उत्तराखण्ड मूल की थियेटर आर्टिस्ट लक्ष्मी रावत देश के बड़े थियेटर ग्रुपों में शुमार ‘श्रीराम सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट’ की नयी वर्कशाप डायरेक्टर के तौर पर नियुक्त की गयी हैं. अपनी नयी भूमिका में लक्ष्मी रंगमंच के छात्रों को विभिन्न तरह के प्रशिक्षण देंगी. दिलचस्प बात यह है कि लक्ष्मी रावत ने अपने थियेटर कैरियर की शुरुआत श्रीराम सेंटर से ही साल 1999 में की थी. इस समय उन्होंने श्रीराम सेंटर से ‘टू इयर्स डिप्लोमा इन परफोर्मिंग आर्ट’ के तहत रंगमंच की बारीकियां सीखकर अपना थियेटर कैरियर शुरू किया था. लक्ष्मी रावत मूल रूप से गढ़वाल मंडल के जिला पौड़ी यमकेश्वर ब्लॉक की पट्टी उदयपुर के बणस गांव की रहने वाली हैं. (Laxmi Rawat Shriram Center)
उस समय लक्ष्मी रावत के लिए यह सब आसान नहीं था. श्रीराम सेंटर से कोर्स करने के दौरान वे ‘इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ दिल्ली में जॉब कर रही थीं और साथ में उन्हें अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी निर्वाह करना था. लेकिन कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो सब बाधाओं से पार पाना आसान हो जाता है. लक्ष्मी ने न सिर्फ 2 साल का डिप्लोमा किया बल्कि वे अपने बीच के सबसे बेहतरीन स्टूडेंट्स में रहीं. बात सिर्फ थियेटर कोर्स कर लेने तक ही नहीं रुकी. इसके बाद लक्ष्मी ने कई चर्चित नाटकों में काम किया और साल 2002 में खुद के थियेटर ग्रुप ’प्रज्ञा आर्ट्स’ की बुनियाद रखी.
‘प्रज्ञा आर्ट्स’ इस समय देश के स्थापित थियेटर ग्रुपों में से एक है. प्रज्ञा आर्ट्स के बैनर तले लक्ष्मी ने कई नाटकों का निर्देशन किया और कई में अभिनय भी किया, इनमें तीलू रौतेली, तृष्णा, जीतू बगड़वाल, चल अब लौट चलें, कै जावा भेंट आखिर, शांति विहार गली नंबर 6, क्योंकि मैं औरत हूं, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ आदि प्रमुख हैं. गौरतलब है उनके अधिकतर नाटकों का परिवेश उत्तराखंडी है. उत्तराखण्ड की वीरांगना तीलू रौतेली पर मंचित नाटक को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री समेत कई दिग्गज नेताओं और नौकरशाहों की भी सराहना मिली. लक्ष्मी रावत द्वारा निर्देशित और उन्हीं की मुख्य भूमिका वाला प्रज्ञा आर्ट्स का नाटक ’क्योंकि मैं औरत हूं’ भारत ही नहीं अन्य देशों में भी मंचित हुआ. इस चर्चित नाटक की पृष्ठभूमि दिल दहला देने वाले निर्भया काण्ड के इर्द-गिर्द रची गयी थी. लक्ष्मी द्वारा निर्देशित लोकप्रिय नाटक ‘चल अब लौट चलें’ भी प्रवासी उत्तराखंडियों के दुखों और अंतर्द्वंदों को बहुत बेहतर तरीके से रचता है.
बहुआयामी प्रतिभा की लक्ष्मी रावत वर्तमान में भी ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ में कार्यरत हैं. वे कई मास कम्युनिकेशन संस्थानों में फैकल्टी के तौर पर भी सेवाएं दे रही हैं.
कला केंद्र में काम करते हुए भी लक्ष्मी उत्तराखण्ड के लिए अपने सरोकारों को नहीं भूलती वे उस टीम की ‘असिस्टेंट कोऑर्डिनेटर’ रहीं जिसके प्रयासों की बदौलत यूनेस्को ने साल 2009 में उत्तराखण्ड की लोककला रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया. कला केंद्र में उन्होंने देश के कई लोकालाकारों के साथ काम किया है.
इस समय लक्ष्मी हिंदी समेत कई क्षेत्रीय भाषाओं में दिखाए जा रहे ‘डव’ साबुन के विज्ञापन में दिखाई देती है. जल्द ही वे अमेजन प्राइम की वेब सीरीज हश्श.. में अभिनेत्री करिश्मा तन्ना की मां की भूमिका में दिखाई देंगी. इसके अलावा पर्यटन विभाग उत्तराखण्ड के आने वाले विडियो एड की शूटिंग वे पूरी कर चुकी हैं.
अपने संस्थान, थियेटर ग्रुप व घर की जिम्मेदारियों के साथ लक्ष्मी उत्तराखण्ड में कई सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहती हैं. स्त्री शक्ति (सोच एक परिवर्तन की) कार्यक्रम के तहत वे उत्तराखण्ड के कई इलाकों में जागरूकता अभियान चला रही हैं. प्रज्ञा आर्ट्स थियेटर अवार्ड ‘पाटा’ के तहत लक्ष्मी उत्तराखण्ड के थियेटर आर्टिस्टों को हर साल सम्मानित करती हैं. प्रज्ञा थियेटर के ‘नेचर विद थियेटर’ अभियान के तहत उत्तराखण्ड के दुर्गम गांवों में पर्सनालिटी डेवेलपमेंट के कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं.
आप सोच रहे होंगे इतना करना काफी है. नहीं! लक्ष्मी रावत का ‘प्रज्ञा आर्ट्स प्रोडक्शन’ लम्बे समय से शार्ट मूवीज बना रहा है जिन्हें आप उनके यू ट्यूब चैनल में देख सकते हैं. अब जल्द ही यह बैनर उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर एक फीचर फिल्म लेकर आ रहा है. (Laxmi Rawat Shriram Center)
उत्तराखण्ड की शौर्य गाथा एक कैलेंडर में
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…