समाज

हल्द्वानी के ‘न्यू लक्ष्मी सिनेमा’ में पहली फिल्म दिखाई गई थी कश्मीर की कली

नगर से महानगर हो चुके हल्द्वानी ने अपने आसपास के गांवों को भी अपने में सम्मिलित कर लिया है. मुखानी क्षेत्र में पर्वतीय रामलीला कुछ दिनों तक आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी जो अब बंद हो चुकी है. शहर के मोहल्लों व गांवों में अब यह परंपरा विस्तार पा चुकी है. Forgotten Pages from the History of Haldwani-35

हल्द्वानी नगर में रामलीला, रासलीला, नौटंकी या कठपुतलियों के खेल, होली, दिवाली, जन्माष्टमी, गुरुपुरब, ईद मिलन के अलावा विभिन्न लोगों के सामूहिक रूप से आयोजन की समृद्ध परंपरा तो थी ही. वहीं मनोरंजन के साधनों में नाहिद वह दिलरुबा टॉकीज में परिवार के साथ फिल्म देखना भी शामिल था.

जनसंख्या में वृद्धि के साथ आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी हो जाने तथा टेलीविजन के जीवन में प्रवेश के कारण सिनेमा हालों की स्थिति कमजोर हो गई है. आजादी से पहले रेलवे बाजार में नाहिद सिनेमा हाल था.

बताया जाता है कि सन 1935 में भवाली के पास 5-6 लोगों ने कोरोनेशन सिनेमा हॉल की स्थापना की थी. जिसे बाद में नाहिद सिनेमा कहा जाने लगा. सिनेमा हॉल वाली बिल्डिंग अल्ताफ हुसैन की थी. पीलीभीत के अल्ताफ हुसैन की बिल्डिंग में सिनेमा हॉल को रामपुर के नवाब मुकसुफल जफर अली खान चलाया करते थे. आपसी विवाद के चलते न्यायालय ने इस भवन को तीन हिस्सों में नीलामी का आदेश दिया. नीलामी में गोकुल चंद अग्रवाल और राजकुमार सेठ ने इसे खरीद लिया, लेकिन इस बिल्डिंग पर नवाब साहब कब्ज़ा रहा. खेमचंद अग्रवाल ने इसे लाला जी से खरीदा और नवाब से कब्जा भी छुड़ाया.

इसी के समकक्ष कच्चा सिनेमा हॉल रामपुर रोड में दिलरुबा टॉकीज के नाम से चला करता था. लाला बालमुकुंद की बिल्डिंग में शेख साहब इस टॉकीज को किराए पर चलाया करते थे. सन 1952 में खेमचंद ने सिनेमा हॉल को लक्ष्मी नाम से चलाना शुरु किया.

सन 1959 में जब इस कच्चे सिनेमाघर को तोड़कर पक्का सिनेमा हॉल बनाने का कार्य चला तो उस समय 7 माह तक सिनेमा विष्णुपुरी मोहल्ले में टेंट लगाकर चलाया गया. सन 1960 में पक्का सिनेमा हॉल बनने के बाद लक्ष्मी का नाम ‘न्यू लक्ष्मी सिनेमा’ रख दिया गया. तब इसमें पहली फिल्म कश्मीर की कली दिखाई गई थी.

खेमचंद अग्रवाल मूल रूप से बुलंदशहर में कुटरावली के रहने वाले थे. इनके बहनोई उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास थे. खेमचंद को घूमने का काफी शौक था जिसके चलते वह एक जगह रुक नहीं पाते थे. सबसे पहले आगरा में चित्रा और ताज सिनेमा हॉल का उन्होंने संचालन किया.

आगरा के पास सादाबाद, बरेली जिले की आंवला तहसील में, दिल्ली शाहदरा में राधू पैलेस, पीलीभीत, बिलासपुर, फर्रुखाबाद, पिलखुवा, उझानी, गदरपुर में भी इन्होंने सिनेमा हॉलों का संचालन किया. नैनीताल में रॉक्सी सिनेमा हॉल का नाम बदलकर लक्ष्मी सिनेमा नाम से उन्होंने संचालित किया. वर्तमान में यहां नटराज होटल है. सिनेमा हॉल संचालन का लंबा अनुभव रखने वाले खेमचंद ने हल्द्वानी नगरी को अपनी कर्मभूमि बनाया और वर्तमान में शहर के चारों सिनेमा हॉल इनके हैं.

2 जनवरी 1963 को लक्ष्मी सिनेमा हॉल में रात्रि शो के दौरान राज नारायण अग्रवाल गोली लगने से घायल हो गए. 3 फरवरी 1990 को आतंकी घटना में लक्ष्मी सिनेमा हॉल में बम विस्फोट में 6 लोगों की मृत्यु हो गई. हॉल में फिल्म दाना पानी चल रही थी.

नाहीद व लक्ष्मी सिनेमा हॉलों के बाद प्रेम सिनेमा हॉल का शुभारंभ 23 फरवरी 1972 को हुआ. जिसमें पहली फिल्म हाथी मेरे साथी लगी थी. यह जमीन 1968 में देवी दत्त छिम्वाल से खरीदी गई थी.

10 मई 1990 को रामपुर रोड में सरगम सिनेमा हॉल का शुभारंभ हुआ. मुनगली परिवार के सहयोग से शुरू किए गए इस सिनेमा हॉल में पहली फिल्म इज्जतदार दिखाई गयी. शुरुआती दौर में अठन्नी में पीछे की सीट व चवन्नी में आगे की सीटों के लिए टिकट हुआ करता था. Forgotten Pages from the History of Haldwani-35

(जारी)

पिछली कड़ी : धुआंधार कुमाऊनी बोलने वाले पहाड़ी सरदार

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago