अक्सर यहां के लोग यह भी कहा करते हैं कि हमारे जमीनों को गोविंद बल्लभ पंत जैसे राजनेताओं ने पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के हवाले कर दिया. पहले तो यह बात पूरी तरह सच नहीं है, जो सच है उसका पूरा इतिहास ही अलग है. उसे यहां नहीं समेटा जा सकता. हां कालाढूंगी रोड रामपुर रोड आदि स्थानों पर तत्कालीन शरणार्थियों के आवास की (पुराने लोग आज भी इन्हें रिफ्यूजी क्वार्टर के नाम से जानते हैं) व्यवस्था जरूर की गई थी. लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके हवाले पूरा तराई भाबर कर दिया गया हो. 1954-55 में कालाढूंगी रोड पर भोलानाथ गार्डन से लगी भूमि पर तकरीबन 52 परिवारों के आवास के लिए एक-एक क्वार्टर बनाया गया, जो हरबंस लाल, चोखे राम चोपड़ा, सीताराम, बालकराम, मालिक चंद, दामोदर दास, घनश्याम दास, गोवर्धन दास आदि के नाम अलॉट किए गए. आज इस गली में सत्यनारायण मंदिर इन लोगों के ही सहयोग से बना है. यद्यपि तमाम अन्य लोगों का भी योगदान इस मंदिर व धर्मशाला के निर्माण में रहा है. अलबत्ता वे बढ़े और उन्होंने तरक्की की तो उसमें उनका पुरुषार्थ भी शामिल था. उम्र के साथ झुक आई कमर और साइकिल के हैंडल में लटके झोले में बीड़ी, सिगरेट, माचिस आदि सामान लिए अर्जुन दास जब कालाढूंगी रोड स्थित रिफ्यूजी क्वार्टरों से निकलते थे और छोटे छोटे दुकानदारों से सामान लेने का आग्रह करते, तो लोग कहते कितने बड़े पैसे वाले होकर भी इन्हें चैन नहीं है. दरअसल अर्जुनदास हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे की त्रासदी भोग चुके थे और वे अपने प्रारंभिक जमाव के दिनों को नहीं भूलना चाहते थे. शायद इसीलिए किसी की परवाह ना करते हुए सड़क पर निकल पड़ते थे. इसके साथ ही वे होम्योपैथिक चिकित्सा के बहुत अच्छे ज्ञाता भी थे. प्रातः काल उनके घर पर मरीजों का तांता लगा रहता था. वे मुफ्त में उन्हें दवा और सलाह दिया करते थे. वे पाकिस्तान से अपने पिता स्वामीदास के साथ आए थे. स्वामीदास संत प्रकृति के थे और बाद में उनका जीवन आश्रमों में ही बीतने लगा. मंगल पड़ाव में स्वामीदास-अर्जुनदास नाम से फर्म खोलकर हिंदुस्तान लीवर और पनामा की एजेंसी से उन्होंने आर्थिक जगत में प्रवेश किया और अगली पीढ़ी के लिए तरक्की का मार्ग प्रशस्त कर गए. आज नागपाल टावर, नागपाल ट्रेडर्स आदि कई प्रतिष्ठानों, संस्थानों के साथ उनका नाम जुड़ा है.
भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय किसी प्रकार अपनी जान बचाकर हिंदुस्तान आए परिवारों में से हल्द्वानी तक आए पंजाबी परिवारों को कालाढूंगी मार्ग स्थित शिवपुरी गली में सरकार ने क्वार्टर अलॉट किए. इनके बसने के समय से इन्हें रिफ्यूजी क्वार्टर या पंजाबी मोहल्ला कहा जाता था. गदर के उस दौर को देख कर आने वाले रघुनाथ हजारा बताते हैं कि कश्मीर रियासत जहां से शुरू होती है, उसके पास सलीम खान का गांव गढ़ी अबीबुल्ला जिला हजारा तहसील मानशेरा में उनका परिवार रहता था. भारत पाक विभाजन के गदर में रातों-रात वह अपने परिवार के साथ जान बचाकर हिंदुस्तान आए. ग़दर की शुरुआत भी उसी गांव से हुई थी और खान ने कह दिया था कि वह कोई मदद नहीं कर सकेगा, रात्रि में ही निकल पड़ो. ऐसे में अपना घर बार सब कुछ छोड़ कर करीब 500 लोग अंजान रास्तों पर निकल पड़े थे. रघुनाथ के पिता चुन्नीलाल, ताऊ रामचरण व उनके पुत्र हरबंस लाल, देशराज सहित पूरा परिवार आया था. वह बताते हैं कि इसी प्रकार पाकिस्तान के अलग-अलग स्थानों से अन्य लोग भी आए. उनका परिवार कई जगह परेशानी उठाता हुआ मेरठ, हरिद्वार होकर अंत में हल्द्वानी पहुंचा. उस समय आए लोगों में चोखीराम चोपड़ा, चुन्नीलाल सभरवाल, मालिक चंद, घनश्याम दास, जयकिशन कपूर, बिशनदास कपूर, गुरबचन सिंह, प्रताप सिंह, बिशनलाल, निहालचंद, देशराज अरोड़ा सहित अन्य परिवार हल्द्वानी आए. कई लोग तो अब रहे नहीं लेकिन उनके परिजन देखी या सुनी यादों को सहेजें हुए हैं
रोजी-रोटी के लिए हल्द्वानी आए लोगों को स्थानीय लोगों ने पूरा संरक्षण दिया चुन्नीलाल और रामशरण ने नल बाजार में दो दुकाने नगर पालिका से किराए पर ली और परचून का काम शुरू किया. इन दुकानों में तंबाकू मुख्य रूप से बिकता था. डोरीलाल, बनवारी लाल सहित पांच हलवाई की दुकानें थी. तब इस स्थान पर गिनती भर के लकड़ी के खोखे थे और चौराहों में रात्रि को मिट्टी तेल के दीए जलाए जाते थे. शेर के मुंह वाला एक नल और उससे जुड़े अन्य नल थे, जिसमें हर समय ठंडा पानी आता था और दूर-दूर से लोग पानी भरने के लिए यहां आते थे. यहां पर एक प्याऊ भी था आज क्या वाले स्थान पर दुकान का स्वरूप दे दिया गया है.
शिवपुरी मोहल्ला आज हल्द्वानी नगर के केंद्र स्थानों में से एक है, जिसमें धार्मिक गतिविधियां होती रहती हैं. पहले यहां पंचायती गुरुद्वारा शुरू हुआ जो वर्तमान में अपने भव्य स्वरूप में खड़ा है. गुरदीप सिंह बताते हैं कि उनके पिता गुरबचन सिंह भाई महेंद्र सिंह पुराने ड्राइवर अतर सिंह सूरज विरमानी का परिवार भी बाहर से आया और यहां रह रहा है. अपने साथ अपने रीति रिवाजों को इन सभी परिवारों ने शुरू किया और मनजीत सिंह के वहां गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ हुआ करता था. फिर मालिक राम ने गुरुद्वारे के लिए अपनी जगह दी और वह इसकी प्रधान भी हुए. इसके बाद मालिक राम के पुत्र गोविंद राम और गुरुदीप सिंह गुरुद्वारे का संचालन करने लगे. गुरदीप सिंह 20 साल तक के गुरुद्वारे के अध्यक्ष भी रहे.
शहर के मुख्य मार्ग कालाढूंगी रोड से लगा शिवपुरी मोहल्ला भोलानाथ गार्डन से मिला हुआ है और सत्यनारायण मंदिर यहां के प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है. पहले इस स्थान के रिहायशी क्वार्टरों के बाहर भगतराम कोहली की एक दुकान थी जिसमें चुन्नीलाल में 1958 में सत्यनारायण भगवान का चित्र रखकर पूजा पाठ शुरू करवाया. इसके बाद 1959 में जन्माष्टमी पर्व पर काफी बड़ा आयोजन किया गया, जिसमें सहारनपुर से संगीतज्ञ प्रेम व दिल्ली के सरहदी गांधी के सानिध्य में भजन कीर्तन हुए. 1960 में बाबू श्यामलाल वैश्य वकील साहब ने अपने पिता भोलानाथ की पुण्य स्मृति में एक भूखंड जिस पर आज सत्यनारायण मंदिर है व 501 रुपये नगद मंदिर निर्माण हेतु दान में दिए. 1962 में भूमि पूजन के साथ निर्माण कार्य शुरू हो गया. इसके बाद श्रद्धालुओं ने संतों को आमंत्रित कर इस कार्य को और आगे बढ़ाया. पीलीभीत से मुनि हरिमिलापी और नीम करोली महाराज भी अपना आशीर्वाद देने पहुंचे. मंदिर से लगे दो प्लॉट भक्त चुन्नीलाल और रघुनाथ हजारा के नाना जयकिशन मखीजा के थे. मंदिर सभा के पदाधिकारियों के अनुरोध पर इन दोनों ने अपने प्लॉट धर्मशाला निर्माण के लिए दिए. इसी प्रकार मंदिर के सामने का प्लॉट रामप्यारी देवी पत्नी श्यामलाल वैश्य तिलहर निवासी ने 1987 को मंदिर सभा को दान में दिया, जिसमें धर्मार्थ होम्योपैथिक चिकित्सालय है. सत्यनारायण मंदिर धर्मशाला और चिकित्सालय आज शहर के महत्वपूर्ण केंद्र हैं. मंदिर श्रद्धालुओं का केंद्र होने के अलावा विवाह बरात व अन्य कार्यक्रमों के लिए धर्मशाला व जनसेवा के लिए धर्मार्थ चिकित्सालय बड़ी उपलब्धि है. एक बड़ी टीम मंदिर सभा के रूप में इससे जुड़ी हुई है.
(जारी)
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक ‘हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से’ के आधार पर
पिछली कड़ी का लिंक: हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 40
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