बीते 25 मई को नंदादेवी चोटी पर आठ पर्वतारोहियों के लापता होने की ख़बर आती है. इस पर्वतारोही दल का नेतृत्व विश्व विख्यात पर्वतारोही मार्टिन मोरान कर रहे थे. दल में मार्टिन के अतिरिक्त छः अन्य विदेशी और एक भारतीय शामिल थे. अब कई हफ़्तों पर पिथौरागढ़ प्रशासन पर पर्वतारोहियों को बचाने के लिये किये गए प्रयासों पर सवाल उठ रहे हैं. पिथौरागढ़ प्रशासन और इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आईएमएफ) अब एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. इस पूरी घटना पर पढ़िए केशव भट्ट की रपट.
मार्टिन मेरे सांथ ही अनगिनत मेरे पर्वतारोही सांथियों को इस बात का अफसोस है कि हिमालय की समझ न रखने वालों ने तुम्हें और तुम्हारी टीम के जाबांज सांथियों को मरने के लिए नंदा की गोद में छोड़ दिया. ये अलग बात है कि तुम्हारी आत्मा तो हर हमेशा हिंदुस्तान के उत्तराखंड के हिमालय और उनकी कंदराओं में बसी रहती थी. तुम्हारे इस प्रेम को ये गैर माउंटेनियर क्या समझ पाएंगें, जो तुम्हारे और तुम्हारी जाबांज टीम के लापता होने पर तुम पर ना जाने क्या कुछ इलजामात लगा अपने वाईट कॉलर उंचे करने में लगे हैं कि उन्होंने तुम्हारी टीम के लिए हैली रेस्क्यू किया.
मार्टिन! तुम्हारा सांथी मार्क थॉमस दिल्ली में बुझे मन से कह रहा है कि प्रशासन ने उनकी कुछ भी सुनी ही नहीं. बकायदा उन्हें बेस कैंप से उठाकर हॉस्पिटल में जबरन पटक दिया गया. जबकि वो फिट थे. वो चिल्लाते रह गए कि मार्टिन और चेतन पांडे मर नहीं सकते वो जिंदा होंगे. उन्हें भी रेस्क्यू में जाने दिया जाए. उन्हें उस क्षेत्र का भौगोलिक अनुभव है. लेकिन प्रशासन न जाने क्या करना चाह रहा था. हिमालयी क्षेत्र में आने वाले अनगिनत आपदाओं के बारे में कोई जानकारी न होने के बावजूद प्रशासन ने रेस्क्यू के नाम पर अपना नौसिखियापन ही जग-जाहिर किया और विश्व प्रसिद्व पर्वतारोहियों को मरने के लिए छोड़ दिया. प्रशासन यदि इन पर्वतारोहियों की सुनता तो मुमकिन है कि कुछ जाने बचा ली जाती.
नंदा देवी चोटी, हिंदुस्तान की दूसरी एवं विश्व की 23वीं सर्वोच्च चोटी है. नंदा देवी चोटी के पास लापता हुए आठ पर्वतारोहियों के रेस्क्यू अभियान दल के डिप्टी टीम लीडर मार्क थॉमस ने दिल्ली में मीडिया के सामने गंभीर सवाल उठाए हैं. अफसोस कि हम न तो मार्क की भाषा को भलीभांति समझ सके और न ही मीडिया को ये भान हो पाया कि ये टीम विश्व की उत्तम पर्वतारोहियों वाली है जिन्हें हिमालय की समझ हमसे ज्यादा ही है. यहां मीडिया सिर्फ प्रशासन की ही सुनता रहा. प्रशासन के कहने पर मीडिया वालों ने ये तक प्रचारित कर दिया कि मार्टिन और उसका दल बिना परमिशन के दूसरी ‘अनाम’ चोटी पर जा रहा था. मार्क थॉमस कहते रहे कि ये फैसला मार्टिन का था और ये आईएमएफ की गाइडलाइंस के हिसाब से ही था. इसके मुताबिक पर्वतारोही बेस कैंप की वेसिनिटी की कोई भी पीक पर जा सकते हैं.
बहरहाल, असंवेदनशील प्रशासन ने लापता पर्वतारोहियों की हिमालय में ही कब्रगाह बनने के लिए छोड़ दिया है. पिंडरघाटी क्षेत्र से रेस्क्यू करने की बात पर अभी कुछ नहीं हुवा है. ब्रिटेन लौटने से पहले मार्क ने इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन को भी लिखित में सारी चीजों की जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि उन्हें आईटीबीपी कैंप में रखा गया, किसी से मिलने नहीं दिया गया. पिथौरागढ़ में जिस तरह डीएम विजय कुमार जोगदंडे ने उनके सांथ बर्ताव किया, उससे हम काफी निराश हैं. उन्होंने बार-बार अनुरोध किया कि हमारी भी हेल्प लें क्योंकि वो अनुभवी माउंटेन प्रोफेशनल हैं. लेकिन उन्होंने इजाजत नहीं दी गई. यहां तक कि इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन के पर्वतारोही ध्रुव जोशी की टीम को भी शामिल नहीं किया गया. रेस्क्यू में सिर्फ आईटीबीपी( ITBP ), एसडीआरएफ ( SDRF ), एनडीआरएफ ( NDRF ) को शामिल किया, जो पर्याप्त अनुभवी नहीं थे. मार्क थॉमस का कहना था कि जिस तरह से प्रशासन ने इस मिशन में लापरवाही दिखाई उससे वो शॉक में हैं. वह भी तब जब हमने ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूएस एंबेसी से भी दबाव डलवाया. निराश हो उन्होंने कहा कि तेजी से और बेहतर तरीके से काम किया गया होता तो हालात बेहतर हो सकते थे.
मार्क की इस बात पर नंदा देवी चोटी पर लापता आठ पर्वतारोहियों के सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन पर इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आईएमएफ) भी पहली बार बयान जारी कर चिंता ही जाहिर कर सका है. आईएमएफ ने बयान में कहा है कि जिस तरह से पिथौरागढ़ जिला प्रशासन ने रेस्क्यू और रिकवरी संचालित किया, उससे वो चिंतित हैं. बयान में कहा है कि जब हमें टूर ऑपरेटर ने हालात की जानकारी दी तो हमने तुरंत पिथौरागढ़ डीएम से सर्च ऑपरेशन शुरू करने की अपील की और एक जून को हमने अपने एक्सपर्ट की पूरी टीम को वहां तैनात कर दिया, जो एक्लेमटाइज थे. उन्होंने डीएम को रिपोर्ट की. सभी संबंधित एंबेसी को भी जानकारी दे दी गई. हमारे एक्सपर्ट माउंटेनियर्स को बार-बार जिला प्रशासन से कहने के बाद भी मिशन में शामिल नहीं किया गया, यहां तक कि डिप्टी लीडर मार्क थॉमस और हमारे एक्सपर्ट को रेस्क्यू प्लानिंग में भी शामिल नहीं किया गया. आईएमएफ ने राय दी थी कि जो बॉडी देखी गई हैं, वह पिंडारी ग्लेशियर की साइड हैं और नंदा देवी ईस्ट बेस कैंप से पैदल वहां पहुंचना लगभग नामुमकिन है इसलिए पिंडारी साइड से एक्सपिडिशन तुरंत लॉन्च किया जाए, जिसके लिए हम तैयार थे. पांच जून को पिथौरागढ़ डीएम और छह जून को बागेश्वर डीएम से इसकी इजाजत मांगी गई, पर कुछ जवाब नहीं मिला. सात जून को हमने फोन पर चीफ सेक्रेटरी से रिक्वेस्ट की. आईएमएफ का कहना है कि वो अभी भी राज्य और जिला प्रशासन की इजाजत का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि हमारे पास ऑपरेशन पूरा करने के लिए बस 15-20 दिन ही हैं क्योंकि फिर मानसून शुरू हो जाएगा.
अब निराश हो अपने देश लौट चुके मार्क को कौन समझाए कि ये हिंदुस्तान ऐसा ही कुछ अलग टाइप का है और यहां का प्रशासन आपके देश के प्रशासकों/लोगों की तरह सेंसेटिव तो नहीं है और खासतौर पर माउंटेनियरों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं.
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बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं. केशव काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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