गुडी गुडी डेज़
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 20
अमित श्रीवास्तव
(हीरामन-स्मृति)
गुडी गुडी के बारे में आपकी उत्सुकता को देखते हुए लेखक ने हीरामन से गुडी गुडी मुहल्ले के बारे में मालूमात कीं. हीरामन ने स्मृति के आधार पर गुडी गुडी के बारे में जो जानकारियां दीं, वो क्रमवार यहां प्रस्तुत हैं. इस जानकारी से सम्बंधित पूरक प्रश्न लेखक से न किए जाएं, उसका कोई दोष नहीं है.
राष्ट्रीय पुष्प- गुडी गुडी का राष्ट्रीय फूल, गोभी था. खुशबू कोई ज़रूरी आइटम नहीं था इसलिए, और इसलिए भी, कि वहां के लोग ‘फल’ की चिंता नहीं करते थे.
राष्ट्रीय सब्जी- उन्होंने एक राष्ट्रीय सब्जी भी बनाई थी. कद्दू. कड़वा कद्दू. विशेष त्योहारों में उसे काटा और बांटा जाता था. वहां वर्गीय संघर्ष धन के नहीं, कद्दू के समान वितरण को लेकर था.
राष्ट्रीय पशु- गुडी गुडी का राष्ट्रीय पशु, औरांगउटांग था, लेकिन उसे किसी ने देखा नहीं था. लोग स्वयं पशुवत-पशुचित व्यवहार कर लेते थे.
राष्ट्रीय पक्षी- बाज को गुडी गुडी के राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा प्राप्त था जो `न आता’ था. जो खुद इनडेंजर्ड न होकर दूसरों को करता था.
राष्ट्रीय वृक्ष- बरगद की शक्ल का एक वृक्ष पाया जाता था जिसे राष्ट्रीय वृक्ष होने का गौरव प्राप्त था. स्थानीय भाषा में उसे बरकत कहते थे, जिसकी हरकत ऐसी थी, कि वो किसी और को उगने-बढ़ने नहीं देता था.
राष्ट्रीय नदी- एक थी. पता नहीं उसका पानी लाल क्यों था.
राष्ट्रीय खेल- खेल के रूप में न होते हुए भी एक राष्ट्रीय खेल ‘पीछा-पिछाई’ था जो हर भाषा मे खेला जाता था. उन दिनों अंगरेजी में खेला जा रहा था.
राष्ट्रीय हॉबी- अत्याधुनिक होने की गरज से लोगों ने एक राष्ट्रीय शगल भी बनाई थी. मिमिक्री! जो अमूमन खुद की ही किया करते थे.
राष्ट्रीय नृत्य- गुडी गुडी का राष्ट्रीय नृत्य `लॉपिंग एन्ड चॉपिंग’ था. हालांकि इसके हर परफॉर्मेंस के बाद लोग बड़े आश्चर्य में आ जाते थे कि इससे दर्शकों की संख्या कैसे कम हो जाती जाती है?
राष्ट्रीय पोशाक- अधबांह का कुर्ता, राष्ट्रीय पोशाक के रूप में, फैशन में था. बाजुओं के डोले-शोले दिखाने के लिए, सही जगह से कटा हुआ था और सीने के अतिरिक्त उभार को छुपाने की गरज से, वहां ज़रा सा फैल गया था. इस अनोखे डिज़ाइन की वजह से ऊपर से बैगी, नीचे, कमर तक आते-आते, स्लिम फिट हो जाता था.
राष्ट्रीय नारा- ‘तू पग्गल तो मैं क्यों नहीं’ ऐसा एक नारा था. बचाओ-बचाओ के युग में एक नारी भी होनी चाहिए इस सोच के साथ नारी- ‘तू पगली तो मैं क्यों नहीं’ अपनाया गया था.
यही दो राष्ट्रीय तर्क के रूप में भी प्रख्यापित किये गए थे.
राष्ट्रीय वाहन- गुडी गुड़ी का राष्ट्रीय वाहन मूषक था और उसे चूहा कहने की मनाही थी. मूषक के पैर पर चार लड्डू बंधे हुए थे (कुछ लोग चिपका हुआ भी बताते हैं), जिनपर लुढ़क कर मूषक राज स्थैतिक से गतिज अवस्था को प्राप्त हो जाते थे. लोगों का ऐसा भी कहना है कि लड्डू, साधारण लड्डू नहीं बल्कि मोदक थे. पता नहीं! राज-काज की बात.
राष्ट्रीय झंडा- गुडी गुडी का एक राष्ट्रीय झंडा था जो दरअसल डंडा था. कहते हैं कि प्रथम अधिवेशन में जब इसे फहराया जाना था, ये लहराने लगा बस इस कार्यवाही को शुभ मानकर इसे वैसे ही अपना लिया गया.
राष्ट्रीय चिन्ह- भ्रस्तिक का निशान गुडी गुडी का राष्ट्रीय चिन्ह था, जो लोग बना नहीं पाते थे, इसलिए बार-बार मिटा देते थे.
राष्ट्रधर्म- वैसे तो निरपेक्ष होने की अप्रत्यक्ष सी एक शर्त बांध रक्खी थी लोगों ने, लेकिन गुडी गुडी का प्रत्यक्ष राष्ट्रीय धर्म, तर्पण था जिसे वो अगले के मोक्ष हेतु नहीं वरन अपने आध्यात्मिक तोष के लिए निभाते रहते थे.
राष्ट्रीय संकेत- `पीछे मुड़-पीछे जा !’
राष्ट्रीय दिशा- एक राष्ट्रीय दिशा भी थी, जो कहने को तो दाहिनी थी, दरअसल `दाहिने-नीचे’ थी, डाउन राइट!
राष्ट्रीय प्लेज (कसम)- हर राष्ट्रीय पर्वों पर लोग अपना दाहिना हाथ और दाहिने उठाकर समवेत स्वर में एक सौगंध खाते थे जो कुछ ऐसे है-
गुड़-गुड़ गोदी-गोदी गोबर-गोबर गोदना
गप गपागप गप गपागप गप गपागप गोड़ना
राष्ट्रीय मुद्रा- लेन-देन और व्यापार हेतु गुडी गुडी की राष्ट्रीय मुद्रा, चिन थी. इसमें दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनियां शून्य की तरह जुडी होती थीं. शेष उंगलियां फैली रहती थीं, जबकि मध्यमा, तर्जनी के बगैर मुड़े हिस्से को छूती रहती थीं. कहते तो ये भी हैं कि इसमें अंगूठे और तर्जनी के जुड़ाव स्थल पर एक बीड़ी फंसी होती थी पर निश्चित तौर पर कहना मुश्किल है.
राष्ट्रीय आपदा- चूंकि वहां के बाशिंदे खतरों के खेलवाड़ी थे इसलिए आपदा-फापदा से लड़ने के लिए तैयार रहते थे. `तार्किकता’ को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया था. जैसे ही आने को होती लोग अलर्ट हो जाते. चूंकि ये एक बॉयोलोजिकल डिज़ास्टर समझा गया इसलिए बचाव के तरीके में गोमूत्र का सेवन सबसे असरकारी समाधान था.
राष्ट्रीय कैलेण्डर- `स्वयं-संवत’ को उन दिनों काल गणना के लिए राष्ट्रीय कैलेण्डर होने का गुरूर हासिल था. (यहाँ काल समय बोध हेतु कम, मुहावरे वाला ज़्यादा है, ऐसा भी हीरामन ने ही बताया था, कोष्ठक में). कैलेंडर का हर दूसरा महीना अगस्त का और महीने में सात-आठ अमावस की रातें आती थीं.
राष्ट्रीय गीत- गुडी गुडी का राष्ट्रीय गीत जिसे `गुगुगीत’ भी कहते थे, नीचे दिया जा रहा है-
इस हमाम में सब नंगे हैं, तू भी-मैं भी
बे-कासा भिखमंगे हैं, तू भी-मैं भी!
इसको-उसको खूब सिखाया अदब-कायदा
खुद लेकिन बेढंगे हैं, तू भी-मैं भी!
झूठ छलावा कपट डकैती चार सौ बीसी
मगर अन्त हर-हर गंगे हैं, तू भी-मैं भी!
बीच बहस में असली मुद्दा भूल गये से
हिन्दू मुस्लिम दंगे हैं, तू भी-मैं भी!
दर खुलते ही पश्चिम को फिर दौड़ लगाई
वो अधजले पतंगे हैं, तू भी-मैं भी!
नई जींस को घर कि चादर गिरवी रख दी
इतने बड़े लफंगे हैं, तू भी-मैं भी!
दुश्मन को तो देव बनाकर शीश नवाया
खुद से लेते पंगे हैं, तू भी-मैं भी!
हीरामन स्मृति में इसके बाद एक क्षेपक भी जोड़ा जा सकता है, ‘हीरा-लीक्स’ नाम से. फिलहाल इतनी सी ही जानकारी से काम चलाएं. हीरा-लीक्स, फिर कभी.
डिस्क्लेमर – ये लेखक के निजी विचार हैं.
पिछली क़िस्त : सस्सू की चिट्ठी
अमित श्रीवास्तव
उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता).
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