आदतें बड़ी कमाल की चीज हैं. अगर इंसान में सही आदतें आ गईं, तो वे उसे कामयाबियों के शिखर पर पहुंचा देती हैं. गलत आदतें उसे गुमनामियों के अतल में फेंक देती हैं. ऐसा नहीं कि आपको और मुझे यह बात मालूम नहीं. सवाल यह है कि यह बात सबको मालूम होते हुए भी बहुत कम लोग आदतों को साध पाते हैं. आदतों को हम साध नहीं पाते, क्योंकि हममें धैर्य की बहुत कमी है. आपने सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की कहानी तो पढ़ी ही होगी. कैसे लालच और अधैर्य में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का मालिक यह सोचकर कि वह उसके पेट से सारे अंडे एक साथ निकालकर फटाफट रईस बन जाएगा, मुर्गी को मार देता है और इस तरह उसे जो एक सोने का अंडा रोज मिल रहा था, वह उससे भी वंचित रह जाता है. Mind Fit 9 Column by Sundar Chand Thakur
हम भी जल्दी फल पाने की फिराक में कोई अच्छी आदत पालना शुरू करते हैं. लेकिन जब देखते हैं कि फल नहीं मिल रहा, तो धैर्य खो देते हैं और आदत को मार देते हैं यानी उसे छोड़ देते हैं. ऐसा हम इसलिए करते हैं, क्योंकि हमें यह नहीं मालूम कि अच्छी आदतें बांस के पेड़ों जैसी होती हैं. आप बांस को जब जमीन में लगाते हैं, तो कई सालों तक उसकी कोंपल नहीं फूटती. सतह पर कुछ दिखाई ही नहीं देता. एक साल, दो साल, तीन साल, चार साल, पांच साल. मगर पांचवें साल में सतह पर कोंपल फूटती है. वह जमीन से बाहर झांकती है और अगले छह हफ्तों में बांस आसमान में 90 फुट की ऊंचाई नाप लेता है. अच्छी आदत भी फल देने से पहले थोड़ा समय लेती है. हमें धैर्य से उसके फलीभूत होने का इंतजार करना चाहिए. इसे एक दूसरे उदाहरण से भी समझिए. जब आप एक कमरे में बर्फ रखते हैं और उसे पिघलाने के लिए कमरे का तापमान बढ़ाना शुरू करते हैं, तो 27 डिग्री, 28 डिग्री, 29 डिग्री, 30 डिग्री, 31 डिग्री फैरनहाइट के तापमान तक बर्फ जस की तस रहती है. लेकिन तापमान के 32 डिग्री फैरनहाइट यानी जीरो डिग्री सेंटिग्रेड पहुंचते ही वह पिघलना शुरू हो जाती है. Mind Fit 9 Column by Sundar Chand Thakur
अब सोचिए कि अगर आप कमरे का तापमान 31 डिग्री तक बढ़ाकर छोड़ दें, तो क्या हो. आप 31 डिग्री तक तापमान को लाए. सिर्फ एक डिग्री तापमान और बढ़ाने की बात थी. ज्यादातर लोग मंजिल के बहुत करीब पहुंचकर चलना छोड़ देते हैं. वे यह नहीं जान पाते कि अब तक उन्होंने जितना भी प्रयास किया है, वह सारा बर्बाद नहीं हुआ है, बल्कि वह जमा होता गया है. सिर्फ यह है कि वह हमें दिखता नहीं. यह ऐसा ही है, जैसे जब हम किसी बड़े पत्थर को तोड़ने के लिए उस पर हथौड़ा चलाते हैं, तो उस अंतिम प्रहार से पहले जबकि पत्थर अचानक दो टुकड़ों में बंट जाता है, हमें उस पर अनगिनत चोटें करनी पड़ती हैं. जब हम चोट कर रहे होते हैं, तो बाहर से पत्थर पर हमारी चोटों का कोई प्रभाव नहीं दिखता, लेकिन अंदर ही अंदर हर प्रहार पर वह दरक रहा होता है. जरूरत सिर्फ उस आखिरी चोट तक पहुंचने की होती है, जो पत्थर को दो भागों में तोड़ देती है.
कोई भी आदत तब तक हमारे जीवन में कोई नतीजा देना शुरू नहीं करती, जब तक कि वह एक निश्चित अवस्था तक पक नहीं जाती और हमारा प्रदर्शन दूसरों की तुलना में कहीं बेहतर नहीं हो जाता. मान लीजिए, हम रोज सुबह दौड़ने का अभ्यास या गाने का रियाज करते हैं. अगर हम रोज इसे करते रहे, तो एक महीने बाद हम पहले से अच्छे रनर बन जाएंगे या हमें सुरों का भी थोड़ा बोध होने लगेगा. दौड़ने का क्रम जारी रहा, तो एक साल बाद हम बहुत अच्छे रनर बन जाएंगे. इसी तरह गाने का अभ्यास करते रहे, तो हमारा सुर इतना सध चुका होगा कि दोस्तों और ऑफिस के साथियों के बीच हम अपने गानों पर वाहवाही लूटने लगेंगे. लेकिन अगर हम चाहते हैं कि एक रनर या गायक के रूप में पूरे देश में हमारी पहचान बनें, तो न सिर्फ हमें अपने अभ्यास और रियाज को रोज करते रहना होगा, बल्कि उसकी अवधि भी बढ़ानी होगी. Mind Fit 9 Column by Sundar Chand Thakur
अगर दस साल तक ऐसा करते रहे, तो हम एक अलग ही लीग के रनर और गायक बन जाएंगे. बीस साल तक करते रहे, तो हमारे जैसा शायद कोई दूसरा हो ही नहीं. फौजा सिंह के बारे में हम जानते हैं कि उन्होंने 84 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया और अगले सोलह सालों में उन्होंने कई दूसरे वर्ल्ड रेकॉर्ड्स के अलावा सौ साल की उम्र में फुल मैराथन पूरी करने का विश्व कीर्तिमान भी बना लिया. लता मंगेशकर अगर 90 साल की उम्र तक भी गाने रेकॉर्ड कर पा रही हैं, तो यह उनकी कठिन साधना की परिणति है. कितनी ही तरह की अच्छी आदतों का परिणाम है. इसीलिए अगर आप किसी नई अच्छी आदत को अपनाने जा रहे हैं, तो शुरू में कृपया थोड़ा धैर्य रखें, परिणाम की जल्दबाजी न करें, क्योंकि उनका मिलना तय है.
आपने अगर बांस को जमीन में बो दिया है, तो वह पहले अपनी जड़ें तैयार करेगा. इसमें समय लगता है. बांस के मामले में पूरे पांच साल. लेकिन एक बार जब वह जमीन के ऊपर आ जाए, तो उसे आसमान छूने में देर नहीं लगती. इसीलिए आदतों के बीज बोने के बाद जरूरी है कि आप भी सब्र करें, उन्हें सींचते रहें. आप अगर पानी देते रहे, तो एक दिन सफलता की कोंपल का फूटना उतना ही निश्चित है, जितना रात के बाद सुबह का होना. Mind Fit 9 Column by Sundar Chand Thakur
–सुन्दर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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