पिछले सोमवार की बात है जब वाट्सएप स्टेट्स के माध्यम से मुझे पता चला कि एक बाघ सुबह रामनगर सिताबनी मार्ग पर कोसी की तरफ जाता हुआ दिखा है. देखने से ये वही बाघिन थी जो इस क्षेत्र में अक्सर नज़र आती थी. जिस परिचित ने यह वीडियो साझा किया था मैंने उन्हें फ़ोन करके पूछा तो उन्होंने बताया— हम हाथी की चिंघाड़ सुनकर रुके और फिर बाघ के दहाड़ने की आवाज़ आयी और उसके बाद बाघ सड़क पार कर कोसी नदी की तरफ़ को चला गया. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)
उसी दोपहर मैने वहाँ जाके मुआयना करने का फैसला किया, यह सोचकर कि क्या पता बाघिन वहीं आस-पास ही हो और दिख जाये. वहाँ पहुँचकर थोड़ा इंतज़ार करने की बाद नदी की तरफ़ से मुझे चीतल की 2-3 अलार्म कॉल सुनायी दी जिसका मतलब बाघिन कहीं आस-पास ही थी. मैंने थोड़ी देर वहीं पर इंतज़ार करना सही समझा और इंतज़ार करने लगा.
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अचानक टहनियों के टूटने की आवाज़ सुनायी देने से मेरे कान चौकन्ने हो गये. टहनियों के टूटने का मतलब था हाथी का वहाँ पर होना. कुछ देर बाद कन्फ़र्म हो गया कि वहाँ पर हाथियों का एक झुंड था, जो पेड़ों की टहनियों की दावत उड़ा रहा था. हाथियों की पाचन प्रणाली काफ़ी कमजोर होती है और भोजन का 80 प्रतिशत वे मल के रूप में बाहर निकाल देते हैं इसलिए उन्हें लगातार भोजन की आवश्यकता होती है.
धीरे-धीरे मुझे घने पेड़ों के पीछे हाथी साफ नज़र आने लगे. वे धीरे-धीरे सड़क की ओर बढ़ रहे थे. वे उस रास्ते की तरफ बढ़ रहे थे जहां से वे लगातार गुजरा करते हैं, जो एक हाथी गलियार है. मुख्य सड़क होने के कारण वहाँ वाहनों की आवाजाही लगातार बनी रहती है. लेकिन दोपहर का समय होने के कारण कुछ ही वाहन चलते हुए नज़र आ रहे थे, यानि वे आसानी से सड़क पार कर सकते थे.
थोड़ी ही देर में हाथी मुख्य सड़क पर आ गये. ये 15-20 हाथियों का एक बड़ा सा झुंड था जिसमें 2-3 छोटे बच्चे भी थे. बच्चों को देखकर अब मुझे पूरा माजरा समझ में आ गया था. माजरा ये था कि बाघिन इन छोटे बच्चों का शिकार करने की फ़िराक़ करने की नीयत से ही इनका पीछा भी कर रहा थी. मौक़ा देखकर अक्सर बाघ हाथियों के छोटे बच्चों को शिकार कर लेते हैं या इस कोशिश में उन्हें घायल करके छोड़ देते हैं. लगातार खून बहने की वजह से और बाघ के पंजों के विषैले कीटाणु पूरे शरीर में फैलने की वजह से इनकी मौत हो जाती है. 5 मिनट बाद पूरा झुंड सड़क पार कर दुबारा से जंगल में गुम हो गया, अब बस टहनियों के तोड़ने की आवाज़ ही सुनायी दे रही थी.
ये झुंड उसी दिशा में बढ़ रहा था जिस दिशा से चीतल की अलार्म कॉल सुनायी दी थी.
गर्मियों में दिन के समय में बाघ अधिकतर आलसी हो जाते हैं और पानी या ठंडी जगह में सुस्ताना पसंद करते हैं. इस हिसाब से मुझे टकराव की सम्भावना कम ही नज़र आ रही थी क्योंकि बाघ की उपस्थिति महसूस होने पर हाथी ज़ोरों से चिंघाड़ना शुरू कर देते हैं. लेकिन काफ़ी देर इंतज़ार करने की बाद भी ऐसी कोई आवाज़ नहीं सुनायी दी तो मैंने शाम को दोबारा आकर समय देने की सोची. क्योंकि तब वे उस जगह पर आ जाते जहाँ से उनकी उपस्थिति साफ़ नज़र आ जाती और बाघ की भी.
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शाम को जब उस जगह पर पहुँचा तो मेरे अनुमान के मुताबिक़ हाथियों का झुंड नदी किनारे घास के मैदान पर नज़र आ रहा था और घास को जड़ों से निकालकर खाने में मस्त था. दो छोटे बच्चे आपस में मस्ती कर रहे थे. लेकिन मेरा मक़सद तो बाघिन को देखना था. हाथियों के आसपास की सारी जगहों का निरीक्षण करने के बाद भी मुझे कहीं बाघिन की मौजूदगी नहीं मिली. मैं सोचने लगा— क्या पता बाघिन कहीं आसपास ही मौक़े के इंतज़ार में छिपकर बैठी हो पर मुझे ऐसा कुछ नज़र नहीं आया. इस बीच हाथियों का झुंड पानी में आकर अपनी प्यास बुझा रहा था. फिर वे धीरे-धीरे नदी पार करने अंदर जंगल को बढ़ने लगे.
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केवल दो ही हाथी नज़र आ रहे थे जो झुंड के साथ नहीं गये. वे वहीं घास का आनंद ले रहे थे. थोड़ी देर बाद वे भी बढ़ चले और कुछ आगे पहुंचकर से नदी पार कर अंदर जंगल में गुम हो गये.
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मैंने फिर एक सरसरी निगाह मारी ताकि कहीं बाघिन दिख जाये. क्योंकि अनुमान तो मैंने यही लगाया था कि बाघिन भी कहीं आसपास ही मौजूद होगी, पर उसकी मौजूदगी नज़र नहीं आ रही थी. हाथियों का झुंड जा चुका था पर मुझे मेरा बाघ कहीं नज़र नहीं आ रहा था. निराशा सी होने लगी थी, क्योंकि मुझे अंदर से लगा रहा था कि बाघ इस झुंड के आसपास ही होगा और मुझे ज़रूर दिखेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ तो निराश होना लाज़मी ही था.
मैं उठकर दूसरी तरफ़ आ गया. ये देखने कि कहीं बाघ इस तरफ़ तो नहीं है, पर ऐसा नहीं था. तभी अचानक मोर बोला, फिर दूसरी बार… फिर लगातार बोलने लगा. अब मेरा माथा ठनका.
मैं जल्दी से दुबारा उसी जगह पर लौटा और सीधे उस दिशा को नज़रें दौड़ाई जहाँ से मोर बोल रहा था. देखा तो दो मोर नदी की ओर देखकर बोल रहे थे. जैसे ही मैंने नदी की और देखा तो मुँह से निकला ‘अरे बाघिन तो आ गई.’
अगले ही पल निराशा आशा में बदल चुकी थी. मेरा अनुमान सही साबित हुआ. बाघिन वहीं से निकलकर पानी में आकर बैठ गई थी जिस तरफ हाथी गये थे और अब बैठकर खुद को ठंडा कर रही थी.
विहंगम नजारा था. चारों और घना जंगल, बीच में घास का मैदान, नदी और नदी में बैठी हुई जंगल की रानी. ऐसा नजारा, ख़ासकर सीताबनी क्षेत्र में, कम ही देखने को मिलता है. ख़ुशक़िस्मती से मैं इस नज़ारे को दूसरी बार देख रहा था. ढिकाला की रामगंगा नदी में ये नज़ारे दिखते रहते हैं लेकिन इस क्षेत्र में नहीं. मैं इस अद्भुत नज़ारे का जी भर के आनंद ले रहा था और अपने कैमरे में उतार रहा था. तभी उसने मेरी और देखा. जैसे उसे मेरी उपस्थिति पता चल गई हो. मैं नहीं चाहता था कि उसे मेरी मौजूदगी मालूम पड़े और वह उठकर जंगल के भीतर चली जाये. हालाँकि मैं छिपकर उसे कैमरे में उतार रहा था लेकिन कहते हैं न कि चोर की दाढ़ी में तिनका. एक समय मुझे ऐसा ही लगा पर फिर मैंने सोचा मैं छिपकर बैठा हूँ तो ये मुझे कैसे देख सकता है.
उसने मेरी तरफ़ देखा और फिर गर्दन घुमाकर वैसे ही बैठ गई. तक़रीबन 15 मिनट पानी में अपने को ठंडा करने के बाद वह उठी और नदी को पार करते हुए उसी तरफ बढ़ने लगी जहाँ हाथी का झुंड खड़ा था. फिर वह एक बटिया से होते हुए वहीँ खुली जगह पर बैठ गई और सुस्ताने लगी. फिर ज़मीन पर इस तरह निढाल हो गई मानो सोने की फ़िराक़ मे हो. बड़ा ही सुंदर दृश्य था. लेटी हुई बाघिन घास में अलग ही नज़र आ रही थी और वन्य जीवन के इस अदभुत नज़ारे से मुझे रू-ब-रू करवा रही थी. बीच-बीच में वह आहट पाकर चौंक उठती और अपनी गर्दन उठाकर सरसरी निगाह मारकर फिर लेट जाती. तभी अचानक वह फिर चौंकी और गर्दन घुमाकर मेरी और देखने लगी. जैसे उसे मेरे वहाँ होने का अहसास हो गया हो. थोड़ी देर तक देखने कि बाद वो फिर लेट गई. इसी बीच मुख्य सड़क पर वाहन के रुकने की आवाज़ आयी और कुछ पर्यटक आवाज़ करते सुनायी दिये. वह चौंक कर बैठ गई और ऊपर को देखने लगी. फिर उठी और आहिस्ता-आहिस्ता ख़ुद को छिपाते हुए झाड़ी के पीछे गुम हो गई.
शो ख़त्म हो चुका था और अब ऐसा लग रहा था मानो जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. अभी थोड़ी देर पहले ही तो जंगल जी उठा था और जंगल की दुनिया के दो सबसे मुख्य किरदार हाथी और बाघ मेरी नज़रों के सामने थे. इसे ही कहते हैं जंगल की दुनिया, जो घड़ी-घड़ी रंग बदलती है.
इस बाघिन के साथ मुझे खुद का अलग सा रिश्ता सा महसूस होता है. ये मुझे कभी निराश भी नहीं करती है. समय-समय पर अपने अलग-अलग रंगो से रू-ब-रू कराती है. उम्मीद है आगे भी यह सफ़र चलता रहेगा और मुझे इस बाघिन के रंग-रूप देखने को मिलते रहेंगे. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)
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रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.
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