Featured

ताकि समझ आ सकें सृष्टि के सारे रहस्य

वैदिक काल में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, लेखक, ज्ञानी और तपस्वी हुए, जिन्होंने एक से बढ़कर एक तरीके से साधना की और अलग-अलग विद्याओं में निपुणता प्राप्त की. रामायण और महाभारत में हमें एक से बढ़कर एक योद्धा मिलते हैं. वे ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाते थे, खुले आकाश के नीचे बैठ साधना करते थे. चूंकि तब वातावरण जरा भी दूषित नहीं था, उन्हें वातावरण से भरपूर ऑक्सीजन मिलती थी. एक ही श्वास में वे प्राण तत्व से सराबोर हो जाते थे. प्रकृति अपनी विलक्षण शक्तियां उन पर लुटाती थी. पानी, अनाज, फल, सब्जियां, घी, दूध-दही तब अपने विशुद्ध रूप में लोगों को ऊर्जा से परिपूर्ण करते थे. यह ऊर्जा उन्हें और मुश्किल कार्य करने की शक्ति देती थी.
(Mind Fit 35 Column)

हमें अर्जुन जैसे धनुर्धर और भीम जैसे योद्धा यूं ही नहीं मिल गए. हमें पतंजलि जैसे महर्षि ऐसे ही नहीं मिल गए, जिन्होंने न सिर्फ योगसूत्र के जरिए भारत को योग का एक अमूल्य उपहार दिया, बल्कि व्याकरण और चिकित्सा के क्षेत्र में भी अद्भुत कार्य कर गए. जाहिर है, एक ही जीवन काल में इस स्तर का और इतना सारा काम करने के लिए वैदिककालीन इन महानुभूतियों को मानसिक एकाग्रता की बहुत जरूरत पड़ी होगी. यह उनका सौभाग्य था कि वैसी एकाग्रता तब वातावरण का ही एक अविभाज्य हिस्सा थी. जहां बैठ जाओ, वहीं प्रकृति की गजब शक्तियां बिखरी होतीं. बैठते ही ध्यान लग जाता.

वैदिक काल में भारत की जनसंख्या करीब 10 लाख थी. जितनी कम जनसंख्या, उतनी ही कम विचार तरंगें, क्योंकि जितने कम लोग होंगे, उतने ही कम लोग सोचने का काम करेंगे. हमारे आसपास जितनी कम विचार तरंगें होंगी, हमारे लिए उतने ही कम व्यवधान होंगे. जितना कम व्यवधान, उतना ही एकाग्रचित्त होकर किया गया काम. जितना एकाग्रचित्त होकर किया गया काम, उतना ही बेहतर परिणाम.

बात सिर्फ विचार तरंगों की नहीं, व्यवधान पैदा करने वाले दूसरे उपकरणों की भी है. महर्षि वाल्मीकि और कबीर के हाथ में अगर हम मोबाइल थमा देते, तो वे दोहे लिखने की बजाय कैंडी क्रश खेल रहे होते. गंभीर, महान और भावी पीढ़ियों के लाभ के लिए जो जरूरी काम किए जाने हैं, उन्हें करने के वास्ते जिस स्तर की एकाग्रता हमें चाहिए, हम उससे महरूम होते जा रहे हैं. मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से न सिर्फ आंखें थक जाती हैं, बल्कि दिमाग भी पस्त हो जाता है. एक थका हुआ दिमाग नया चिंतन नहीं कर सकता. इसीलिए आप देखेंगे कि बहुत ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करने वाले चिढ़चिढ़े भी हो जाते हैं. यानी दो प्रभाव ऐसे हैं, जो आपको एकाग्र होकर काम करने से रोकते हैं – पहला लोगों की विचार तरंगें, जो बार-बार मस्तिष्क के एंटीना से टकराकर आपके दिमाग में भी अनाप-शनाप विचार पैदा करती हैं और दूसरा यह मोबाइल, जिसे आप चाहकर भी नहीं छोड़ सकते, क्योंकि अब उसे आपकी रोजी-रोटी भी जुड़ गई है. 
(Mind Fit 35 Column)

इन दोनों समस्याओं से निजात पाने का एक बहुत कारगर उपाय है. वह उपाय है ब्रह्म मुहूर्त में उठना. ब्रह्म मुहूर्त एक ऐसा समय है, जबकि ज्यादातर लोग सोए होते हैं, इसलिए वातावरण में उनकी विचार तरंगें भी नहीं होतीं. बेहतर और प्रभावी परिणाम के लिए अध्ययन और चिंतन वाले कार्य इस वक्त किए जा सकते हैं. यही वह समयावधि है, जब आप अपने मोबाइल को निश्चिंत होकर अलग छोड़ सकते हैं, क्योंकि इस वक्त आपको आपका बॉस तो कभी याद करने वाला नहीं है. वह क्यों कर आपको नींद में भी याद करने लगा. यह जो सुबह का समय होता है, इस पर पूरी तरह आपका अधिकार होता है. आप अगर चाहें, तो सुबह 4 बजे से लेकर 8 बजे तक अपने काम कर सकते हैं, क्योंकि 8 बजे के बाद व्यवधान शुरू होना लाजिमी है. तब तक वातावरण में विचार तरंगें भी भरने लगती हैं, क्योंकि लोग उठने लगते हैं.

आप खुद सोचें कि रोज चार घंटे का एकाग्रचित्त होकर काम करने का समय मिलना आपके जीवन को किस तरह रूपांतरित कर सकता है. आप अगर 21 दिनों तक लगातार ऐसा कर पाएं, तो यह आपकी आदत में शुमार हो जाएगा और जीवनपर्यंत बना रहेगा. ऐसा करेंगे, तो बहुत जल्दी ब्रह्मांड आपको अपने खुद की प्रज्ञा हस्तांतरित करना शुरू कर देगा. ब्रह्मांड की प्रज्ञा यानी Cosmic Intelligence ही वह चीज है, जो ब्रह्मांड में संतुलन स्थापित किए हुए है. आप सोच भी नहीं सकते कि अगर आपको उस प्रज्ञा के सहस्रवें अंश का भी सहस्रवां अंश मिल जाए, तो आप अपने जीवन को किन ऊंचाइयों तक ले जाएंगे. आपको ब्रह्मांड के होने का मकसद समझ आ जाएगा, आपको दुनिया पर काम कर रही शक्तियों की गति समझ आ जाएगी. आप उम्मीद, आकांक्षाओं, हार, जीत, निराशाओं की सीमाओं से बाहर चले जाएंगे. आप महात्मा बुद्ध की उस स्थिति में थिर हो जाएंगे, जो मानसिक शांति के लिए मध्यमार्ग की संकल्पना दे पाती है, जो घटनाओं और स्थितियों के बीच में रहते हुए भी एक स्थाई आनंद में बनी रह पाती है.
(Mind Fit 35 Column)

-सुंदर चंद ठाकुर

इसे भी पढ़ें: जिंदगी बनेगी बेहतर, चौकन्नी नजर तो पैदा कर

लेखक के प्रेरक यूट्यूब विडियो देखने के लिए कृपया उनका चैनल MindFit सब्सक्राइब करें

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online  

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago