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एक युवा कवि को पत्र – 2 – रेनर मारिया रिल्के

“एक युवा कवि को पत्र” महान जर्मन कवि रेनर मारिया रिल्के के लिखे दस ख़तों का संग्रह है. ये ख़त जर्मन सेना में भर्ती होने का विचार कर रहे फ़्रान्ज़ काप्पूस नामक एक युवा को सम्बोधित हैं. काप्पूस 19 का था जबकि रिल्के 27 के जब यह पत्रव्यवहार शुरू हुआ. काप्पूस ने अपनी कविताएं रिल्के को भेजीं और उनसे साहित्य और करियर की बाबत चन्द सवालात पूछे. यह पत्रव्यवहार  1903 से  1908 तक चला.

1929 में रिल्के की मौत के बाद काप्पूस ने इन पत्रों को एक किताब की सूरत में छपाया. ये पत्र अब विश्व साहित्य की सबसे चुनिन्दा धरोहरों में शुमार होते हैं.

पढ़िए इस श्रृंखला का दूसरा पत्र –

वीयारेजिओ, पीसा के नज़दीक (इटली)
5 अप्रैल, 1903

24 फ़रवरी के आपके पत्र को कृतज्ञतापूर्वक याद करने के लिए आज तक प्रतीक्षा करने लिए आपने मुझे माफ़ करना चाहिए, प्रिय श्रीमान. इस पूरे समय मैं ठीक नहीं था, बीमार नहीं कह सकते पर मैं इन्फ़्लूएन्ज़ा जैसी अशक्तता से पीड़ित हूं, जिसकी वजह से मैं कुछ भी नहीं कर पाता. और अन्ततः, चूंकि यह ठीक होना ही नहीं चाहती मैं यहां दक्षिणी समुद्र की तरफ़ चला आया जिसकी दानशीलता ने एक बार पहले मेरी मदद की थी. लेकिन मैं अब भी ठीक नहीं हूं, लिखना मुश्किल होता है इसलिए आपको उस पत्र के बदले इन चन्द पंक्तियों को ही स्वीकार करना होगा, जिसे मैं भेजना चाहता था.

निस्संदेह आपको जानना चाहिए कि आपका हर पत्र मुझे आनन्द देता है और उत्तर को लेकर आपको अनुग्रहशील होना होगा, हो सकता है अक्सर आप खाली हाथ रह जाएं; क्योंकि अन्ततः और स्पष्टतः सबसे गहन और सबसे महत्वपूर्ण मामलों में हम अकथनीय रूप से अकेले होते हैं; और अगर एक मनुष्य ने दूसरे को सफलतापूर्वक सलाह देनी है तो कई सारी चीज़ों ने घटना होगा, कई चीज़ों ने सही होना होगा और घटनाओं का एक पुंज पूरा किया जाना होगा.

आज मैं आप को सिर्फ़ दो और बातें बताना चाहूंगा:

विडम्बना: अपने आप को इस से नियन्त्रित मत होने दीजिए, ख़ासतौर पर अरचनात्मक क्षणों में. जब आप पूरी तरह रचनाशील हों तो जीवन को थामने के एक और प्रयास के तौर पर इसका इस्तेमाल करें. शुद्धता से इस्तेमाल की जाए तो यह भी शुद्ध होती है, और आपको इसे लेकर शर्मिन्दा होने की ज़रूरत नहीं, लेकिन अगर आप को लगता है कि आप इस से ज़रूरत से ज़्यादा परिचित हो रहे हैं, अगर आपको इस बढ़ते परिचय से भय लगता है, तो अपना ध्यान महान और गम्भीर चीज़ों की तरफ़ मोड़िए, जिनके सामने यह क्षुद्र और असहाय हो जाती है. चीज़ों की गहराई में जा कर खोजिए: विडम्बना कभी नीचे नहीं उतरती और जब आप महानता के छोर पर पहुंचें, खोजने की कोशिश कीजिए कि क्या संसार को समझने का यह तरीका आपके अस्तित्व की एक आवश्यकता से उभरा है. गम्भीर चीज़ों के प्रभाव के सम्मुख या तो यह आपसे परे छिटक जाएगी (अगर यह आकस्मिक है) या (अगर यह स्वाभाविक है और आपकी है) शक्तिशाली हो कर एक गम्भीर उपकरण बन जाएगी और उन उपकर्णों के साथ अपनी जगह बना लेगी जिनकी मदद से आप अपनी कला को आकार देते हैं.

और दूसरी बात जो मैं आपको बताना चाहता हूं, ये रही:

मेरी सारी किताबों में से कुछ ही मुझे अनिवार्य लगती हैं, और उनमें से दो हमेशा मेरी साथ रहती हैं, चाहे मैं कहीं भी होऊं. वे हमेशा मेरी बग़ल में रहती हैं: बाइबिल और महान डेनिश कवि जेन्स पीटर जैकबसन की किताबें. क्या आप उस के काम से वाक़िफ़ हैं? उसकी किताबें खोजना आसान है क्योंकि उनमें से कुछ के काफ़ी अच्छे अनुवाद रिकाम यूनीवर्सल लाइब्रेरी ने छापे हैं. जे. पी. जैकबसन की छः कहानियों वाली नन्ही किताब और उसका उपन्यास Niels Lyhne खरीद लीजिए और पहली किताब की पहली कहानी “मोजेन्स” से शुरू कीजिए. एक समूचा संसार, ख़ुशी, सम्पन्नता और एक संसार का कल्पनातीत फैलाव
आपको अपनी आग़ोश में ले लेगा. इन किताबों के साथ कुछ दिन रहिए, उनसे वह सीखिए जो आपको लगता है सीखे जाने योग्य है लेकिन सबसे ज़रूरी बात यह कि उनसे प्यार कीजिए. यह प्रेम आपको हज़ारों हज़ार गुना बढ़कर वापस मिलेगा; आपके जीवन का जो भी बने, मैं निश्चित हूं कि यह आपके अस्तित्व के ताने-बाने में अनुभवों, खुशियों और निराशाओं के धागों बीच सबसे महत्वपूर्ण धागों में एक बनेगा.

अगर मुझे कहना होता कि रचनात्मकता के मूलतत्व, उसकी गहराई और अमरता का महानतम अनुभव मुझे किसने दिया तो मैं सिर्फ़ दो नामों का ज़िक्र करूंगा: महान, महान कवि जैकबसन और शिल्पकार अगस्त रोदां, जो आज जीवित सभी कलाकारों में श्रेष्ठतम है.

आप को सफलता मिले.

आपका

रेनर मारिया रिल्के

(फ़ोटो – मशहूर चित्रकार बैलाडीन क्लोसोव्स्का के साथ रिल्के. रिल्के और बैलाडीन की पहली मुलाक़ात १९१९ में हुई थी. इस मुलाक़ात के बाद दोनों में एक विकट क़िस्म का प्रेम-सम्बन्ध शुरू हुआ जो १९२६ में रिल्के की मृत्यु के साथ ही समाप्त हुआ. अपने पत्र-व्यवहार में रिल्के बैलाडीन को “मरलीन” नाम से सम्बोधित किया करता था. ये पत्र किताब की सूरत में रिल्के के मरने के बाद छपे. )

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