ऐसा कई बार हुआ है कि बोलिंग टीम सामने वाली के छक्के छुड़ा कर शुरुआती छः-सात विकेट सस्ते में निबटा लेती है, लेकिन पीछे वाले बल्लेबाज़ यानी टेल एन्डर्स भले भले गेंदबाज़ों की नाक में दम कर देते हैं और मैच का परिणाम कुछ का कुछ हो जाता है. मिसाल के तौर पर बैंगलोर में 2008 में ड्रा हुए पहले भारत-आस्ट्रेलिया टेस्ट में पहली पारी में २३२ पर सात विकेट गिर जाने के बाद भारत की हार लगभग सुनिश्चित हो गई थी. हरभजन सिंह और ज़हीर ख़ान ने किसी चमत्कार की तरह हाफ़ सैंचुरियां मार कर मैच बचा लिया. ज़रा सोचिए अगर भारत ढाई सौ पर सिमट गया होता तब क्या होता.
मुझे अपने बचपन में रेडियो कमेन्ट्री पर अपने देश की महान स्पिन-चौकड़ी की फुस्स बल्लेबाज़ी के बारे में तमाम लतीफ़े सुनने को मिला करते थे. अगर सामने वाली टीम ने भारत के छः विकेट निकाल लिये तो समझिये अगले दस-बारह रन के भीतर पूरी टीम पैविलियन के भीतर होती थी. लेकिन यही बिशन सिंह बेदी और श्रीनिवास वेंकटराघवन कभी कभार चौके-छक्के मारते हुए हाफ़-सैंचुरियां भी स्कोर कर जाते थे. यानी बल्लेबाज़ी की दुम का कभी कोई भरोसा नहीं रहता.
वन डे क्रिकेट का पहला विश्व कप १९७५ में इंग्लैंड में खेला गया था. क्लाइव लायड के धुरन्धरों को पहले ही से जीत का दावेदार माना जा रहा था. और यह पूर्वानुमान सच साबित भी हुआ पर सेमीफ़ाइनल स्टेज से पहले वेस्ट इंडीज़ ने एक ऐसा ग्रुप मैच जीता था जिसे वे तकरीबन हार गए थे. इस मैच को हारने की सूरत में यह भी संभव था कि कप जीतना तो दूर वेस्ट इंडीज़ सेमीफ़ाइनल तक न खेल पाती.
११ जून १९७५ को एजबेस्टन में क्लाइव लायड की टीम माज़िद खान की कप्तानी में उतरी पाकिस्तान के सामने थी. एन्डी राबर्टस, कीथ बायस और बर्नार्ड जूलियन जैसे दिग्गज गेंदबाज़ों का बहादुरी से मुकाबला करते हुए पाकिस्तान माज़िद खान, मुश्ताक मोहम्मद और स्टाइलिश वसीम राजा के अर्धशतकों की बदौलत साठ ओवर्स में सात विकेट पर २६६ रन बनाने में कामयाब रहा. इत्तफ़ाक से आलराउन्डर के रूप में खेलने उतरे जावेद मियांदाद ने इसी मैच से अपने वन-डे करियर का आग़ाज़ किया था. लेकिन राय फ़्रेडरिक्स, ग्रीनिज, कालीचरण, रोहन कन्हाई, स्वयं लायड और किंग रिचर्डस जैसे नामों के लिए यह कोई स्कोर नहीं था.
लेकिन क्रिकेट को अनिश्चितताओं का खेल यूं ही नहीं कहा जाता. सरफ़राज़ नवाज़ ने अपनी तूफ़ानी रफ़्तार का वो कहर बरपाया कि सौ रन से पहले वेस्ट इंडीज़ के पांच खिलाड़ी आउट हो गए थे. केवल लायड डटे हुए थे, मगर १५१ पर उनके आउट होने और उसके बाद १६६ पर आठवां विकेट गिर जाने पर पाकिस्तानी टीम जश्न के मूड में आ गई थी.
विकेटकीपर डेरेक मरे जैसे तैसे एक छोर थामे हुए थे. नम्बर दस पर खेलने आये बैनबर्न होल्डर के साथ उन्होंने ३७ रन जोड़े और स्कोर दो सौ पार पहुंचाया. आख़िरी बल्लेबाज़ के रूप में जब एन्डी राबर्टस आए तो जीतने के लिए ६४ रनों की ज़रूरत थी. यह बहुत मुश्किल लक्ष्य था जिसे सरफ़राज़ नवाज़ की गेंदबाज़ी ने तकरीबन असंभव बना दिया था.
राबर्टस ने न केवल डेरेक मरे का साथ दिया, उन्होंने कुछ क्लासिकल शाट्स भी खेले और अड़तालीस गेंदें खेल कर २४ रन भी बनाए. आखिरी ओवर में तीन रन चाहिये थे. माजिद खान की समझ में कुछ नहीं आ रहा था और उन्होंने राबर्टस को किसी भी कीमत पर आउट करने के अपने आखिरी प्रयास के तौर पर बल्लेबाज़ वसीम राजा को बाल थमाई. हुआ कुछ नहीं! चौथी गेंद पर वेस्ट इंडीज़ ने जीत हासिल कर ली.
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