समाज

अफ़गान बादशाह जो देहरादून में ‘बासमती चावल’ लाया

‘देहरादून की बासमती’ सुनते ही मुंह में खुशबू, मिठास और कोमल चावल के दानों के स्वाद से भर जाता है बशर्ते आपने कभी देहरादून का बासमती चावल खाया हो. जितना दिलचस्प स्वाद देहरादून की बासमती का है उतना ही दिलचस्प है उसके देहरादून की घाटी में पहुंचने का सफ़र. वारिश साह की ‘हीर रांझा’ में मिलने वाला बासमती आखिर कैसे देहरादून का होकर रह गया जानना बेहद रोचक है.
(History of Dehradun Basmati Chawal)

भारत में खुशबूदार चावल का बेहद पुराना इतिहास है. खुशबूदार सफ़ेद चावल का पहला जिक्र हमें भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक सुश्रुत के समय से ही मिलता है. ‘बासमती’ शब्द का प्रयोग पहली बार वारिस शाह की हीर रांझा में मिलता है. हालांकि बासमती चावल की खेती के पर्याप्त साक्ष्य मध्यकाल से ही मौजूद हैं.

पहले अफ़गान युद्ध में राजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों की सेना जीती और वहां बादशाह दोस्त मोहम्मद खां अपने देश से निर्वासित हुआ. 1842 में निर्वासन के दौरान दोस्त मोहम्मद को अंग्रेजों ने मसूरी में रखा. दोस्त मोहम्मद के लिये अंग्रेजों ने मसूरी में बाला हिसार का किला बनावाया. बाला हिसार एक पश्तो शब्द है जिसका अर्थ ऊंचाई या पहाड़ी पर स्थित किले से है. बाला हिसार नाम की जगह आज भी मौजूद जहां वर्तमान समय में कोई पब्लिक स्कूल चलता है.

दोस्त मोहम्मद खाने का शौक़ीन था. अपने खाने में उसे स्थानीय चावल का स्वाद पसंद न आया. आता भी कैसे वह पंजाब क्षेत्र में उगने वाले बासमती खाने का आदी जो था. दोस्त मोहम्मद ने जुगत भिड़ाई और किसी तरह चावल का बीज देहरादून ले आया. अफगानिस्तान से देहरादून आया बासमती चावल नई भौगोलिक परिस्थिति में ऐसा खिला की उसके स्वाद के कसीदे आज तक पढ़े जाते हैं. आलम यह रहा कि आज चावल का राजा कहे जाने वाले बासमती में सबसे स्वादिष्ट बासमती में देहरादून के बासमती की गिनती की जाती है.
(History of Dehradun Basmati Chawal)

देहरादून के बासमती की इतनी मांग हो गयी कि व्यापारी खड़ी फसल की बोली लगाया करते. पर धीरे-धीरे देहरादून के बासमती पर शहरीकरण की मार पड़ने लगी. 1981 में देहरादून में 6000 एकड़ में बासमती की खेती होती थी साल 2019 में यह मात्र 11 एकड़ के आसपास सिकुड़ कर रह गयी है. अब देहरादून के बासमती में पहले जैसा स्वाद भी कम हो गया है. पिछले दस सालों से लगातार उसकी खुशबू और मिठास में कमी की बात कही जाती है. लोग तो यहां तक कहते हैं कि देहरादून का बासमती अब केवल एक ब्रैंड का नाम बनकर रह गया है.

खैर वारिस शाह ने अपनी हीर रांझा में बासमती का जिक्र कुछ इस तरह किया है.  (पंजाबी भाषा)

Mushki Chawalaan dey bharrey aan kothey,
Soyan Pati  tey Jhoneray chari dey neen,
Basmati, Musafaree, Begumee soon Harchand de zardiay dhari de neen,
Suthee, karchaka  sewala ghard, kanthal, anu kekala, sari dey neen,
Bareek safed Kashmir, Kabul khurush jeray hoor te pari dey neen…


(History of Dehradun Basmati Chawal)

काफल ट्री डेस्क

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संदर्भ: The history and folklore of basmati rice written by Subhash Chander, Uma and Siddharth Ahuja.

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