आम पहाड़ियों में ठैरा और बल शब्द जाने-अनजाने उनका पीछा नहीं छोड़ते. सुदूर महानगरों में रहने वाले लोग भी जो पैदायशी उत्तराखण्डी हों हिन्दी बोलते वक्त भी इन शब्दों के यदा कदा प्रयोग करने पर उनका पहाड़ी होने का अन्दाजा लगाना बहुत सरल हो जाता है. कुछ समय पहले फिल्म आई थी – ‘बत्ती गुल मीटर चालू’. फिल्म में पहाड़ी टच देने नाम पर हर संवाद के साथ ठैरा व बल जबरन ठूंस कर फिल्म की तो भद पिटी ही पहाड़ियों का भी भद्दा मजाक सा लगा. सच्चाई ये है कि ये शब्द एक तकिया कलाम न होकर हमारे समाज के वाक्चातुर्य को दर्शाता है. Nuances of Kumaoni Language
ठैरा यों तो हिन्दी शब्द ठहरा का उत्तराखण्डी तर्जुमा है अथवा यों कहें कि शब्द संक्षेप है. हालांकि ठैरा शब्द कुमाउनी में बोलते समय तो प्रयुक्त नहीं होता लेकिन कुमाउनी भाषी जब हिन्दी में बोलता है तब ही इसे प्रयोग में लाता है. कुमाउनी बोलते समय तो इसका प्रतिस्थानी हय या भय ही प्रयुक्त होता है. ठैरा का प्रयोग कर वक्ता असम्पृक्त होकर स्थापित मान्यता व परम्परा की आड़ में स्वयं को बचा ले जाता है. मसलन- ये तो रिवाज ठैरा हमारा अथवा पहाड़ी तो स्वभाव से ही सीधा-सादा होने वाला ठैरा. यानि ठैरा शब्द लगा देने से आप कुछ नया नहीं कह रहे हें बल्कि स्वयं को उस परम्परा से जोड़ देते हैं जो हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है. जाड़ों में तो ठण्डा होने वाला ही ठहरा कहकर आप स्थापित मान्यता को पुख्ता भर कर रहे हैं. लेकिन हर जगह यह बात भी लागू नही होती. जैसे – कैसे ठैरे तुम घर भी नहीं आये ? अथवा वो भी गजब का इन्सान ठैरा यहां हुए अथवा हुआ की जगह पर ठैरा प्रयोग कर लिया जाता है. Nuances of Kumaoni Language
बल शब्द भी जिस पहाड़ी ने ईजाद किया होगा भला हो उसका. किसी घटना का बखान करो भले ही अफवाह ही क्यों न हो बल लगाने से आप यह साबित करने में सफल हो जाते हैं कि यह वाकया मेरे सामने नहीं हुआ बल्कि लोगों से सुना. अगर सावधानी नहीं बरती तो यह बल शब्द इतना खतरनाक है कि किसी सामान्य सी घटना को भी बात का बतंगड़ बनाने में परहेज नहीं करता. छोटी कक्षाओं में आपने हिन्दी व अंग्रेजी के व्याकरण में प्रत्यक्ष कथन तथा अप्रत्यक्ष कथन (डायरेक्ट और इनडायरेक्ट स्पीच) को परस्पर परिवर्तित करने के नियम अवश्य पढ़े होंगे. तब या तो कही गयी बातों को उद्धरण चिन्हों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है अथवा अप्रत्यक्ष कथन कि अथवा (that) का प्रयोग कर काल परिवर्तन (tense change) भी करना पड़ता था. लेकिन हमारा केवल बल शब्द आपको इन झंझटों से मुक्ति दिलाता है. यहाँ तक कि किसने यह बात कही उसे बताने की भी आवश्यकता नहीं. बल स्वतः परिभाषित कर देता है कि -लोगों से सुना. एक बल शब्द लगाने से आपसे कोई यह पूछने वाला नहीं कि ऐसा आपने किससे सुना? इसके विपरीत जब आप अपनी आँखों से कोई घटना देखते हों तो बल शब्द स्वतः हट जाता है. Nuances of Kumaoni Language
कसप भी कुमाउनी का एक ऐसा ही शब्द है जो आपको वक्त बेवक्त परेशानियों से बचाता नजर आता है. कसप यानि – मुझे तो पता नहीं. अनभिज्ञता यह भाव आपको बड़ी चतुराई से पीछा छुड़ा देता है. मसलन- ब्येलिया तुमरि बाखई में खूब कजि-मार हैंरोछि बल ? आपने जिक्र किया तो अगले ने जानकारी होने के बावजूद जवाब में केवल कसप कह दिया तो बात वहीं पर खत्म हो गयी. अधिकांश रूप से महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला यह शब्द तब बोला जाता है जब या तो घटना की वास्तव में जानकारी न हो अथवा वे सच्चाई जानते हुए भी उसके बारे में कोई दोषारोपण से बचना चाहती हैं अथवा उस संवाद का हिस्सा बनने से बचती हैं. शब्द छोटा है लेकिन है अद्भुत. हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी जी ने तो ‘कसप’ शीर्षक से पूरा उपन्यास ही रच डाला. Nuances of Kumaoni Language
क्याप्प शब्द भी संवाद में बहुधा प्रयुक्त होने वाला शब्द है जिसका एक दूसरा पर्याय अणकस्सै भी कुमाउनी में प्रयोग किया जाता है. “इन्सान जै के भौय उ क्याप्प भौय” अब यह आपकी कल्पनाशीलता पर निर्भर करता है कि आप उस क्याप्प की कैसी तस्वीर अपने दिमाग में उतारते हैं. हालांकि अजीब शब्द इसके करीब लगता है लेकिन क्याप्प में जो भावाभिव्यक्ति है वह अजीब में कहां?
– भुवन चन्द्र पन्त
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं
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पहाड़ी स्वयं में बहुत ही सम्पन्न है। कई बार सिर्फ बोलने के लहजे से ही भावार्ध बदल जाते हैं यहाॅ तक कि एकदम विपरीत हो जाते हैं। देखिये...
1. बहुत बारिस हुई। पानी भरा है.... पानी पट्ट है रौ
2. बरिस नहीं हुई। जरा भी पानी नहीं है....पानी पट्ट है रौ।
... बस पहाड़ी बोलिये तो।