इसमें दो राय नहीं कि कहानी हिंदी ही नहीं विश्व साहित्य की ऐसी केंद्रीय विधा है जो अधिसंख्य पाठकों को सर्वाधिक आकर्षित, रोमांचित, संवेदित एवं प्रेरित करती है. वस्तुतः सर्वाधिक सुनाई, लिखी एवं पढ़ी जाती है. बात यदि हिंदी कहानी की की जाय तो इसकी सौ-सवा सौ साल के आसपास की विकास यात्रा का इतिहास निश्चय ही बेहद समृद्ध है, जिसे बेहतर समझने के पश्चात कहानी को पढ़ने, समझने व लिखने का आनंद कई गुना अधिक हो जाता है. हिंदी कहानी और उसकी आलोचना पर पर्याप्त अध्ययन उपलब्ध है किंतु अलग-अलग टुकड़ों में कहानी संग्रहों की समीक्षा, किसी दशक, किसी कहानीकार या किसी आंदोलन विशेष पर केंद्रित. (Hundred years of Hindi Story)
ऐसे में कहानीकार दिनेश कर्नाटक की पुस्तक “हिंदी कहानी के सौ साल तथा भूमंडलोत्तर कहानी” हिंदी कहानी की सौ साल लंबी वैविध्यपूर्ण यात्रा को उसकी परंपरा, प्रतिमानों एवं रीति के साथ एक जगह पर एक जिल्द में उपलब्ध कराती है. दिनेश कर्नाटक ने अपने इस अध्ययन में हिंदी कहानी के सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक पहलुओं को एक साथ पकड़ने का सफल प्रयास किया है. उन्होंने दो हिस्सों में अपने इस अध्ययन को प्रस्तुत किया है. पहले हिस्से में जहां उन्होंने कहानी के वितान पर एक नजर डाली है, कहानी की परंपरा और परंपरा के प्रतिमानों का विश्लेषण किया है वहीं कहानी के सौंदर्य शास्त्र के प्रश्न पर भी मंथन किया है.
दूसरे हिस्से में उनका अध्ययन भूमंडलोत्तर कहानी (नई कहानी) पर केंद्रित है जिसमें उन्होंने भूमंडलोत्तर कहानी की पृष्ठभूमि, परिदृश्य, आयाम के साथ परंपरा के बरक्स नई कहानी को विश्लेषित किया है.
‘कहानी का आसमान’ अध्याय में लेखक ने कहानी को साहित्य की आदि विधा मानते हुए रेखाओं, चित्रों, संकेतों के माध्यम से मनुष्य द्वारा अपनी कथा कहने की परंपरा से लेकर अद्यतन कहानी के विकासक्रम का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है. वैश्विक, यूरोपीय एवं भारतीय कथा साहित्य का कालक्रमानुसार तुलनात्मक अध्ययन पाठकों के लिए उपयोगी है, सो उल्लेखनीय है.
‘कहानी का सौंदर्यशास्त्र’ अध्याय में रचना प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की गई है. कहानी के सौंदर्य शास्त्र के प्रश्न का तमाम आलोचकों की टिप्पणी के आलोक में विश्लेषण करते हुए उन्होंने तमाम उपयोगी निष्कर्ष प्राप्त किए हैं. मसलन शास्त्र का आग्रह सामंती मूल्यों का प्रतीक है. शास्त्र एक रीति है, एक खूंटा है, जबकि कहानी की सार्थकता रीतिमुक्त होने में है. नई बनी समझ के अनुसार कहानी- पात्र, चरित्र-चित्रण, संवाद, कथा शिल्प, भाषा-शैली, कथानक तथा उद्देश्य- इन सात तत्वों से कहीं अधिक होती है. शिल्प की नवीनता पाठक को नए अर्थ और नए भावबोध की दुनिया में ले जाती है. सिर्फ मूल्य और वाद के आधार पर प्रासंगिक रचनाकर्म संभव नहीं सो, लेखक की प्रतिबद्धता किसी विचारधारा के वजाय अपने समय और समय के जीवन से होनी चाहिए.
इसे भी पढ़ें : टिकटशुदा रुक्का : जातीय विभेद पर टिके उत्तराखंडी समाज का पाखण्ड
अगला अध्याय ‘हिंदी कहानी की परंपरा’ है. 1857 की क्रांति से लेकर आगे की राजनैतिक, सामाजिक दशाओं के प्रभाव में हिंदी गद्य और हिंदी पत्र पत्रिकाएं आगे बढ़ीं और हिंदी कहानी भी अपने जन्म के लिए छटपटाती रही. जनवरी 1900 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित किशोरी लाल गोस्वामी की ‘इंदुमति’ को हिंदी की पहली कहानी माना गया. अब अधिसंख्य विद्वान 1901 में प्रकाशित माधव राव सप्रे की ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को नई कहानी की कसौटियों के आधार पर हिंदी की पहली कहानी मानते हैं. लेखक का मानना है कि हिंदी कहानी अपने आरम्भ के साथ ही अपनी परंपरा से प्राप्त पहचान से जूझती रही. आख्यायिका, गल्प, छोटी कहानी से कहानी नाम पाने में इसे तीन दशक लग गए. आरंभिक काल (1900-1920), प्रेमचंद-प्रसाद युग (1921-1950), कहानी आंदोलनों के दौर (1951-1975) और समकालीन कहानी (1975-2000) के दौरान कहानी की परंपराओं के परिचालित, परिवर्तित और परिवर्धित होने का विस्तृत विवरण इस आलेख में उपलब्ध है. परंपरा के प्रतिमान यथा -कथ्य व संवेदना, रूप व शिल्प, भाषा आदि में कालक्रमानुसार कब और कैसे किन स्थितियों में क्या बदलाव आए, का विस्तृत विवरण पहले हिस्से के अंतिम अध्याय में पाठकों को मिलता है.
भूमंडलोत्तर कहानी के विश्लेषण को पाठकीय दृष्टि से में इस पुस्तक का दूसरा हिस्सा कहना पसंद करूँगा. भूमंडलोत्तर कहानी की बहुत ही व्यवस्थित समीक्षा यह हिस्सा हमारे सामने रखता है. बीसवीं सदी के अंतिम दशक में भूमंडलोत्तर कहानीकार हिंदी कहानी परिदृश्य में सामने आए. दिनेश कर्नाटक अस्सी के दशक के आतंकवाद, इन्दिरा गांधी हत्याकांड, सोवियत संघ के विघटन, मंडल कमीशन की सिफारिशों, आडवाणी की रथयात्रा, कश्मीरी पंडितों के पलायन, राजीव गांधी की हत्या, नरसिम्हा राव सरकार की नई आर्थिक नीतियों और बाबरी मस्जिद विध्वंस को भूमंडलोत्तर कहानी की पृष्ठभूमि के रूप में देखते हैं. लेखक ने भूमंडलोत्तर कहानी के परिदृश्य में तमाम पत्रिकाओं, उनके कहानी विशेषांकों, कहानी प्रतियोगिताओं और उनके माध्यम से उभरे 67 कहानीकारों सहित उस दौर की चर्चित कहानियों को भी रेखांकित किया है. भूमंडलोत्तर कहानी की प्रमुख विशेषताओं यथा लंबी कहानी, मध्यवर्ग केंद्रित कहानी, अस्मितावाद, समय चेतना, संरचनात्मक बदलाव, चरित्रों के स्थान पर घटना-परिस्थिति-विडंबनाओं को महत्व, बोल्ड लेखन, फैंटेसी का प्रयोग एवं भाषायी कौशल को उदाहरणों के साथ व्याख्यायित किया गया है.
अगला सर्जना के आयामों पर केंद्रित लंबा आलेख है, जो दर्शाता है कि कहानीकारों ने यथार्थ के नए क्षितिज खोले हैं, रूप-शिल्प के क्षेत्र में नए प्रयोग किए है और नई कथा-भाषा विकसित की है. संवेदना और सरोकारों पर विशेष ध्यान दिया गया है. कहानी में वाह्य तथा आंतरिक दोनों यथार्थ दृष्टिगोचर होते हैं. नए कहानीकारों ने प्रेमचंद के सरोकारों को विस्तारित किया है. अब कहानी सिर्फ आख्यान न होकर विविध विमर्शों को भी अपने मे संयोजित कर चुकी है.
परंपरा के बरक्स भूमंडलोत्तर कहानी का विश्लेषण करते हुए लेखक का मानना है कि प्रत्येक रचना परंपरा का विस्तार तथा नवीनीकरण ही होती है. भूमंडलोत्तर कहानी ने अनुभव के नए एवं बारीक क्षेत्रों को छुआ है. शिल्पगत विशेषताएं बदली हैं. भाषा पहले से अधिक सहज हुई है. यथार्थ को यथावत कहने का साहस विकसित हुआ है और औपन्यासिक तत्वों की ओर कहानीकार का रुझान बढ़ा है.
पुस्तक के अंत में इस विस्तृत अध्ययन को दिनेश कर्नाटक ने ‘मुट्ठी में क्या है?’ आलेख के माध्यम से एक मुट्ठी में समेटकर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है. लेखक ने कहानी को साहित्य की केंद्रीय विधा के रूप में स्थापित किया है. वह कहते हैं कहानी का काम कठिन समय में भी संवेदना को बचाकर रखना है और आज की कहानी यह काम बखूबी कर रही है. आज की कहानी ने अभिव्यक्ति के तमाम खतरे उठाकर भी अपने कलात्मक वैभव का परिष्कार किया है. हिंदी कहानी ने एकाधिक विषयों को अपने में पिरोने की कला विकसित की है. आज की कहानी कहती नही बोलती है. तमाम तरह के रचना विरोधी माहौल में भी वह सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध है.
अंत में यह जरूर कहना चाहूंगा कि दिनेश कर्नाटक का यह अध्ययन हिंदी कहानी के विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं, कहानीकारों और पाठकों के लिए अत्यधिक उपयोगी साबित होगा. लेखक ने इस अध्ययन को अधिकतम उपयोगी बनाने हेतु 138 भूमंडलोत्तर कहानीकारों एवं उनकी कहानियों, 86 कहानी संग्रहों, 19 संदर्भ पत्रिकाओं एवं 57 संदर्भ ग्रन्थों का संदर्भ लिया है, जिनका उल्लेख परिशिष्ट में किया गया है.
पुस्तक : हिंदी कहानी के सौ साल तथा भूमंडलोत्तर कहानी
प्रकाशक : समय साक्ष्य, देहरादून
मूल्य : ₹ 225
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…