समाज

कंचन चौधरी भट्टाचार्य और माखन सिंह का किस्सा

कल रात दिवंगत हुई पूर्व डीजीपी कंचन चौधरी भट्टाचार्य ने आज से कोई दो वर्ष पहले अगस्त 2017 में सेंट पॉल इंस्टीट्यूट ऑफ़ कम्यूनिकेशन एजूकेशन, मुम्बई में छात्रों को संबोधित किया था. अपनी इस बातचीत में उन्होंने अपने परिवार को याद करते हुए बताया था कि किस तरह उनके माता-पिता को अपनी दो बेटियों को साथ लेकर अपना पारिवारिक घर छोड़ना पड़ा था. इसके बाद उनके पिता के खेती शुरू की लेकिन जैसे ही उनके खेतों से मुनाफ़ा मिलने लगा शरारती तत्वों ने उनकी जमीन छीन ली थी. (Kanchan Chaudhary Makhan Singh Anecdote)

इस घटनाक्रम के बाद पुलिस स्टेशनों, नेताओं के दफ्तरों के चक्करों  और न्याय की मांग के लिए लिखे जाने वाले पत्रों का अंतहीन और निरर्थक सिलसिला चला. किसी भी चीज का कोई नतीजा नहीं निकला और इस से गहरे प्रभावित हो कर कंचन चौधरी ने इन्डियन पुलिस सर्विस ज्वाइन करने का मन बनाया. (Kanchan Chaudhary Makhan Singh Anecdote)

“मुझे कोई रेकॉर्ड नहीं बनाने थे,” उन्होंने कहा, “वे तो बनते चले गए. मर्दवाद और पितृसत्ता के गढ़ यूपी से पहली महिला आईपीएस, देश में दूसरी महिला आईपीस (किरण बेदी पहली थीं), किसी भी राज्य (उत्तराखंड) की पहली महिला डीजीपी. लेकिन मैं जहां भी गई मैंने अपनी पूरी कोशिश की कि मैं उन छोटे लोगों के लिए कुछ कर सकूं जो सबसे निहत्थे हैं. और मेरे प्रयासों को सराहा गया.”

जब उनसे एक छात्रा ने पूछा कि आज के माहौल में जब पत्रकार तक खुली हिंसा के शिकार हो रहे हैं, एक नागरिक अपने को सुरक्षित कैसे रख सकता है. उन्होंने उत्तर दिया था – “साहस ही इकलौता रास्ता है. जब सारी चीजें आपके खिलाफ खड़ी हों तो भी आपने मैदान नहीं छोड़ना चाहिए!”

अपनी बातचीत में शारीरिक सुरक्षा को लेकर अपने भय के बारे में बात की और बताया कि उन्होंने कैसे उन पर विजय पाई. “दंगों पर काबू पाने का मेरा अनुभव मेरे द्वारा खुद बनाया गया. मेरे सीनियर्स मुझे बचाने की कोशिश कर रहे थे. खूब चीख-पुकार मची हुई थी और आंसू गैस भी छोड़ी जा रही थी. मैं बहुत डर  गयी थी. फिर मैंने अपने साहस को अपने दोनों हाथों से थामा और भीड़ में घुस गयी. उसके बाद आप सोचना बंद कर देते हैं और आपके भीतर काम को पूरा करने का जज्बा घुस जाता है. क़ानून और व्यवस्था बनाना उस समय मेरा काम था.”

एक और छात्रा ने उनसे पूछा – “क्या आपने कभी अपने सरकारी हथियार का इस्तेमाल किया?” कंचन ने कहा कि हां और उसके बाद एक स्थानीय गुंडे माखन सिंह का किस्सा सुनाया जिसने उनका मखौल उड़ाते हुए कहा था कि उसके जैसी दुबली और छोटी सी लड़की उसका क्या बिगाड़ सकती है. बाद में उसके साथ  हुए एक पुलिस एन्काउंटर में कंचन ने भी गोली चलाई. “मुझे नहीं पता मेरी गोलियां उसे लगीं या नहीं लेकिन माखन सिंह को उसके सवाल का जवाब मिल गया होगा!”

(वरिष्ठ पत्रकार कैरल आन्द्रादे के एक पुराने आलेख के आधार पर.)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

शराब की बहस ने कौसानी को दो ध्रुवों में तब्दील किया

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली कौसानी,आजादी आंदोलन का गवाह रहा कौसानी,…

2 days ago

अब मानव निर्मित आपदाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं : प्रोफ़ेसर शेखर पाठक

मशहूर पर्यावरणविद और इतिहासकार प्रोफ़ेसर शेखर पाठक की यह टिप्पणी डाउन टू अर्थ पत्रिका के…

3 days ago

शराब से मोहब्बत, शराबी से घृणा?

इन दिनों उत्तराखंड के मिनी स्विट्जरलैंड कौसानी की शांत वादियां शराब की सरकारी दुकान खोलने…

3 days ago

वीर गढ़ू सुम्याल और सती सरू कुमैण की गाथा

कहानी शुरू होती है बहुत पुराने जमाने से, जब रुद्र राउत मल्ली खिमसारी का थोकदार…

3 days ago

देश के लिये पदक लाने वाली रेखा मेहता की प्रेरणादायी कहानी

उधम सिंह नगर के तिलपुरी गांव की 32 साल की पैरा-एथलीट रेखा मेहता का सपना…

4 days ago

चंद राजाओं का शासन : कुमाऊँ की अनोखी व्यवस्था

चंद राजाओं के समय कुमाऊँ का शासन बहुत व्यवस्थित माना जाता है. हर गाँव में…

5 days ago