कला साहित्य

गौर्दा की कुमाऊनी कविता ‘झन दिया कुल्ली बेगार’

मुल्क कुमाऊँ का सुणि लिया यारो,
झन दिया कुल्ली बेगार.
चाहे पड़ी जा डंडै की मार,
झेल हुणी लै होवौ तय्यार.

तीन दिन ख्वे बेर मिल आना चार,
आंखा देखूनी फिर जमादार.
घर कुड़ि बांजि करि छोड़ि सब कार,
हांकि लिजांछा मालगुजार.

पाकि रूंछ जब ग्युं धानै सार,
दौरा करनी जब हुनी त्यार.
म्हैण में तीसूं दिन छ उतार,
लगियै रूंछ यो नित तार.

हूंछिया कास ऊं अत्याचार,
मथि बटिक बर्ख छ मूसलाधार.
मूना लुकुण सुं न्हांति उड्यार,
टहलुवा कूंछिया अमलदार.

बरदैंस लीजिया सब तय्यार,
फिर लै पड़न छी ज्वातनैकि मार.
तबै लुकछियां हम गध्यार,
द्वी मुनि को बोझ एका का ख्वार.

भाजण में होला चालान त्यार,
भुख मरि बेर घर परिवार.
भानि कुनि जांछि कुथलिदार,
 ख्वारा में धरंछी ढेरो शिकार.

टट्टी को पाट ज्वाता अठार,
ताजि ताजि चैंछ दूधैकि धार.
खोलि लिजांछ गोरु थोकदार,
सोचि लियौ तुम दुख अपार.

भंगी बणूछिया अपनो रिस्यार,
खूटा मिनूछियो रिस्तेदार.
घ्वाड़ा मलौ कूंछ सईस म्यार,
पटवारि चपरासि अरु पेशकार.

अरदलि खल्लासि आया सरदार,
बाबर्चि खनसाम तहसीलदार.
घुरुवा चुपुवा नपकनी न्यार,
बैकरन की अति भरमार.

दै दूद अंडा मुर्गि द्वि चार,
को पूछौ लाकड़ा घास का भार.
बाड़ बाड़ा मालै लै भरनी पिटार,
अरु रात दिना पड़नी गौंसार.

भदुवा डिप्टी का छन वार पार,
अब कुल्ली नी द्यूं कै करौ करार.
कानून न्हांति करि है बिचार,
पाप बगै हैछ गंगज्यु की धार.

अब जन धरौ आपणा ख्वार,
निकाली धरौ आपणा ख्वार.
निकाली नै निकला दिलदार,
बागेश्वर है नी गया भ्यार.

कौतिक देखि रया कौतिकार,
मिलटों में बंद करो छ उतार.
हाकिम रै गया हाथ पसार,
चेति गया तब त जिलेदार.

बद्रीदत्त जैसा हुन च्याल चार,
तबै हुआ छन मुल्क सुधार.
कारण देशका छोड़ि रुजगार,
घर घर जाइ करो परचार.

लागिया छन यै कारोबार,
ऐसा बहादुर की बलिहार.
दाफा लागी गेछ अमृतधार,
बुलाणा हैं करि हालों लाचार.

डरिया क्वे जन खबरदार,
पछिल हटणा में न्हांति बहार.
चाकरशा…
देली धिक्कार

फूकि दियौ जसि लागिछ खार,
भूत बणाई कुलि उतार.
बणि आली उनरी करला उतार,
कैसूं उठैया जन हथियार.

जंगल का लै दुख होला पार,
काम जन करिया कोई गंवार.
जंगल में तुम खबरदार,
हूणा लागी रई मुल्क सुधार.

मणिमणि कै मिलला अधिकार,
हमरा दुख सुणि भयौ औतार.
गाँधी की बोलौ सब जै जैकार,
जागि गोछ अब सब संसार.

भारत माता की होलि सरकार,
ज्यौड़ि बाटी हैछ लु जसौ तार.
 तोड़ि नि सकनौ भूरिया ल्वार,
सत्य को कृष्ण छ मददगार.

हमरी छ वांसू अन्त पुकार,
चिरंजीव गोविन्द बद्री केदार.
हयात मोहन सिंह की चार,
बणी गईं यों मुल्क का प्यार.

प्रयाग कृष्णा छन हथियार,
ऐसा बहादुर चैंनी हजार.
स्वारथ त्यागि लगा उपकार,
शास्त्री लै छन देश हितकार.

इनन सूं लै लागि छ धार,
देशभक्ति की यो छ पन्यार.
कष्टन सहनेर होय हजार,
स्वारथि मैंसू की न्हांति पत्यार.

आपुणा देसकि करनी उन्यार,
नौकर शाही छ बणि मुखत्यार.
कुल्ली देऊणा में मददगार,
बिनती छ त्येहूं हे करतार.

देश का यौं लै हूना फुलार,
आकास बाणी छ नी हवौ हार.
जीत को पांसो छन पौबार,
देश का गीत गावौ गिदार.

चाखुलि माखुलि छोड़ौ भनार,
निहोलो जब तक सम व्यवहार.
भुगतुंला तब तक कारागार,
लागि पड़ि करौ देश उद्धार.

नी मिलौ तुमन फिरि फटकार,
दीछिया गोरख्योल कन फिटकार.
वी है कम क्या ग्वारख्योल यार.
पतो छ मेरो लाला बाजार,
गौरीदत्त पाण्डे दुकानदार.

गौरी दत्त पांडे ‘गौर्दा’

गुमानी के पश्चात अल्मोड़ा के निकट पाटिया गाँव में जन्मे गौरी दत्त पांडे ‘गौर्दा’ ने कुमाऊनी साहित्य को आगे ले जाने का काम किया. गौर्दा की कविताओं में राष्ट्रीय स्तर पर जहां देश की स्वाधीनता व देशप्रेम के प्रति जो अकुलाहट व संघर्ष का भाव दिखाई देता है वहीं उनकी रचनाओं में स्थानीय प्रकृति व भौगोलिक परिवेश की भी  विशेषताएं भी उभर कर आयी हैं.एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उनकी रचनाओं में कहीं कहीं हास्य व्यंग्य का पुट भी मिलता है.

-काफल ट्री फाउंडेशन

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