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कुमाऊं में चन्द शासन काल के कुछ महत्वपूर्ण विवरण

एटकिंसन के अनुसार डोटी कल्याण चन्द्र का शासनकाल सन् 1730-47 ई.तक माना जाता है. डोटी कल्याण चन्द्र का राज्याभिषेक 1730 में किया गया. 1747 ई. को अपने मृत्यु समय के अन्तिम मास में उसनें अपने अबोध पुत्र दीपचन्द्र को राजा घोषित कर दिया. उसके अगले मास 1748 में उसकी मृत्यु हो गयी. सिंहासन पर बैठते समय तक डोटी कल्याणचन्द्र मंत्रियों और राजकर्मचारियों से सर्वथा अनभिज्ञ था. राजा के दरबार तथा राज्य में प्रधान पद दन्या के जोशियों का था. पुलिस का प्रधान सर्वोच्च पुलिस अधिकारी भवानीपति पाण्डे द्वाराहाट के निकट बैरती गांव का निवासी था. (Historic Details of Chand Dynasty in Kumaon)

डोटी कल्याणचन्द्र शिक्षा रहित एवं अनुभवहीन होने के कारण वह राजा के पद के लिए सर्वथा अयोग्य था. अज्ञान और अभाव में पले हुए उस राजा ने अपने गुप्तचरों का जो जाल फैलाया वह सर्वोत्तम राजनीतिपूर्ण कार्य था. किन्तु उसके गुप्तचर विभाग के अधिकारी वास्तव में केवल अपने व्यक्तिगत बदले की भावना, लोभ और लूट-खसोट की इच्छा की पूर्ति के लिए राजा से अनुचित कार्य करवाते थे. इसमें कोई सन्देह नही कि उसके विरूह् यदा कदा षड्यन्त्र भी रचे गये. राजा को इतना सावधान रहना पड़ता था कि उसके लिए खाना-पीना व सांस लेना तक कठिन कार्य हो गया था. (Historic Details of Chand Dynasty in Kumaon)

चन्द्र राजा कल्याणचन्द्र ने कुमाऊं से चन्द्रवंश के लोगों को मरवा दिया गया या राज्य से निकलवा दिया गया. जितने रौतेला राज्य में थे वे भी ढूंढकर मारे गये. यह कल्याणचन्द्र ने इसीलिए किया कि कभी प्रजा उनसे रुष्ट हो जाय तो कोई दूसरा चंद्रवंशी चंदेला राज्य करने लायक न रहे. राजा के इस कार्य से दानपुर से कोटे तक तथा पाली से काली तक रोना ही रोना सुनाई दिया. गांव में जो कोई किसी का बैरी था वह उसे चन्द खानदान का बता देता था. इस पर वह निकाला जाता या मारा जाता था.

अनुमानतः एक बार एक ब्राह्मणों के दल ने व उसी जाति के अन्य ब्राह्मण दलों को राजा के कोपभाजन बनाकर नष्ट करने का षड्यन्त्र रचा था. एक दिन उसके सर्वोच्च पुलिस अधिकारी भवानीपति पाण्डे ने, जो द्वाराहाट के निकट बैरती गांव का निवासी था. राजा को सूचित किया कि ब्राहमणों के एक दल ने राजा की हत्या का षड्यन्त्र रचा है, और उसमें खसिया भी सम्मिलित है और सूचना दी कि उनकी जयपुर के राजा सवाई जयसिंह के कुंवर को लाकर कुमाऊं के सिहांसन पर बिठाने की है. इस पर राजा ने बिना छानबीन किए भय से सुधबुध खोकर तुरन्त आदेश दे दिया – सभी ब्राहमणों की आंखें निकाली जाये तथा खसियों को प्राणदण्ड दिया जाये.

कल्याणचन्द्र को जब अनुभव हुआ कि उसके उत्पीड़न से अनेक कुमाऊनी उसके शत्रु बन गये हैं तो उसने अपनी शासन प्रणाली में सुधार करने का प्रयत्न किया. उसने अपने पिछले सलाहकारों को हटाना प्रारम्भ किया. राजा ने जिन व्यक्तियों को भारी हानि पहुंचायी थी, उनके परिवारों को भूमि प्रदान की अपनी क्रूरताओं की स्मृति को मिटा देने के लिए यथासम्भव प्रयास किए. राजा की स्थिति संकटपूर्ण थी, दक्षिणी सीमा पर अलीमुहम्मदखां रोहिला की तथा अवध के नबाववजीर की सेनायें उसके राज्य को हड़पने के लिए प्रस्तुत थी. हिम्मत गुसांई किसी भी समय रोहिला सेना लेकर आÿमण कर सकता था.

सन् 1743 में अलीमुहम्मद खां ने पर्वतीय प्रदेश के अभियान में सेना भेजे जाने पर मैदान में फैले अपने राज्य की सुरक्षा के लिए प्रयास किए. सर्वप्रथम काशीपुर युह् के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित की. रोहिला सेना अपनी संख्या के कारण भयप्रद थी. हिम्मत गुसांई के आÿमण को विफल करने राजा कल्याणचन्द स्वयं सेना लेकर काशीपुर पहुंचा था. रूद्रपुर के पतन और विजयपुर की ओर रोहिला सेना के प्रयाण की सूचना पाकर कल्याणचन्द्र ने रोहिला को आगे बढ़ने से रोकने के लिए सेना भेजी. विजयपुर के पास दोनों सेनाओं के मध्य युह् हुआ जिसमें कुमा≈°नी सेना के पैर उखड़ गये और वह अल्मोड़ा की ओर भागी, और भागती हुई सेना ने रोहिलों के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य किया, और रोहिले अल्मोड़ा जो पहुंचे. रोहिलों के निकट पहुंचने की सूचना पाते ही कल्याणचन्द्र गढ़वाल की ओर भागा और हाफिज रहमत ने बिना किसी विरोध के राजधानी अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया.

तब रोहिलों ने अल्मोड़ा में और निकट गांव के मंदिरों सहित द्वाराहाट, लखनपुर, कटारमल सहित समस्त मंदिरों की देवप्रतिमाओं को भग्न कर दिया. गायों को मंदिरों में मारकर उन्होंने देव पैठिकाओं पर गौरक्त छिड़का. सोने-चांदी की समस्त देवप्रतिमाओं तथा मंदिरों की प्रतिमाओं के आभूषणों को, सोने-चांदी के पात्रों को गलाकर उनकी सिल्लियां बनाई. द्वाराहाट में जो भी पूजा व मूर्ति विहीन मंदिर है वह रोहिलों की धर्मान्धता की स्मारक हो जिनमें वर्तमान में भी पूजा पाठ वर्जित हैं.

कुमाऊं में रोहिलों की ध्वंसलीला देखकर गढ़नरेश के लिए चुप बैठना सम्भव न था. कल्याणचन्द्र ने गढ़वाल नरेश प्रदीपशाह से सहायता मांगी और अपनी सेना को बटोरने का प्रयत्न किया. गढनरेश अपनी सेना लेकर पहुंचा. दोनों ने अपनी सेना लेकर कुमाऊंकी ओर प्रस्थान किया. गैरसैण, मेहलचैरी, लौभागढ़ी के मार्ग से सेनायें चैखुटिया की और बढ़ी. महरगांव, बैडती, द्वाराहाट तक उनका किसी ने विरोध नहीं किया. दूनागिरि और द्वाराहाट पर अधिकार करके सम्मिलित सेना कैडारौ, बैराड़ौ की ओर मुड़ी जहां रोहिला सेना के शिविर थे. दोनों सेनाओं के मध्य किस स्थान पर युह् हुआ इसका उल्लेख नहीं मिलता. युह्स्थल रामगंगा की उपरली उपत्यका में दूनागिरि से आगे होना चाहिए. क्योंकि बैटन ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था रोहिलों को रामगंगा के स्रोत प्रदेश में पहाड़ी उपत्यका के अन्तर्गत ‘घिरमुंडी’ नामक थापले पर रोका गया था. दूनागिरि से आगे पूर्व और रणक्षेत्र अल्मोड़ा से अधिक दूर नहीं रहा होगा.

शिवप्रसाद डबराल की पुस्तक ‘परवर्ती कत्यूरी व चंद राजवंश’ के आधार पर तैयार आलेख

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