Featured

गैरसैण एक शब्द है राजकोष का

गैरसैण एक शब्द है

पानी की बची हुई बूंद को छाल की शिराओं में सँजोकर हरा होना सीखा था
इसने खिलना सीखा था
अब जब नाखून के पोर लाल हो उठे थे
किसने देखा कि इसके हाथों में निचुड़े हुए बुरांश के फूल हैं
(Gairsain Poem Amit Srivastava)

हथेली की गर्म सांस से चिपके
फूल, किसी आश्वासन के संलग्नक बन जाते हैं अपनी उतराई में
कुछ हवा के साथ बहते दूर किसी चमकीले शहर के पैरों पर गिरते हैं
कुछ बीमार पत्तों से उतर जाते हैं बेस्वाद
इसकी आंखों में उतर आता है
पत्थरों का गहरा सलेटीपन

किसने देखा कि इसके हाथों में दरातियाँ हैं
चेहरे पर वक्त की बेशर्म लिखावट
इसने गर्म दस्तानों से बाहर कर लिए हैं हाथ
दस्ताने फट चुके हैं
हाथ कट चुके हैं
चेहरे पर अबूझ सांवलापन है अब

किसने देखा कि इसने खीजकर खोल दीं अपनी हथेलियां
इसके हाथों में दूसरों के थमाए पर्चे थे
पर्चों पर लिखी थीं अद्भुद कविताएं मगर
कविताओं की वक्र पीठ पर खुदा हुआ नाम इसका नहीं था

बंजर वायदे से उठ जाता है दिन
धूसर आपत्तियों सा रात ढल जाता है
खाली तकती रह जाती हैं छः की छः सुबहें भरोसे की बिसात पर
किसने देखा कि चौसर के ठीक बीच में गिरे पासे सा ये और
इससे खेलने वाले समान दूरियों पर हैं
देखने वालों के
जीतने वाले हारे हुए दीखते हैं
इस लिए हैरान हैं हारे हुए लोग

किसने देखा कि माथे पर तमाम सलवटें
इसके होने और न होने के बीच द्वंद सी उठतीं
एक बवंडर उठाने को अभिशप्त पसीने की बूंदों के साथ नीचे गिरकर
सपाट रह जाती हैं

किसने देखा कि इसके ढले हुए कन्धों पर
एक ही गांठ में नत्थी हैं
कुछ मुस्कुराटें
कुछ कराहें
और एक सोची समझी उदासीनता

अब तक तो इसे खिल जाना चाहिए था
अब तक तो इसे चुना जाना चाहिए था
अब तक तो इसे बिछ जाना चाहिए था रेशमी रूमालों में
अब तक तो रूखे-मलमली काली गिरहों में इसे बिंध जाना चाहिए था चौफुंला की थाप सा
या इसे भी पंक्ति को ही दिया जाना चाहिए था
किसने देखा कि अब तक तो इसे मिल जाना चाहिए था कोई न कोई रंग

भाषा कोष में उर्दू के क़रीब
किसी उथले मैदान के गर्भ में
कुछ मठ बनाए जाएंगे
टूटेंगे कुछ गढ़
कुछ ज़मीनों पर चढ़ेंगे आसमानी रंग
इसके खाली पेट को उलटकर ओढ़ लिया जाएगा कई बेशर्म पीठों पर
बदले जाएंगे नाम वारिसान के
इसकी छातियों पर दगे होंगे चकत्ते
सफेद नीले और ख़ाकी
रस निकलने तक
इसके होने को चुभलाया जाएगा
अब तो शायद थूकने से पहले ही ये देखा जाएगा कि इसके नाखून के पोर लाल हो उठे थे
और ये कि

…गैरसैंण एक शब्द है राज कोष का !

(Gairsain Poem Amit Srivastava)

मारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

अमित श्रीवास्तवउत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • इंसान के दर्द और मजबूरियों को बयाँ करती खूबसूरत कविताएं हैं ये। हार्दिक शुभकामनाएं अमित जी को।

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

2 weeks ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

2 weeks ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

3 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

4 weeks ago