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चालान से बचने का सबसे पहला तरीका तो यही है कि गाड़ी घर से निकाली ही न जाए. गाड़ी घर से निकलेगी तो सड़कों पर चलेगी. सड़क पर चलेगी तो ड्राइवर को अपना बचपन याद आएगा. बचपन से ही लगभग सभी आम भारतीय ट्रैफिक रूल्स तोड़ना सीखते हैं. अच्छे-खासे उम्रदराज लोग कहते मिल जाते हैं कि अमां, नियम तो होते ही तोड़ने के लिए हैं. मां सिखाती है कि बेटा बाएं से चलो, लेकिन सड़क पर पता चलता है कि बेटा जी दाहिने से अपनी स्कूटी नचाते हुए भागे चले आ रहे हैं. सड़क पर अगर बेटा जी को कोई सिखाने की कोशिश करता है तो बेटा जी वहीं उसे ठीक से समझा देते हैं कि ज्यादा ज्ञान न दो, इधर बहुत है. हमेशा बच्चे बने रहने पर उतारू इतने ज्ञानी-ध्यानी लोग सड़क पर निकलते हैं, ट्रैफिक रूल्स से रेप करते हैं तो चालान तो होगा ही. अब एक चीज तो घर पर रखकर निकलना ही होगा- या तो ज्ञान, या फिर गाड़ी. (How to evade traffic challan)
चालान से बचने का दूसरा तरीका यह है कि इलेक्ट्रिक बाइक खरीद ली जाए. ढाई सौ वाट के इंजन वाली ऐसी इलेक्ट्रिक बाइक, जो पचीस किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार से न चलती हो, उसे चलाने के लिए न तो हेलमेट चाहिए, न इंश्योरेंस, न ड्राइविंग लाइसेंस और न ही कोई और ऐसा खास कागज, जो न होने पर ट्रैफिक वाले मामा मेहरबानी दिखाने को आतुर होवें. इसके बाद बचती है लाल बत्ती, जिसे तोड़ा तो चालान होगा, मगर चालान करने के लिए भी डीएल या आरसी चाहिए होती है. ऐसे आरामतलब लोग, जिन्हें कहीं जाने की जल्दी नहीं है, इलेक्ट्रिक बाइक उनके लिए अच्छा उपाय हो सकती है. मजा और मौसम तो बना ही रहेगा, इस भीषण मंदी में जेब में जो बचा रह गया है, वह भी बना रहेगा. (How to evade traffic challan)
चालान से बचने का तीसरा तरीका यह है कि साइकिल चलाई जाए. साइकिल पर किसी तरह का ट्रैफिक रूल नहीं लगता. इलेक्ट्रिक बाइक की ही तरह साइकिल भी ट्रैफिक के सारे नियम-कानूनों से परे है. कितना भी जाम हो, साइकिल सवार के लिए बस नाम भर का ही होता है. डॉक्टर भी कहते हैं कि सेहत बनानी हो तो साइकिल चलाओ. लेकिन दिक्कत बस यही है कि साइकिल पर आप कार-ओ-बार नहीं कर सकते, चंपक चुस्कियां नहीं लगा सकते. फिर साइकिल वाले को भारत में लोग हेय दृष्टि से भी देखते हैं. हमें पांच से पचास हजार का चालान भरना मंजूर है, लेकिन सड़क पर हेय दृष्टि से देखा जाना मंजूर नहीं. स्टेटस भी कोई चीज होती है या नहीं? लंबी मर्सिडीज में पसरकर दफ्तर पहुंचने वाला कैसे अपना स्टेटस एक साइकिल पर चढ़ा सकता है? इज्जत इज्जत होती है और फालूदा फालूदा होता है. सभी साइकिल पर चलने लगे तो भारत की जीडीपी किस पर चढ़कर चलेगी?
दिल्ली में रहने वाले राहुल पाण्डेय का विट और सहज हास्यबोध से भरा विचारोत्तेजक लेखन सोशल मीडिया पर हलचल पैदा करता रहा है. नवभारत टाइम्स के लिए कार्य करते हैं. राहुल काफल ट्री के लिए नियमित लिखते हैं.
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