समाज

अपने खून से महात्मा गांधी को ख़त लिखकर डांडी मार्च में शामिल होने वाले उत्तराखंडी खड्ग बहादुर

डांडी-सत्याग्रह के दिन. देहरादून से गाँधी जी को एक खत मिला. पत्र मामूली स्याही से नहीं, भेजने वाले ने अपने खून से लिखा था. अहिंसा में विश्वास न होने पर भी वह रण बाँकुरा सत्याग्रह में सक्रिय भाग लेना चाहता था. अपनी जाति के कुछ लोगों का कलंक अपने लहू से धोना चाहता था क्योंकि उन लोगों ने अंग्रेजों की मदद की थी. वह अनोखा गोर्खा सरदार था – खड्ग बहादुर. गाँधी जी ने सहर्ष उन्हें आन्दोलन में भाग लेने के लिए अनुमति दे दी थी.
(Kharak Bahadur Uttarakhand Freedom Fighter)

वैसे, सालों पहले, जब वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में काननू के छात्र थे, वह वकालत सीख रहे थे. एकबार उन्होंने दिन-दहाड़े सबके सामने एक व्यापारी सेठ हीरालाल का खून कर दिया था. अपनी खुकरी से उसकी गर्दन काट दी थी क्योंकि वह बदनाम व्यापारी और उसके दलाल नेपाल से भोली-भाली खूबसूरत लड़कियों को भगा कर लाते थे और फिर उन्हें मनमाने दामों में बेच देते थे.

उन्हीं दिनों एक भले घर की लड़की को वे जैसे तैसे भगा कर लाए थे और वह लड़की सेठ हीरालाल के घर पर ही थी. खड्ग बहादुर ने उस सीधी-सादी अपरिचित अज्ञात बहन की मुक्ति के लिए उस भ्रष्ट व्यापरी का खून कर दिया था. चारों तरफ तहलका मच गया. उन पर मुकदमा चला. सभी लोग उनका बचाव चाहते थे. देश भर की महिलाओं ने उन्हें छुड़ाने के लिए जोरदार आन्दोलन चलाया. यहाँ तक कि अंग्रेज गर्वनर की पत्नी भी उसके बचाव के पक्ष में हो गई. फलस्वरूप उसे सिर्फ दो साल की सजा हुई और बाद में छोड़ दिया गया.

जेल से छूटते ही खड्ग बहादुर का सर्वत्र अभूतपूर्व स्वागत हुआ. सभी उनके दर्शन के लिए लालायित थे. ऐसा कौन सा माँ का लाल निकला, जिसने एक अज्ञात बहन के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. जेल से लौट कर वह फिर सीधे देहरादून आये और बहुत सारे गोर्खा नौजवानों को अपने साथ ‘धरासना सत्याग्रह’ में भाग लेने के लिए ले गये. ‘कराची कांग्रेस अधिवेशन’ में उन्होंने सक्रिय भाग लिया.
(Kharak Bahadur Uttarakhand Freedom Fighter)

और तब से आखिरी दम तक देश की आजादी के लिए लड़ते रहे. आंदोलनों में जम कर भाग लेते रहे. स्वाधीनता प्राप्ति के लिए वह हर साधन को ठीक समझते थे. चाहे सत्याग्रह हो या सशस्त्र क्रान्ति हो. अंग्रेज हमेशा ही उन्हें अपनी आँख की किरकिरी समझते थे. क्योंकि गोरों में बगावत के शोले भड़काने में वह जी जान से कोशिश कर रहे थे.

ब्रिटिश हकूमत किसी भी कीमत पर उन्हें पकड़ना चाहती थी. मगर वह पकड़ में नहीं आये. धर-पकड़ बड़े जोर पर थी. इसलिए वह देहरादून से जैसे-तैसे निकल कर नेपाल चले गये. लेकिन अंग्रेजों ने ऐड़ी-चोटी का जोर लगा कर उन्हें पकड़ कर चुपचाप किसी अज्ञात स्थान में ले जा कर मार डाला. उनका उन दिनों किसी को कुछ पता नहीं लगा. वह देश के लिए शहीद हो गये.
(Kharak Bahadur Uttarakhand Freedom Fighter)

पुरवासी पत्रिका के 1999 के अंक में डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ का लेख.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • कांग्रेस के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए गांधी से अनुमति प्राप्त करने के लिए पत्र !!! आश्चर्य, महान आश्चर्य, अकल्पनीय, असहनीय !!! इसी घटना से पता चलता है कि कांग्रेस और गांधी किस कदर अंग्रेजों के चापलूस थे । उस समय की जनता कांग्रेसियों की मानसिकता क्यों नहीं समझ पायी यह समझ से परे है । या कांग्रेस ने बहुरुपिया का चोला ओढ़ रखा था । जनता को स्वतंत्रता के नाम पर भ्रमित कर रखा था यही लक्षित होता है । जैसा गांधी ने मुसलिमों के खिलाफा आंदोलन को अंग्रेजों के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन कह कर जनता को भ्रमित किया था । जबकि मुस्लिमों का खिलाफा आंदोलन तुर्की के खलीफा के समर्थन में अंग्रेजों के विरुद्ध था । गांधी ने भारतीय जनता को भ्रमित करने के लिए और जनता का इस ओर से ध्यान भटकाने के लिए उसे भारत की स्वतंत्रता के लिए मुस्लिमों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्घ चलाया जा रहा खिलाफत आंदोलन का नाम दिया ।

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago