बोलता है!”

“वो सब तो ठीक है साब, आप भले आदमी हो, मुझे सही रास्ता बता रहे हो लेकिन इन्होंने मुझ पर झूठा इल्जाम लगाया, कितनी रात सोया नहीं मैं… मेरे साथ जो अन्याय हुआ है उसका बदला कैसे चुकेगा?”

“अरे आगे देखेंगे यार, दुनिया ऐसे ही चलती है…” मेरा हाथ अनायास ही उसके कंधे पर चला गया.

“वैसे तुमको बताऊं, मैं इन सालों के लिए गोल्ज्यू के थान में पर्चा लगा आया हूँ, कल उसमें वकील का नाम भी जोड़ आया मैं. देखना साब, देर-सबेर इनको करनी का फल तो जरूर मिलेगा …!” वह ख़ुद को सम्हाल रहा था.

“देवता पर तुझे इतना भरोसा है तो क़ानूनी पंगेबाज़ी में क्यों पड़ता है, ख़ाली पैसा और टाइम बर्बाद होगा तेरा…”

“नहीं साब, अपना कर्म जरूर करना हुआ तभी वह फल देगा.. आप ये बताओ खर्चा-पानी कितना आएगा?” वो मेरी बात काटते बोला.

“मैं कोई ख़र्चा-वर्चा नहीं कराऊंगा तेरा. हाँ, काम हो जाये तो मेरे लिए घर का शुद्ध घी लाएगा, उसके भी पैसे दूंगा मैं… नहीं तो मेरा भी नाम अर्ज़ी में नहीं जोड़ आएगा तू !”

हिम्मत सिंह ने ठहाका लगाया, ज़िंदादिली से भरपूर मगर बच्चों सी खनकदार हँसी. मैं उसका फैन हो गया था.

साथ की इमारत में ही ज़िला न्यायालय अवस्थित है, सोचा हिम्मत के पेशकार का हालचाल ले लूँ, पता चला वह छुट्टी पर है.

उस रात गोलू मंदिर इलाक़े में बादल फटने की घटना हुई, घरों को काफ़ी नुकसान पहुंचा, मवेशियों के छप्पर उड़ गए खेतों में खड़े घास के लूटे सुबह धराशायी मिले. पानी के साथ आये आंधी-तूफान में मंदिर की छत भी न बच सकी. सुबह दीया-बत्ती करने पहुंचा पुजारी वहां के हालात देखकर सकते में आ गया. छत की नालीदार चादरें उखड़ी पड़ी थी, श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाई गई सैकड़ों घंटियों से केवल वज़नदार घंटे ही मंदिर के प्रांगण में लुढ़के मिले, शेष घंटियों का कुछ अता-पता नहीं था. कहां गई, कोई चुरा ले गया क्या ? ईश्वर का भी डर नहीं रहा, पुजारी सोच रहा था. घंटियों के अगल-बगल लटकी फ़रियादियों की अर्ज़ियाँ पूरी तरह नष्ट हो गईं. सारा अहाता तालाब बना पड़ा था जिसमें मूर्तियां डूब गई. फूल-पत्तियों के साथ कुछ पन्ने पानी की सतह पर तैर रहे थे.

मंदिर की पूर्वी साइड से गुज़रती एक टैक्सी दुर्घटनाग्रस्त हो गई जिसमें एक महिला समेत चार सवारी गंभीर रूप से घायल हो गईं थी. सुना है कि मंदिर की छत का टीन उड़कर वाहन के ऊपर गिरा जिससे चालक नियंत्रण खो बैठा और गाड़ी पलट कर खड में गिर गई.

मुझे रात के तूफ़ान से हुए नुक़सान और टैक्सी दुर्घटना में घायल लोगों की हालत के बारे में ख़बर बनाने का हुकुम हुआ था. इलाक़ा शहर से थोड़ा दूर था तो पहले घटनास्थल पर जाने का इरादा किया. प्रशासनिक कारवाई से पहले हालात का जायज़ा और फ़ोटोएँ लेना आवश्यक था. मुझे मालूम था कि लोग मुआवज़े के क्लेम में अख़बार की कटिंग का इस्तेमाल करते हैं सो आसपास की तस्वीरें लेता मंदिर की सीढ़ियों पर पहुंचा ही था कि हिम्मत सिंह दिख गया. पैंट के पांयचे घुटनों तक चढ़ाए पानी में उतरा हुआ था, तैरती पर्चियों उठा कर देखता और प्रांगण की दीवार पर रख देता. एक बड़े घण्टे को सिर के ऊपर तक उठा कर दीवार पर रखने के अमल में उसकी नज़र मुझपर पड़ गई. मैं छपने लायक फ़ोटो ले चुका था उसका। स्टोरी के बॉक्स में उसकी कहानी लग सकती थी.

“अरे साब तुम बड़े टाइम से आ गए…खबर बनानी होगी तुमको.” उसके स्वर में उदासी साफ़ झलक रही थी.

“हाँ यार नौकरी करनी है..पर तू सुबह-सुबह यहाँ श्रमदान करने आ गया क्या?”

“मैंने तुमको बताया ना… मैं मंदिर में अर्जी लगा गया था, भगवान भी मेरी सुनता न सुनता इस आंधी-तोफान में मेरी अर्जी गायब हो गई है… इस फेरे तुम मेरी अच्छी सी अर्जी लिख दोगे.” उसके चेहरे पर आशा, निराशा के भाव आ-जा रहे थे.

मैंने सांत्वना देते कहा, “हाँ-हाँ, बिल्कुल लिखी जाएगी. और फ़ोटो सहित तेरी कहानी भी पेपर में छापने वाला हूँ मैं,… मेरा घी तैयार रखना.”

वह खिलखिला कर हँस पड़ा, वही मासूम बच्चों सी हँसी.

“आ जा, एक्सीडेंट वाली गाड़ी का फ़ोटो भी खींच लाते हैं, इधर साइड से उतरने का रास्ता है ना?” मैंने दायीं ढलान की ओर इशारा करते पूछा.

“हाँ चलो, हुलारे में जरा सम्हाल के पैर रखना.” वह पांयचे नीचे करते बोला.

संकरे मोड़ पर गाड़ी पैराफिट तोड़ती हुई आधी पलट गई थी. पेड़ से न अटकती तो गहरी खाई में जा गिरती, एक्सीडेंट मेरे अनुमान से कहीं बड़ा था. मैंने कल्वर्ट पर चढ़ कर ऊपर दो-तीन कोणों से गाड़ी की तस्वीरेँ ले ली. इस बीच हिम्मत सिंह खाई की तरफ़ उतर गया था, जब हाँफता हुआ ऊपर आया तो उसके हाथ में तार से गुँथी छोटी-बड़ी घंटियों की एक लड़ी थी.

“देखो साब, मैंने अपनी अर्जी ये नए घंटे के साथ गच्छयाई थी, इस तार में.. मैं इसे ही मंदिर में ढूंढ रहा था… यह इतनी दूर कार

के लगेज कैरियर में फंसा मिला.” विस्मय और उत्तेजना  में वह लगभग हकला रहा था. बात मुझे भी हैरान कर गई. सहसा दिमाग़ में बिजली सी कौंध उठी, रीढ़ की हड्डी में सुरसुरी दौड़ गई. फटाफट क्षतिग्रस्त वाहन के बैकग्राउंड में घंटियां उठाये हिम्मत का फ़ोटो ले लिया. घटनास्थल पर आवाजाही लगातार बढ़ रही थी; लोकल जनता, प्रेस, पुलिस, बीमा सर्वेयर्स… मेरे दिमाग़ में खलबली मची थी, बिना देर किये अस्पताल पहुँच कर मैं दुर्घटना के शिकार व्यक्तियों से मिलना चाहता था.

उमेश तिवारी ‘विश्वास

हल्द्वानी में रहने वाले उमेश तिवारी ‘विश्वास‘ स्वतन्त्र पत्रकार एवं लेखक हैं. अपनी शर्तों पर जीने के ख़तरे उठाते हुए रंगकर्म, पत्रकारिता, लेखन से होकर गुज़रती ज़िंदगी के रोमांच को व्यंग और कहानी की सूरत में पेश करना लेखक का पसंदीदा शग़ल है. नैनीताल की रंगमंच परम्परा का अभिन्न हिस्सा रहे उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की रंगकर्म के लेखे-जोखे पर महत्वपूर्ण पुस्तक ‘थियेटर इन नैनीताल’ 2020 में प्रकाशित हुई है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

2 hours ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

4 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

4 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

4 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

4 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

4 days ago