आजादी के बाद और कुछ हुआ हो या ना हो मैं कोई नहीं जानता था जिन्हें कोई नहीं जानता था वह ऊंची सीढ़ियां चढ़ गए. लेकिन जो आजादी के लिए दीवानगी की हद तक पार कर गए उनकी स्मृतियां तक मिट गई हैं. हल्द्वानी का स्वराज आश्रम उन दीवानों का मूक गवाह है. कुमाऊं में आजादी के जितने भी केंद्र थे उन सब की धुरी था हल्द्वानी का स्वराज आश्रम. हल्द्वानी में कांग्रेस की स्थापना इसी स्वराज आश्रम में हुई थी. गोविंद बल्लभ पंत बाबूराम कप्तान और रामशरण सारस्वत ने यहां कांग्रेस की अलख जगाई. कभी स्वराजराज आश्रम में रामचंद्र पहलवान का अखाड़ा भी हुआ करता था. स्वराज आश्रम में गांधी जयंती पर चरखा दंगल का आयोजन भी हुआ करता था.
स्वतंत्रता आंदोलन के साथ महिलाओं में राजनीतिक सामाजिक चेतना व शिक्षा की दृष्टि से स्वराज आश्रम में ही प्रशिक्षण का कार्यक्रम चलाया गया. इस कार्य में स्वतंत्रता सेनानी सुभावती मित्तल तथा उनके पति मदन मोहन मित्तल का बहुत बड़ा योगदान रहा.
उसके बाद इस विद्यालय को उस वक्त की नगरपालिका सराय में ले जाया गया और वर्तमान ललित आर्य महिला इंटर कालेज की नींव पड़ी. कालाढूंगी रोड में ऐशबाग मोहल्ले में सालम क्रांति के अग्रदूत रेवाधर पांडे के छोटे भाई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नारायण दत्त पांडे भी रहा करते थे. रेवाधर पांडे अक्सर उनके पास आते थे. उन्हें विभिन्न आंदोलनों के संचालन के कारण फांसी की सजा सुनाई गई, जो बाद में आजीवन कारावास में बदल गई. इसके बावजूद वह फरार रहकर आंदोलन की अलख जगाते रहे. सालम के ही राम सिंह आजाद जो किच्छा देवरिया में रहते थे, भी यदा-कदा यहां आकर स्वतंत्र आंदोलन के अपने जीवन से जुड़े रोमांचक किस्से सुनाते.
स्वराज आश्रम में एक प्रिंटिंग प्रेस भी हुआ करता था 1952 53 में नारायण दत्त भंडारी ने यहां से कर्मभूमि नामक अखबार भी निकाला. बाद में अखबार बंद कर महात्मा गांधी विद्यालय की नींव रखी गई. यह विद्यालय प्रारंभिक दौर में कालाढूंगी रोड स्थित ऐशबाग के पुराने बंगलेनुमा भवन में स्थापित किया गया, बाद में बरेली रोड में वर्तमान स्थान पर ले जाया गया. ऐशबाग वाला स्थान बहुत वर्षों तक जिला परिषद के कब्जे में गोदाम के रूप में रहा. स्वराज आश्रम वाले प्रिंटिंग प्रेस की सामग्री बहुत पुरानी और देखरेख के अभाव में बेकार हो चुकी थी. बेकार पड़ी मशीन टाइपराइटर कटिंग मशीन वगैरह को बेच दिया गया. स्वराज आश्रम राम मंदिर बच्ची गौड़ धर्मशाला डीके पार्क गुरुद्वारे के आसपास के इलाके में उत्पाती बंदरों के तादाद भी बहुत है. मौका मिलते ही दुकानों से खाद्य सामग्री बन-बिस्कुट, फल, अंडे आदि उठा ले जाते हैं. केएमओयू की बसों की छतों पर चढ़ कर भी यात्रियों का सामान टटोल लेते हैं इन बंदरों में एक मोती नाम का समझदार बंदर भी था. वह आने जाने वालों को रोक कर पैसे भी लिया करता था और उन पैसों से खाने का सामान ख़रीदता था.
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर
जारी…
पिछली कड़ी का लिंक : हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने – 17
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