आज विख्यात कहानीकार सआदत हसन मंटो (Manto) की मृत्यु को 64 साल हो गए. साधारण मनुष्य की छोटी-बड़ी हार-जीतों को अपनी कहानियों का विषय बनाने वाले मंटो भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्रसिद्ध और चर्चित कहानीकारों की लिस्ट में सबसे ऊपर आते हैं. आसपास के जीवन से उठाये गए उनकी कहानियों के पात्र समाज की हर गन्दगी को उघाड़ते जाते थे. भारत के विभाजन पर लिखी और साम्प्रदायिकता को आईना दिखातीं उनकी कथाएँ अब मील के पत्थर बन चुकी हैं. उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िए उनकी चार छोटी कहानियां.
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए.
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे,
कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें.
एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया.
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं.
जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया.
लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया.
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था.
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.
दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और बयालीस रुपये देकर उसे ख़रीद लिया.
रात गुज़ारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा : “तुम्हारा नाम क्या है? ”
लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया: “हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो..!”
लड़की ने जवाब दिया : “उसने झूठ बोला था!”
यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा : “उस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोखा किया है … हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी … चलो, वापस कर आएँ …!”
लबलबी दबी – पिस्तौल से झुँझलाकर गोली बाहर निकली.
खिड़की में से बाहर झाँकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया.
लबलबी थोड़ी देर बाद फ़िर दबी – दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली.
सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा.
लबलबी तीसरी बार दबी – निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई.
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.
पाँचवी और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी.
गोलियाँ चलाने वाला भिन्ना गया.
दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया.
गोलियाँ चलानेवाले ने पिस्तौल का मुहँ उसकी तरफ़ मोड़ा.
उसके साथी ने कहा : “यह क्या करते हो?”
गोलियां चलानेवाले ने पूछा : “क्यों?”
“गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!”
“तुम ख़ामोश रहो … इतने-से बच्चे को क्या मालूम?”
“मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी, हौले-हौले फेरी और उसको हलाल कर दिया.”
“यह तुमने क्या किया?”
“क्यों?”
“इसको हलाल क्यों किया?”
“मज़ा आता है इस तरह.”
“मज़ा आता है के बच्चे…..तुझे झटका करना चाहिए था … इस तरह. ”
और हलाल करनेवाले की गर्दन का झटका हो गया.
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