अल्मोड़ा. रिमझिम बारिश की फुहारों के साथ जब स्वागत की छत माल रोड-अल्मोड़ा में गिर्दा के गीत गाए तो सड़क पर छाते लिए लोग रुक कर वीडियो बनाने लगे. कामगार अपनी रस्सी टांगे वक्ताओं को सुनने लगे, राह से गुजरते उम्रदराज लोगों के कदम थम गए, क्योंकि यहां उनकी भी बात हो रही थी. ये मौका था जन आंदोलनकारी, जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की नवीं पुण्यतिथि का. ग्राम-ज्योली के इस लाल को उनके गृह नगर ने याद किया. स्वागत की छत पर आयोजित कार्यक्रम में गिर्दा के लिखे-गाये लोकगीत गाकर कार्यक्रम की शुरूआत हुई. वरिष्ठ पत्रकार नवीन बिष्ट के संचालन में कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्य आंदोलनकारी, प्रखर पत्रकार स्व. शमशेर बिष्ट की पत्नी श्रीमती रेवती बिष्ट ने की. यहां जुटे सांस्कृतिक कर्मी, साहित्यकार, कलाकारों ने झोड़े और गीत गाकर गिर्दा को याद किया.
सबसे पहले आज हिमाला तुमनकैं धत्यूछों, जागो जागो ओ मेरा लाल… गीत गाया, इसके बाद ततुक नि लगा उदेख घुनन मुनई न टेक, जैंता एक दिन त आलो उ दिन य दुणी मैं… इस दौरान पूरन बोरा की छोलिया टीम ने शानदार प्रस्तुति दी. गिर्दा ने हमेशा आम आदमी की बात सड़क से की. उन्होंने सत्ता से मुकाबला करने की राह सड़क से ही बनायी. उनकी पुण्य तिथि पर उनके रचे गीतों को उनकी ही परिपाटी में गाकर याद किया गया. किसी भी आदमी को उसी रंग में यदि याद किया जाए तो ऐसा लगता है कि वो फिर से खड़ा हो गया है. विचारों को जिंदा रखने का यह सबसे जहीन तरीका है. स्वागत की छत में जुटे लोगों का आशय भी यही था कि वो अपने गिर्दा को उसी के अंदाज में रंग कर याद करें.
कार्यक्रम में बोलते हुए डॉ. कपिलेश भोज ने कहा कि गिर्दा की पुण्यतिथि का आज का दिन समाज के लिए काम करने वाले लोगों को प्रेरणा देने वाला है. जो लोगों के लिए काम करेगा उसे हमेशा ऐसे ही सलाम किया जाएगा. गिर्दा सड़क का आदमी है सड़क के आदमी को याद करने का इससे बेहतर कोई दूसरा रास्ता नहीं है. गिर्दा एक विशा ल व्यक्तिव के मालिक थे. वह एक पत्रकार थे, एक कलाकार थे, गीतकार थे, समाजसेवी थे, नाटककार थे. वह एक अद्भुत व्यक्ति थे. पत्रकार पीसी तिवारी ने कहा कि गिर्दा हमेशा जन आंदोलनों के साथ रहे, बिना किसी की परवाह किए आम आदमी के पक्ष में खड़े रहे. उत्तराखण्ड में घूम-घूम कर लोक गीतों के माध्यम से आंदोलन को धार देते रहे. उनको हमेशा एक आंदोलनकारी के रूप में याद किया जाएगा. जो कुछ उन्होंने किया वह आगे भी किया जाता रहेगा. हम ऐसे ही आयोजनों के माध्यम से गिर्दा को हमेशा जिंदा रखेंगें. गिर्दा के दौर में भी ऐसे लोग थे जो सिर्फ चर्चा करते थे और आज भी ऐसे लोग हैं. गिर्दा हर दौर में पैदा होते हैं आगे भी होंगे. कार्यक्रम का संचालन कर रहे नवीन बिष्ट ने कहा कि गिर्दा पहाड़ के सभी आंदोलनों में सबसे आगे रहे. जंगल की बात या शराब के खिलाफ महिलाओं का सड़क पर उतरना या फिर राज्य के लिए चला आंदोलन हो सभी में वह एक अगुवा के रूप में शामिल हुए और पूरे मनोयोग से जुड़े रहे. श्रीमती रेवती देवी ने गिर्दा को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि आंदोलनकारियों को उन्हीं के किए कार्यों से याद किया जाता है.
आयोजन का समापन सावनी सांझ आकाश खुला है ओ हो रे सांझ निराली… झोड़ा गाकर किया. जब झोड़े में लोगों के कदम-ताल मिले तो स्वागत की छत पर छाते तन गए और लोग मोबाइल में झोड़ों को शूट करने लगे.
लोक गायक शीला पंत, विमला बोरा, पूर्व प्रधान राधा बंगारी, नर्मदा तिवारी, मुन्नी पाटनी, पीसी तिवारी, लेखक शंभू राणा, लोक गायक कृष्ण मोहन सिंह बिष्ट ‘नन्दा’, गोपाल चम्याल, हयात रावत, लोक कलाकार चन्दन बोरा, आंदोलनकारी पीसी तिवारी, ईश्वर चन्द्र जोशी, पत्रकार दीवान नगरकोटी, चन्दन रावत, त्रिलोक नेगी, नीरज भट्ट, रंगकर्मी रमेश लाल, वरिष्ठ साहित्यकार त्रिभुवन गिरी महाराज, डॉ. चन्द्र प्रकाश फुलोरिया, प्रो. एन.डी. काण्डपाल सहित तमाम साहित्यकार, रंगकर्मी मौजूद थे.
दिग्विजय बिष्ट ने पत्रकारिता की शुरूआत टीवी 100 रानीखेत से की. न्यूज 24, डीडी न्यूज होते हुए कई इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में उन्होंने काम किया. बाद में अमर उजाला के बरेली संस्करण के न्यूज डेस्क पर काम. दिल्ली मीडिया में साल भर काम किया. वर्तमान में आल इण्डिया रेडियो, आकाशवाणी अल्मोड़ा से जुड़े हैं.
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