Featured

130 साल पहले बन नई थी काठगोदाम-नैनीताल रोपवे की योजना

मोटर गाड़ियों के आने के काफी पहले काठगोदाम और नैनीताल के बीच यातायात की समस्याओं से निबटने के लिए अंग्रेजों द्वारा अनेक योजनाएं बनाई गयी थीं. इनमे सबसे पहली थी इन दो जगहों के बीच सामान के ढुलान के लिए तार वाले रोपवे निर्माण की योजना. मई 1887 में नैनीताल के निवासी मिस्टर हाना द्वारा इसका प्रस्ताव रखा गया था. 1888 की शुरुआत में नैनीताल रोपवे कम्पनी लिमिटेड का गठन हो गया था जिसमें मिस्टर हाना को मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया. (Kathgodam Nainital Old Ropeway Scheme)

निर्माण की अनुमानित लागत रु. 1,80,000 थी जबकि इस से हर साल रु. 25,000 की आमदनी होनी थी. कंपनी ने सरकार से अनेक तरह की छूट देने का अनुरोध किया. इनमें से कुछ मांगों को अस्वीकार कर दिया गया अलबत्ता सरकार ने ज्यादातर मांगें मान लीं. कम्पनी को मार्ग का अधिकार, मुफ्त पानी की सुविधा और दस एकड़ तक जमीन मुफ्त दिए जाने की मांगें मान कली गईं. कंपनी को म्युनिसिपल बोर्ड द्वारा तीन भूखंड एलॉट कर दिए गए जिनके बदले एक रुपया किराया दिया जाना तय हुआ. अप्रैल 1890 में ब्रूअरी के समीप मशहूर बैंकर लाला दुर्गा लाल साह से एक प्लाट खरीदा गया. (Kathgodam Nainital Old Ropeway Scheme)

बहुत जल्दी इस बात पर संदेह व्यक्त किया जाने लगा कि कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर रोपवे के काम को पूरा कर भी पाएगा या नहीं. जुलाई 1890 में दो डायरेक्टरों ने कंपनी के शेयरधारकों को इस बाबत सूचित किया. इसके बाद मिस्टर हाना से कहा गया कि वे निर्माण कार्य की अपनी सुनिश्चित योजना प्रस्तुत करें. उन्होंने इस के लिए कुछ समय माँगा ताकि वे इंग्लैण्ड जाकर कुछ विशेषज्ञों से मिल सकें. उन्हें इसकी इजाजत दे दी गयी. इस दौरान सारे निर्माण कार्यों को बंद कर दिया गया.

इस बाद भी मिस्टर हाना की तरफ से कोई प्रस्ताव नहीं आये क्योंकि उनकी मानसिक स्थिति खराब हो गयी और वे अक्षम हो गए. रोपवे की योजना को इस से बहुत गहरा धक्का लगा. सरकार ने अपनी तरफ से सारी सहायता की थी लेकिन जनता का विश्वास डिग गया था और कोई भी इस कम्पनी को पुनर्जीवित करने को आगे नहीं आया.

कम्पनी ने स्वयं को दीवालिया घोषित कर लिया. उसे दी गयी जमीन वापस ले ली गयी. कोई बीस साल बाद इस योजना को दोबारा शुरू करने के हलके-फुल्के प्रयास हुए. मार्च 1908 में इंग्लैण्ड से किन्हीं मिस्टर शॉ ने नैनीताल के म्युनिसिपल बोर्ड से नैनीताल और काठगोदाम के बीच यातायात के आंकड़ों की पुष्टि करने का अनुरोध किया और सेवानिवृत्त हो चुके एक इंजीनियर से संपर्क करवाने की बात भी की. म्युनिसिपल बोर्ड का जवाब बहुत उत्साहवर्धक नहीं था और रोपवे निर्माण का मामला वहीं समाप्त हो गया.

[स्रोत: 1928 में नैनीताल के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जे. एम. क्ले द्वारा प्रकाशित किताब ‘नैनीताल: अ हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव अकाउंट’ के पहले अध्याय से जिसे नैनीताल के तत्कालीन असिस्टेंट कमिश्नर एल. सी. एल. ग्रिफिन, ICS द्वारा लिखा गया था.]

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

5 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

6 days ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

6 days ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago

विसर्जन : रजनीश की कविता

देह तोड़ी है एक रिश्ते ने…   आख़िरी बूँद पानी का भी न दे पाया. आख़िरी…

2 weeks ago