सुन्दर चन्द ठाकुर

छोटी सफलताएं बनेंगी बड़ी सफलता की सीढ़ियां

क्या आप जीवन में एक सफल इंसान बनना चाहते हैं? सफल होने के मायने हैं कि जो भी पेशा आपको पसंद हो, आप आजीविका के लिए उसी से जुड़ा काम करें. आप जो भी काम करें, उसमें आपको कामयाबी मिले. आप रोज उत्साह और उमंग से भरकर अपना जीवन जिएं. Mind Fit 10 Column by Sundar Chand Thakur

हर व्यक्ति ऐसी सफलता चाहता है, लेकिन ज्यादातर लोग इससे महरूम रह जाते हैं. वे इसके लिए अपने खराब समय और खराब भाग्य को कोसते हैं. लेकिन सब जानते हैं कि इस दुनिया में आकर अपना समय और अपना भाग्य हम खुद बनाते हैं. सफलता की राह में सबसे बड़ी बाधा उसे लेकर हमारी अपनी नजर होती है. Mind Fit 10 Column by Sundar Chand Thakur

हम बड़ी सफलताओं पर नजर टिकाए रखते हैं, लेकिन रोजमर्रा के जीवन की छोटी-छोटी सफलताओं को नजरअंदाज करते जाते हैं. हम बड़ी चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहते हैं, लेकिन छोटी-छोटी चुनौतियों के सामने घुटने टेक देते हैं. बड़ी सफलताओं और बड़ी चुनौतियों के प्रति हमारा यह आकर्षण हमारे ईगो यानी अहं के कारण ही है. चूंकि बड़ी सफलताओं और चुनौतियों पर दुनिया की नजर रहती है, इसलिए हम उन्हें लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहते.

 हम जान लगाकर इंजीनियरिंग के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करते हैं, सिविल सर्विसेज की तैयारी करते हैं, क्योंकि वहां हमारी कामयाबी को दुनिया देखने वाली है. वहां मिली कामयाबी पर दुनिया वाह-वाह करेगी. लेकिन रोजमर्रा के जीवन में उन कामों का क्या, जिन पर आपके सिवाय किसी की नजर नहीं. आप जो रोज खुद से, अपने घर के दूसरे सदस्यों से, अपने दोस्तों से हजारों कमिटमेंट करते हैं, उन पर खरा उतरने में आपको कितनी सफलता मिल रही है. Mind Fit 10 Column by Sundar Chand Thakur

आपने जो खुद से वादे किए, उनका क्या हुआ. आपने जो बातें मन ही मन सोचीं, मन ही मन जो संकल्प किए – मैं मीठा नहीं खाऊंगा, मैं रात नौ बजे से पहले डिनर कर लूंगा, मैं रोज सुबह पांच बजे उठ जाऊंगा, मैं गुस्सा नहीं करूंगा, मैं कल से रोज दौड़ लगाने जाऊंगा. रोज हम अपने ही मन में ऐसे न जाने कितने ही संकल्प लेते हैं. उन पर हम अगर खरा नहीं भी उतरें, तो कोई हमें कुछ कहने वाला नहीं है.

खरा उतरने पर पूरी दुनिया उसके लिए हमें अपने कंधों पर भी नहीं बैठाने वाली है. इस बात का हमें अहसास नहीं हो पाता, लेकिन होता यह है कि जब हम अपने छोटे संकल्पों को पूरा करने लगते हैं, उनके प्रति अपने कमिटमेंट में कोई समझौता नहीं करते, वह हमारी प्रवृत्ति बनने लगता है, हमारी आदत बनने लगता है. जैसे-जैसे यह हमारी आदत बनता है, हमारे भीतर खुद के प्रति एक भरोसा जागता है कि हम जो कमिट करेंगे, उसे पूरा भी कर लेंगे. अगर आपने अपनी तेरह साल की टीनऐज बेटी से वादा किया था कि संडे को उसे फिल्म दिखाने ले जाएंगे और संडे को ऑफिस का कोई काम आ जाता है, तब आप क्या करेंगे? बेटी को यह बताकर कि ऑफिस का जरूरी काम आ गया है, फिल्म का प्लान कैंसल करना बहुत आसान रास्ता है. लेकिन अगर आप ऐसा करते हैं तो आप मनोवैज्ञानिक स्तर पर अपनी बेटी के दिमाग में अपने कमिटमेंट का मूल्य खत्म कर देंगे. बेटी से ज्यादा आपके दिमाग में अपने ही कमिटमेंट कभी ताकतवर नहीं बन पाएंगे. कमिटमेंट की पावर ऐसी होनी चाहिए कि दुनिया इधर की उधर हो जाए, लेकिन आप अपने किए वादे को हर हाल पर पूरा करें.

बेटी के साथ किए कमिटमेंट को अगर आप निभा सकते हैं, तो कंपनी के प्रति अपने कमिटमेंट का भी खयाल जरूर रखेंगे. जब हम अपने कमिटमेंट, अपने वादों, अपने तय लक्ष्यों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए उन्हें हर हाल पर पूरा करते हैं, तो हमारे दिमाग के न्यूरॉन्स एक खास तरीके से रिएक्ट करना शुरू कर देते हैं. दिमाग के भीतर न्यूरॉन्स के मूवमेंट का ऐसा पैटर्न बनने लगता है, जो हम में किसी भी तरह की और कितनी ही बड़ी चुनौतियों को स्वीकार कर उन्हें पूरा करने के लिए जरूरी आत्मविश्वास भरता है.

लाओत्से ने कहा था कि हजार मील की यात्रा पहले कदम से शुरू होती है. इसी तर्ज पर बड़ी सफलताएं छोटी सफलताओं की मोहताज होती हैं. रोजमर्रा के जीवन में हम कैसे अपने छोटे-छोटे काम समय पर पूरे कर रहे हैं- समय पर खा रहे हैं, समय पर सो रहे हैं, समय पर उठ रहे हैं, अपने घर को साफ-सुथरा रख रहे हैं, घर के भीतर चीजों को सुव्यवस्थित कर रहे हैं, कैसे खुद से किए हर वादे को पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं, ये सभी बड़ी और महान सफलताओं की ओर हमारी यात्राओं को पूरा करने में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. Mind Fit 10 Column by Sundar Chand Thakur

इन छोटी-छोटी सफलताओं के रथ पर ही बड़ी सफलता सवार होकर हमारे जीवन में प्रवेश कर सकती है. अलबत्ता कहा यह भी जा सकता है कि अगर हम रोजमर्रा के जीवन में इन छोटी सफलताओं को सुनिश्चित कर लें, तो बड़ी सफलता महज एक औपचारिकता रह जाएगी. उसे आप तक पहुंचने में कोई रोक नहीं सकता.

सुन्दर चंद ठाकुर

यह भी पढ़ें: इस लम्हे से पहले जो हुआ सब भूल जा

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

लेखक के प्रेरक यूट्यूब विडियो देखने के लिए कृपया उनका चैनल MindFit सब्सक्राइब करें

सुन्दर चन्द ठाकुर

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago