बॉलीवुड के रुपहले परदे पर उत्तराखण्ड के कई कलाकारों ने खुद को साबित कर अच्छा नाम कमाया है. सामान्य दर्शक के रूप में परदे के पीछे की दुनिया से हम बेखबर ही रहते हैं. इस करिश्माई सिनेमा को बनाने में परदे के पीछे कई लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. परदे के पीछे के ऐसे ही कलाकारों में शामिल हैं उत्तराखण्ड के नितेश बिष्ट. कम उम्र और थोड़े ही समय में नितेश ने बॉलीवुड की दुनिया में जो मुकाम बनाया है उसकी कहानी भी किसी फ़िल्मी पटकथा से कम नहीं है. शौक के लिए जुनून हो तो कुछ भी मुमकिन है, कुछ ऐसा ही है नितेश का अब तक का सफ़र.
पहली झलक में सीधे, सरल पहाड़ी दिखने वाले नितेश से बात करते हुए आप उनके व्यक्तित्व की गहराइयों से परिचित होते जाते हैं. नितेश बिष्ट का बचपन और कैशोर्य अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा में ही बीते. पिता भूपाल सिंह बिष्ट जल विभाग में कार्यरत थे और माँ साधारण गृहिणी थीं. राजकीय इंटर कॉलेज में बारहवीं की पढ़ाई करने तक नितेश एक सामान्य युवा थे – विज्ञान की पढ़ाई कर अपना एक सामान्य करियर बनाने की इच्छा रखने वाले नौजवान. इतना जरूर था कि दादा, पिता और परिवार के संगीत, कला प्रेमी होने की वजह से बचपन से ही संगीत का शौक पालते थे. गीत, संगीत में रूचि की वजह से स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी भी करते थे.
जैसा कि उत्तराखण्ड के दुर्गम गाँवों-कस्बों के सभी नौजवान करते हैं 2007 में स्कूली शिक्षा पूरी कर आगे की पढाई के लिए नितेश हल्द्वानी आ गए . यहाँ पहुंचकर एमबी कॉलेज में बीएससी में दाखिला लिया और शिक्षक बाने का विचार पाले ट्यूशन भी पढ़ने लगे. बचपन से ही संगीत में रुचि होने की वजह से नितेश कई साज बजा लिया करते थे मगर किसी में भी महारत हासिल नहीं थी. कॉलेज के संगीत कार्यक्रमों में भागीदारी के दौरान नितेश को लगा कि उन्हें किसी एक वाद्य बजाने में पारंगत होने की जरूरत है. उन्होंने बांसुरी को चुना और बांसुरी की बुनियादी शिक्षा हासिल करने में जुट गए. विज्ञान के विद्यार्थी होने के बावजूद संगीत विभाग के शिक्षकों ने उनका मनोबल बढ़ाया और अपेक्षित सहयोग भी किया. कॉलेज की एक प्रतियोगिता में संगीत विभाग के प्रतिभागियों से बेहतर प्रदर्शन कर विजेता बनने ने इन्हें संगीत साधना के लिए प्रेरित किया.
कॉलेज की ओर से कई संगीत कार्यक्रमों और राष्ट्रीय यूथ फैस्टिवल में भी भागीदारी की. 2008 में नितेश और इनके कुछ मित्रों ने ‘वरेण्यम’ नाम से एक ग्रुप बनाया. वरेण्यम का उद्देश्य था कला और संगीत में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना. बीएससी कर लेने के बाद अब नितेश के सामने यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि वे अपनी अकादमिक योग्यता के हिसाब से कोई करियर चुनें या अपनी रुचि के अनुरूप. जाहिर है इस वक़्त तक संगीत में नितेश की रुचि उनके जुनून का रूप लेने लगी थी.
उन्होंने तय किया कि वह ऐसा करियर चुनेंगे जिसमें उनकी पढ़ाई और शौक दोनों का लक्ष्य पूरा होता हो. मित्रों-शुभचिन्तकों से मशविरा लेने के बाद नितेश ने मुम्बई की राह पकड़ ली. 2012 में मुम्बई की ‘साउंड आइडियाज अकादमी’ में साउंड इंजीनियरिंग के कोर्स में दाखिला लिया और हरिप्रसाद चौरसिया के गुरुकुल में बांसुरी में भी पारंगत होने लगे. ‘साउंड आइडियाज अकादमी’ के अपने बैच में स्टूडेंट अचीवर के रूप में पुरस्कृत हुए. सुरों पर अच्छी पकड़ और साउंड इंजीनियरिंग की अच्छी जानकरी की वजह से कोर्स पूरा करते ही नितेश को बॉलीवुड के बेहतरीन संगीतकार, गायक, साउंड इंजीनियर राम सम्पत के स्टूडियो ‘ओम ग्रोन म्यूजिक’ में साउंड इंजीनियर का काम मिल गया. राम सम्पत 17 साल की उम्र से विभिन्न ब्रांडों के लिए हिट विज्ञापन जिंगल्स बनाने के लिए भी जाने जाते हैं. एयरटेल, डोकोमो, थम्सअप, पेप्सी तथा टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसे चर्चित जिंगल्स बनाने वाले राम सम्पत को जिंगल किंग भी कहा जाता है. यहाँ नितेश को बॉलीवुड के कई बेहतरीन गायकों और संगीतकारों के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखने का मौक़ा मिला.
बहरहाल, राम सम्पत जैसे काबिल उस्ताद के सान्निध्य में काबिल नितेश का हुनर निखरता गया. आज उनकी गिनती नयी पीढ़ी के कामयाब साउंड इंजीनियरों में की जाती है. नितेश ने भूतनाथ रिटर्न, पुरानी जींस, इक्कीस तोपों की सलामी, बंगिस्तान, रमण राघव 2.0 और रईस जैसी फिल्मों के लिए म्यूजिक मिक्सिंग का काम किया है. रईस मूवी के लैला ओ लैला गाने के लिए ‘इंडियन रिकार्डिंग आर्ट्स अवार्ड’ (IRRA) द्वारा साल 2017 में नितेश को प्रोमिसिंग टेलेंट इन साउंड इंजीनियरिंग का पुरस्कार भी दिया गया है. छोटे परदे के लिए भी नितेश सत्यमेव जयते, सोनी बीबीसी अर्थ, सोनी एलई प्लेक्स, स्टार भारत, एनिमल प्लेनेट आदि कार्यक्रमों की म्यूजिक मिक्सिंग कर चुके हैं. अमेजन, फ्लिप्कार्ट, डटसन रेडिगो, थम्स-अप, क्लोज-अप, मास्टर कार्ड, एयरटेल और उजाला सुप्रीम के विज्ञापनों की म्यूजिक मिक्सिंग में भी नितेश की कारीगारी शामिल है. इसके अलावा नितेश हिंदी, अंग्रेजी, कुमाऊँनी, मराठी, उड़िया, पंजाबी, राजस्थानी और गुजराती भाषाओँ के कई संगीत अलबमों के लिए भी म्यूजिक मिक्सिंग कर चुके हैं.
स्वास्थ्य कारणों से छुट्टी में रहने के दौरान आजकल नितेश दिवंगत कुमाऊंनी लोकगायक पप्पू कार्की के हल्द्वानी स्थित स्टूडियो की कमान संभाले हुए हैं. इस दौरान वे हल्द्वानी में रहकर स्तरीय और अर्थवान संगीत की रचना कर रहे हैं. एक साउंड इंजीनियर के रूप में नितेश की बॉलीवुड में शानदार शुरुआत बताती है कि उनका मुकाम काफी ऊँचा होने वाला है. पहाड़ का नाम रोशन करते नितेश उत्तराखण्ड के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनेंगे.
(काफल ट्री के लिए नितेश बिष्ट से सुधीर कुमार द्वारा की गयी बातचीत के आधार पर)
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…