केदार घाटी का गाँव ‘आश्रम’. यहीं परमेश्वरानन्द और उनकी सती-साध्वी पत्नी पार्वती रहती थी. सुबह-शाम अपने इष्टदेव की आराधना करते और दिनभर अपनी खेती-बाड़ी. परिवार में कोई तीसरा नहीं था. घर में अनाज के ढेर. दूध-दही की भरमार. सब कुछ, बस, कमी थी तो एक, कोई सन्तान नहीं थी.
(Kalidas Love Story in Uttarakhand)
अधेड़ उम्र हो गई. साथियों के नाते-पोते हो गए, पर बेचारे परमेश्वर का कुछ भी नहीं. यही चिन्ता खाए जा रही थी. दोनों ने पूजा-पाठ किए. तीर्थयात्राएँ की. देवी-देवताओं की मनौतियाँ की, मगर बात बनी नहीं.
एक दिन गाँव में एक महात्मा आए. परमेश्वर ने महात्मा के चरण छूकर प्रणाम किया. अपना दुखड़ा रोया. महात्मा ने कहा – काली माँ की पूजा करो. तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी.
पति-पत्नी ने व्रत रखे. अनुष्ठान किए. कालीमठ में नवरात्रों में जमकर पूजा की. एक रात परमेश्वर ने सपने में अपनी गोदी में एक बहुत प्यारा-सा बच्चा देखा पर बच्चे को कोई बाबा जबर्दस्ती खींच कर ले गया. सपना टूटा तो वह बहुत घबराए. फिर जैसे-तैसे अपने को समझाया-बुझाया. सपना तो सपना ही है.
दिन पंख लगाकर उड़ते गए और एक दिन परमेश्वर का सपना मुस्कराया. पुत्र का जन्म. जन्मोत्सव की खुशियाँ. बहुत ही प्यारा सुदर्शन बच्चा. पति-पत्नी फूले नहीं समाए. घर में बहार-सी आ गई. परन्तु कभी-कभी सपना याद आता तो रोंगटे खड़े हो जाते. हंसी-खुशी में चार साल योंही उड़ गए, लेकिन होनी कौन टाले!
(Kalidas Love Story in Uttarakhand)
एक दिन गांव में अचानक एक ऐसा अघोरी बाबा आया और उसने बच्चे का हाथ जो पकड़ा तो छोड़ा ही नहीं. पति-पत्नी ने विनती की. हाथ जोड़े. आप जो चाहें ले लीजिए मगर बच्चे का हाथ छोड़ दीजिए. गाँव वालों ने भी बाबा को बहुत समझाया-बुझाया, लेकिन बाबा टस-से-मस न हुए. बच्चा रोता-चिल्लाता रहा. इसी सदमें से परमेश्वर के प्राण पखेरू एकाएक उड़ गए. तब जाकर अघोरी ने बच्चे का हाथ छोड़ा. कुहराम मच गया. तीन दिन के बाद पार्वती भी चल बसी. अब रह गया अनाथ बालक.
गाँव वालों ने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला. वह सबकी आँखों का तारा बन गया. वह गुनगुनाता तो गांव के बच्चे-बूढे, स्त्री-पुरुष, सभी गद्गद् हो जाते थे. वह बातें करता तो लगता फूल झर रहे हैं. वह घंटों कालीमठ में बैठा रहता. कभी चोटियों पर बादलों की तरह घूमा करता. कभी काली गंगा के किनारे तो कभी जंगल में योंही भटकता रहता. उसके कंठ से गीतों की गंगा बहती तो सब लोट-पोट हो जाते.
गाँव से थोड़ी दूर पर वादियों (विद्याधरों) की बस्ती थी. वादी (विद्याधर) गायक कलाकार और आशुकवि होते. वे गीत गा-गाकर, नाच-नाचकर, जन-जन का मनोरंजन करते और ऐसे ही उनकी जीविका चलती. महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर फटाफट गीत भी रचते. वादियों की लड़की थी रेवती. रेवती क्या थी, बस, रूप की परी. अप्सरा. वसन्त की बहार. हिमालय की भीनी-भीनी बयार. लम्बी छरहरी देहयष्टि. खुबानी-जैसे लाललाल गाल. मुणाल जैसी गोल-गोल आँखें. दाडिम के दानों की तरह दमकती दन्तपंक्ति. छमछम नाचती तो तहलका मच जाता.
(Kalidas Love Story in Uttarakhand)
कालिदास रेवती पर आसक्त हो गए. रेवती को भी और क्या चाहिए था. उसकी सालों की साध पूरी हो गई. वह जब-तब, जहाँ-तहाँ, कालिदास के गीत गुनगुनाती रहती. हर घड़ी हर पल, उसकी आँखों में कालिदास. दोनों एक दूसरे के दीवाने. कभी नदी के किनारे, कभी पहाड़ी की ओट में, कभी जंगल के कोने में, कभी किसी गिरि-कन्दरा में, कभी झरने के पास, कभी खेतों में, चुपके-चुपके, चोरी-छिपे मिलते ही रहते. दोनों को कोई सुध-बुध नहीं. बस, घंटों मंत्रमुग्ध होकर. एक-दूसरे को निहारते रहते. फलस्वरूप दोनों गाँववालों की आँख की किरकिरी बन गए. दण्डस्वरूप कालिदास को गाँव-निकाला’ हो गया. वह अपने गांव में, किसी भी कीमत पर, नहीं रह सकता. गांव के बड़े-बूढ़ों का फैसला था.
बस, कालिदास रेवती के बिछोह में इधर-उधर भटकता रहा. तड़पता-छटपटाता रहा. और कुछ ही दिनों के बाद कालिदास को जब यह मालूम हुआ कि रेवती भी गाँव से एकाएक गायब हो गई, तब तो कालिदास को चैन कहां. भूख-प्यास कहाँ. कालिदास ने केदार-घाटी का चप्पा-चप्पा छान मारा. आज यहां, कल वहाँ. बस, रात-दिन रेवती के ध्यान में खोया-खोया, परन्तु वह कहीं नहीं मिली. हिमवन्त के गाँव-गाँव, जंगल-जंगल, छान मारे, मगर रेवती गई सो गई.
(Kalidas Love Story in Uttarakhand)
–डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’
डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ का यह लेख ‘महाकवि कालिदास का जन्मस्थान: गढ़वाल’ पुरवासी पत्रिका के सोलहवें अंक में प्रकाशित हुआ था. यह लेख उसी लेख का हिस्सा है.
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