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कुमाऊं के इतिहास का सबसे बड़ा कूटनीतिज्ञ हर्ष देव जोशी

चम्पावत के तत्कालीन राजा दीप चंद के दीवान थे हर्ष देव जोशी. एक किंगमेकर, कूटनीतिज्ञ, प्रशासक, सैन्य अधिकारी और अतीव चतुर हर्ष देव जोशी के बारे में एटकिंसन के गजेटियर में अनेक दिलचस्प बातें पढ़ने को मिलती हैं.  आज से करीब दो सौ वर्ष पहले यानी वर्ष 1815 में उनकी मृत्यु हुई थी. (Harsh Dev Joshi Kingmaker of Kumaon)

उस समय सारे देश में अफरातफरी मची हुई थी जिससे कुमाऊँ भी अछूता नहीं रह गया था. उन दिनों अल्मोड़ा में अवस्थित चंद राजवंश का दरबार भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का अड्डा बना हुआ था. (Harsh Dev Joshi Kingmaker of Kumaon)

एक के बाद एक हुए षड्यंत्रों के पश्चात राजा दीप चंद, उसकी पत्नी और बच्चों की हत्या हो गयी जिसके बाद मोहन सिंह नामक एक व्यक्ति ने मोहन चंद के नाम से गद्दी सम्हाली. गद्दी सम्हालते ही मोहन सिंह ने हर्ष देव जोशी को जेल में डाल दिया. वर्ष 1779 में गढ़वाल के राजा ललित शाह ने अल्मोड़ा पर आक्रमण कर चंदों को परास्त किया और उन्हें अल्मोड़े से बाहर खदेड़ दिया. परिणामतः हर्ष देव जोशी कारागार से मुक्त हो गए. उन्होंने ललित शाह को सलाह दी कि उसने अपने छोटे पुत्र प्रद्युम्न शाह को कुमाऊँ  का राजा बना देना चाहिए. इस बात पर राजा सहमत हुआ और उसने प्रद्युम्न शाह को प्रद्युम्न चंद बनाकर उसे कुमाऊँ की गद्दी सौंप दी.

राजा था तो प्रद्युम्न लेकिन असल राज चलता था हर्ष देव जोशी का. अपना सिंहासन वापस लेने की एक कोशिश के तौर पर मोहन चंद ने मैदानी इलाकों से करीब डेढ़ हजार नागा साधुओं की फ़ौज लेकर हमला करने का मन बनाया लेकिन हर्ष देव जोशी की चालाकी से वह योजना नाकाम हो गयी.

इस दौरान 1780 में ललित शाह की मौत हो गयी और उसका बड़ा बेटा जयकृत शाह गढवाल का नरेश बन गया. बड़ा भाई होने के नाते जयकृत ने प्रद्युम्न से कहा कि कुमाऊँ ने गढ़वाल की सत्ता को स्वीकार कर लेना चाहिए. हर्ष देव जोशी ने इस बात को अस्वीकार कर दिया और दोनों भाइयों के बीच सम्बन्ध खराब होते चले गए. मामले को सुलझाने की नीयत से हर्ष देव जोशी गढ़वाल गए जहां जयकृत ने उन पर हमला बोल दिया. हर्ष देव जोशी ने न केवल जयकृत की सेना को परास्त किया, उन्होंने प्रतिशोध के रूप में गढ़वाल के लोगों पर बहुत जुल्म ढाए. उसके द्वारा फैलाए गए आतंक को जोश्याणा भी कहा जाने लगा,

कुमाऊँ का राजा होते हुए भी प्रद्युम्न का दिल गढ़वाल में था. इस मौके का फायदा उठाकर मोहन चंद ने अल्मोड़े पर आक्रमण किया और शाह को हरा कर पुनः वहां का राजा बन गया. हर्ष देव जोशी थकने वाले इंसान नहीं थे और उन्होंने मैदानी इलाकों में भाड़े के सिपाही इकठ्ठा कर एक फ़ौज तैयार की जिसकी मदद से उन्होंने एक बार फिर से अल्मोड़ा पर कब्जा कर लिया. चूंकि प्रद्युम्न शाह कुमाऊँ आने को राजी न था, हर्ष देव जोशी ने शिव चंद नामक एक व्यक्ति को राजा बना दिया. सन 1788 में मोहन चंद के बेटे महेंद्र चंद ने एक बार फिर तख्तापलट करते हुए अल्मोड़ा पर कब्जा कर लिया.

साल 1790 में कुमाऊँ पर गोरखों का आक्रमण हुस. माना जाता है कि उनके द्वारा किये जाने वाले इस आक्रमण की जड़ में हर्ष देव जोशी ही थे. जोशी ने गोरखों के साथ यह समझौता किया था कि वे महेंद्र चंद को अपदस्थ कर कुमाऊँ के मामलों को हर्ष देव जोशी के हवाले कर देंगे. इस दौरान कुछ ऐसा हुआ कि आक्रान्ता गोरखों को हर्ष देव जोशी की नीयत पर शक हो गया. यही समय था जब उनके राज्य पर चीन ने आक्रमण कर रखा था और उनकी सेना को वापस काठमांडू पहुँचने का आदेश हुआ. इस दफा गोरखे हर्ष देव जोशी कप अपने साथ कैदी बना कर ले गए.

चतुर और साहसी हर्ष देव जोशी बीच रास्ते में बच भागे और तिब्बत की सीमा से लगे मुनस्यारी के जोहार इलाके में पहुँच गए. स्थानीय लोगों ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया और उन्हें बेड़ियों में बाँध दिया. इस दौरान स्थानीय प्रधानों ने उन के दुश्मन यानी मोहन चंद के परिवार के साथ हर्ष देव जोशी को सौंप देने पर एक संधि कर ली. हर्ष देव जोशी इस बार भी भाग निकले.

अपने बाकी बचे जीवन में हर्ष देव जोशी ने कुमाऊँ से गोरखों को भगाने के प्रयास जारी रखे. उन्होंने लखनऊ में अवध के नवाब, बनारस में ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों और कांगड़ा के राजा संसार चंद के साथ मुलाकातें कीं. उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी का ध्यान ऋषिकेश में गोरखों द्वारा किये जा रहे मानव-व्यापार की तरफ भी खींचा.

काफी सोच विचार के बाद1815 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने गोरखा साम्राज्य पर आक्रमण करने का फैसला किया जिसकी सीमाएं तीस्ता नदी से सतलज तक फ़ैली हुई थीं. ईस्ट इंडिया कम्पनी को हर जगह कडा कड़ा मुकाबला करना पड़ा सिवाय काशीपुर से अल्मोड़ा तक. इस अभियान को भी हर्ष देव जोशी ने ही अंजाम दिया था.

जल्दी ही अल्मोड़ा पर कम्पनी का कब्जा हो गया. कुमाऊँ की पहाड़ियों में इसी के साथ स्थानीय शासन समाप्त हो गया. इसके कुछ ही महीनों के बाद हर्ष देव जोशी का निधन हो  गया.

पहाड़ के इतिहासकार अब भी हर्ष देव जोशी को उसकी सही ऐतिहासिक जगह पर नहीं रख पाए हैं. कुछ हलकों में उन्हें एक गद्दार और देशद्रोही व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है जिसने अंग्रेजों को पहाड़ आने का रास्ता दिखलाया अलबत्ता अपनी इच्छाशक्ति और चतुर कूटनीति के बल पर लगातार चालीस साल तक सत्ता के केंद्र में बने रहने वाले इस बड़े घुमक्कड़ और साहसी व्यक्ति के इतिहास पर बहुत कुछ लिखा जाना अभी शेष है. पहाड़ से ताल्लुक रखने वाले हिन्दी के बड़े उपन्यासकार मनोहर श्याम जोशी एक समय हर्ष देव जोशी को लेकर एक उपन्यास लिखना चाहते थे लेकिन वह योजना कभी कार्यान्वित नहीं हो सकी. आज भी हर्ष देव जोशी के जीवन के बहुत सारे अध्याय अँधेरे की गर्त में कैद हैं.

काफल ट्री डेस्क

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