ग्वालियर के रूप सिंह स्टेडियम का नाम एक महान हॉकी प्लेयर के नाम पर रक्खा गया. रूप सिंह भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के भाई थे.
रूप सिंह हॉकी के शानदार लेफ़्ट-इन प्लेयर थे. जो गेंद को गोली की स्पीड से गोल पोस्ट में दागने में यकीन करते थे. उनकी लाजवाब ड्रिब्लिंग के सामने विपक्षी खिलाडियों को गेंद के करीब भी नहीं फटकने देती थी. उनकी बिजली जैसी गति के साथ मैदान में की जाने वाली चपलता का कोई सानी नहीं था. उनसे पार पाना किसी खिलाडी के बस की बात नहीं थी. उनके शॉर्ट कॉर्नर अचूक हुआ करते थे. कॉर्नर को गोल में तब्दील कर देने का उनका हुनर बेमिसाल था.
ध्यानचंद ने भी एकाधिक बार रूप सिंह को खुद से बेहतर हॉकी खिलाड़ी बताया. ध्यान चंद को जिन एंगलों से गोल मारने में दिक्कत होती थी, उन जगहों से गोल मारने में रूप सिंह का कोई मुकाबला नहीं था.
1936 के बर्लिन ओलंपिक में जब भारत चैम्पियन बना तब ध्यान चंद और रूप सिंह दोनों ने ही कुल ग्यारह-ग्यारह गोल किये थे. म्यूनिख़ ओलंपिक स्टेडियम में एक सड़क का नाम रूप सिंह के नाम पर रख दिया गया था. रूप सिंह इसे देखने के लिए नहीं पहुँच पाए थे, तब ओलंपिक कमेटी ने रूप सिंह को उनके नाम पर बनाई गयी सड़क दिखाने के लिए म्यूनिख़ ओलम्पिक स्टेडियम का नक्शा भेजा.
रूप सिंह को देश और इंडियन हॉकी फेडरेशन ने वह मान नहीं दिया जिसके वो हक़दार थे. उनकी माली हालत बेहद खराब रही. अपनी बीमारी के इलाज के लिए उन्हें अपने गोल्ड और सिल्वर मेडल तक बेचने पड़े थे.
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